घरवालों ने बचपन में किन्नर को बेचा, आज एक हाथ के बॉडी बिल्डर तिजेंद्र के पूरी राजधानी में चर्चे

कुछ कहानियां ऐसी होती है जिनमें तमाम संघर्षों के बावजूद रौंगटे खड़े कर देने वाला एक दर्द छुपा होता है, कुछ करने की एक कसक दिखती है, वहीं इन कहानियों में दर्द की आंच में ही पके मजबूत किरदार होते हैं जो ना जाने कितने ही लोगों के प्रेरणादायक बन जाते हैं।

आज हम एक ऐसे ही शख्स की कहानी आपको बताने जा रहे हैं जिन्होंने अपनी शारीरिक अक्षमताओं को अपनी ताकत बना लिया. हम बात कर रहे हैं दिल्ली के उत्तम नगर निवासी तिजेन्द्र मेहरा की जो आज एक हाथ के बॉडी बिल्डर के नाम से जाने जाते हैं।

किन्नर को बेचना चाहता था परिवार

तिजेन्द्र का जन्म होने के बाद से ही उनका एक हाथ विकसित नहीं हुआ. जन्म के बाद जब घरवालों को पता चला तो उन्होंने तिजेंद्र से पीछा छुटाने का मन बना लिया.

जज्बा मन में उड़ने का हो,

तो हौसलों के पंख लग जाते हैं।

किन्नर के घर बिक गया था,

बिके हुए भी आ जाते हैं।

तिजेन्द्र खुद बताते हैं कि उनके घरवालों ने 20 हजार रुपए में किन्नर के हाथों बेचने का प्लान बनाया और मुझे घर के बाहर चारपाई पर सुला दिया गया।

जब बुआ ने मां बन की परवरिश

वो कहते हैं ना किस्मत में जो लिखा होता है वो किसी ना किसी रूप में मिल जाता है, ठीक वैसे ही तिजेन्द्र की किस्मत में कुछ और ही लिखा था, घर के बाहर उसे सोए देख उसकी बुआ को सारा माजरा समझ में आ गया और वह उसे अपने साथ ले गई. बुआ ने तिजेन्द्र का अपने बेटे की तरह पालन पोषण किया और पढ़ाया लिखाया।

मां का साया बुआ में देखा,

पिता का साया सर में।

ईश्वर ने कृपा बरसाई,

नहीं तो जिंदगी थी अधर में।

पढ़ाई में नहीं लगता था मन तो करने लगा वेटलिफ्टिंग

तिजेंद्र का मन शुरू से ही पढ़ाई में नहीं लगता था और वह बार-बार खुद को देखकर कई योजनाएं बनाता. अंत में उसने अपने घर की छत पर ही ईंटों से वेटलिफ्टिंग करने लग गया। ऐसा करते–करते उसने बॉडीबिल्डिंग का मन बनाया और कुछ करने की मन में पक्की ठान ली। वह सरकारी जिम जाने लगा।

आज घर पर है सर्टिफिकेट और ट्रॉफियों का अंबार

तिजेन्द्र की बुआ उसकी डाइट का पूरा खर्चा उठाती थी और जिम में मिले दिनेश सर उसे प्रोत्साहित करते थे। आखिरकार एक दिन वह इलाहाबाद खेलने गया जहां से जीत कर लौटा, इसके बाद दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में खेलने गया और वहां पर भी जीत मिली।

तिजेंद्र बताते हैं कि कुछ समय बाद मैंने खुद बच्चों को सिखाना शुरू कर दिया था लेकिन लॉकडाउन के कारण सब कुछ चौपट हो गया। रोजगार ने मुंह मोड़ लिया और मेरा जिम बंद हो गया। वह कहते हैं कि मैं जिम खोलना चाहता हूं, यदि कोई स्पॉन्सर मिल जाए तो मैं उसके लिए तैयार हूं।

इसके साथ ही युवाओं को संदेश देते हुए वह कहते हैं कि व्यक्ति को कभी निराश नहीं होना चाहिए। उसको मन में एक निर्णय कर लेना चाहिए और पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए।

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