असम की 6 लड़कियों ने जलकुंभी से बना दिए योगा मैट, सालों पुरानी समस्या का मिला समाधान

भारत की कई झीलों में काफी मात्रा में जलकुंभी पाए जाते हैं। आज से सालों पहले जलकुंभी अमेजन वर्षावनों में पाए जाते थे जिसे पहले अंग्रेज़ गवर्नर जनरल की पत्नी लेडी हास्टिंग भारत लेकर आई थी जिसके बाद इन्हें टेरर ऑफ़ बंगाल कहा जाने लगा।

बता दें कि जलकुंभी पानी में मौजूद ऑक्सीजन को खींचती है जिससे पानी में मौजूद जल्य जीव जंतु मर जाते हैं। जलकुंभी को लेकर काफी समय बीतने के बाद करोड़ों खर्च करने के बाद भी अभी तक कोई समाधान नहीं मिला है, लेकिन आज हम उन 6 लड़कियों की कहानी आपको बताने जा रहे हैं जिन्होंने इस महासमस्या का समाधान ईजाद कर लिया है।

असम के दिपोर बील झील में भी जलकुंभी की समस्या को देखते हुए वहां की 6 लड़कियों (मिताली दास रोमी दास, भानिता दास, सीता दास और मामोनी दास) ने एक बायोडिग्रेडेबेल योगा मैट बनाया है जिसको “सीमांग” प्रोजेक्ट नाम दिया गया है।

योगा मैट बनाने में लगी एक साल की मेहनत

दिपोर झील पर आने वाली एक प्रवासी पक्षी, Purple Moorhen के नाम पर बनी इस योगा मैट को बनाने में एक साल का समय लगा है। गौरतलब है कि एक मैट को बनाने में 3 हफ़्ते का समय लगा और आज इस काम से 38 महिलाएं जुड़ चुकी हैं।

जलकुंभी से योगा मैट कैसे बनाया जाता है?

जलकुंभी से मैट बनाने के लिए सबसे पहले उसे पानी से निकालकर धूप में सुखाते हैं। 12 किलो की जलकुंभी सूखने के बाद महज 2-3 किलो रह जाती है। सूखने के बाद जलकुंभी के स्टेम को रूई के धागों के साथ बुनकर मैट बनाते हैं। बता दें कि एक योगा मैट की क़ीमत 1200 से 1500 रुपए आती है।

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