डोलमा आंटी जिनके मोमोज खाकर डोल जाता है दिल्लीवालों का दिल, 15 रूपए प्लेट बेचकर शुरू किया सफर

दिल्लीवाले और मोमोज, इन दोनों का अपने आप में एक अजीब सा चटपटा रिश्ता है, राजधानी में हर 100 मीटर बाद लगे मोमोज के ठेले इस बात की गवाही देते हैं कि यहां के लोग कितने बड़े मोमोज प्रेमी होंगे।

आजकल के बच्चे अपने माता-पिता या दादा-दादी से पुरानी बातें पूछते रहते हैं, क्या आपने कभी उनसे पूछा कि दिल्ली में सबसे पहले मोमोज का ठेला किसने लगाया था, कौन लेकर आया था दिल्ली में मोमोज…आप पूछते रहिए पर बाकी हम आपको आज बताने जा रहे हैं तिब्बत की डोलमा आंटी के बारे में जिन्हें 1994 में दिल्ली में पहली बार मोमोज लाने का श्रेय दिया जाता है। आज डोलमा आंटी की दिल्ली में लाजपत नगर,  कमला नगर और न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी में 3 दुकानें हैं।

तिब्बत की रहने वाली डोलमा शादी के बाद अपने पति संग दिल्ली आ गई और काम खोजने लगी। काफी दिनों काम की तलाश करने के बाद डोलमा ने मोमोज बेचने का फैसला किया. डोलमा एक 100 रूपए की टेबल खरीद कर उस पर मोमोज बेचने लगी।

शुरूआती दिनों में डोलमा ने देखे बेहद चुनौती भरे दिन

डोलमा ने मोमोज बेचना तो शुरू कर दिया लेकिन उनकी चुनौतियां उनका इंतजार कर रही थी, वह तिब्बत का फेमस फूड दिल्ली में बेचने तो लगी लेकिन लोग उस समय फ्राय जंक फूड ज्यादा खाते थे वहीं एक औरत के लिए पूरे दिन ठेला लगाना उस समय बहुत बड़ी बात हुआ करती थी। इसके अलावा डोलमा को उन दिनों हिंदी भी नहीं आती थी जिससे खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।

15 रूपए की प्लेट से 60 रूपए की प्लेट तक का सफर

डोलमा ने अपनी मेहनत जारी रखी और वह लोगों को मोमोज खिलाती रही, धीरे-धीरे लोगों को उनके टेस्ट का पता चलने लगा और कस्टमर्स बढ़ने लगे। डोलमा आंटी के मोमोज खाने वाले बताते हैं कि उनके मोमोज की लेयर बहुत पतली होती है जिसे बनाने में बहुत टाइम लगता है। आज डोलमा आंटी सुबह 9 बजे से ही मोमोज की फिलिंग बनाना शुरू करती है। वहीं यहां आने वाले लोगों को डोलमा के मोमोज के अलावा उसके साथ परोसी जाने वाली चटनी भी बेहद पसंद आती है। आज डोलमा आंटी के पास 15 से अधिक लोगों का स्टाफ काम करता है।

कोरोना ने तोड़ी काम की कमर

डोलमा आंटी की दुकान पर शाम से ही भीड़ पहुंचना शुरू हो जाती है, हालांकि कोरोना ने इनके काम पर भी असर डाला है। एक समय डोलमा आंटी के मोमोज खाने रोज 200-300 कस्टमर्स आते थे। वहीं भविष्य की योजनाओं पर डोलमा आंटी कहती है कि वह दिल्ली में अपना एक खुद का रेस्टोरेंट खोलना चाहती है। डोलमा जैसी महिलाएं समाज के सामने मेहनत और लग्न से काम करते जाने की मिसाल बनती है।

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