कोरोना का एक और घातक रूप आया ~ नियोकोव की हुई खतरनाक दस्तक, देखें!! कितना खतरा

Covid -19: कभी अल्फा, कभी डेल्टा और कभी ओमिक्रॉन कोरोना ने अपने अलग – अलग रूपों से हमारी जिंदगी में एंट्री ली है। और अब कोरोना ने अपना एक और नया रुप दिखाया है। देखा जाए तो कोविड – 19 के डर के साथ आज हम अपनी जिंदगी जी रहे है। इस महामारी को बढ़ावा देने वाला हर नए वेरिएंट का लोगों के मन में खौफ रहता है, और इसी खौफ को बढ़ावा देने आया है कोविड – 19 का एक और वेरिएंट जिसका नाम है ‘NeoCoV (नियोकोव)’

NeoCoV इस हफ्ते कुछ ज्यादा ही सुर्खियों में है। इस नए शब्द ने लोगों को अचानक से चिंता में डाल दिया है। हालांकि NeoCoV को लेकर लोगों को इतनी जल्दी घबराने की जरुरत नहीं है पर फिर भी आखिर ये NeoCoV क्या है? कहां से आया? और इससे जुड़ी तमाम बाते हमें पता होना जरुरी है, तो आइए जानते है इससे जुड़ी कुछ खास बाते।

क्या है NeoCoV?

NeoCoV शब्द का प्रयोग कोरोना वायरस के नए वैरिएंट के रुप में किया जा रहा है। जिस नए वैरिएंट को NeoCoV (नियोकोव) का नाम दिया जा रहा है, ये मुल रुप से दक्षिण अफ्रीका के चमगादड़ो की आबादी में पाया जाता है और आज तक ये केवल इन जानवरों के बीच ही फैलता था। इस नए वेरिएंट की खोज उसी चीन ने की है जहां 2019 में सबसे पहले कोरोना वायरस पाया गया था।

चीनी रिसर्चर्स का कहना है कि कोरोना वायरस के नए वेरिएंट ‘NeoCoV’ के फैलने और इससे मौत होने की दर बहुत ज्यादा हैं। इस स्टडी के अनुसार, अगर इस वेरिएंट से कोई तीन व्यक्ति भी संक्रमित होता है तो उस में से एक की मौत को खतरा है।

क्या NeoCoV की खोज अभी हुई है

NeoCoV की अभी तक कोई फॉर्मल डेसिग्नेशन नहीं है, इसलिए इस शब्द का मतलब पता लगा पाना थोड़ा मुश्किल है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इसकी खोज अभी हुई है? या ये वेरिएंट पहले से हमारे बीच मौजूद था।

स्पूतनिक की रिपोर्ट के अनुसार, NeoCoV कोई नया वायरस नहीं है, बल्कि ये वायरस कुछ साल पहले फैले MERS -CoV वायरस से जुड़ा हुआ है। MERS -CoV वायरस साल 2012 से 2015 के दौरान खाड़ी देशों में फैला था। इस वायरस से MERS नामक बीमारी होती है, जो बेहद जानलेवा मानी जाती है। ये वायरस कोरोना के SARS -CoV -2 से काफी मिलता -जुलता है।

रिपोर्ट में इस बात को साफ किया गया है कि कोरोना का नया वेरिएंट कहलाने वाला यह वेरिएंट MERS – CoV वायरस और कोरोना वायरस के SARS -CoV -2 दोनों के गुण है। दरअसल, इस NeoCoV वेरिएंट को MERS -CoV से मौत के खतरे वाला और कोरोना से तेजी से फैलने वाला गुण मिला है।

जानिए क्या है MERS -CoV संक्रमण

MERS -CoV के नाम से जाने – जाने वाला इस वायरस का पूरा नाम मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम कोरोना वायरस है। इस बीमारी के लक्षणों में बुखार, खांसी और सांस लेने में तकलीफ शामिल है। ये बीमारी इतनी घातक है कि अगर इस वायरस से 10 लोग भी संक्रमित है तो उसमें से 3 से 4 लोगों की मौत होना संभव है। WHO की माने तो इस वायरस का पहला केस 2012 में सऊदी अरब में पाया गया था। और वहीं से इस बीमारी का फैलाव शुरु हुआ था।

क्या NeoCoV से है इंसानों को खतरा?

हालांकि अभी तक इंसानों के NeoCoV वायरस से संक्रमित होने की खबर नहीं आई है। लेकिन WHO का कहना है कि उन्हें इस बात की खबर है, बस इस वायरस को लेकर स्टडी करने की जरुरत है ताकि यह पता चल सके की क्या इंसानों को इससे खतरा है?

क्या वैक्सीन है NeoCoV पर असरदार?

जब इस वायरस पर रिसर्चर्स की गई तो यह बात सामने आई की ये नया कोरोना वेरिएंट NeoCoV किसी भी तरह की इम्यूनिटी को चकमा देने में सक्षम है। इतना ही नहीं ये वेरिएंट कोरोना वायरस के मौजूदा सभी वैक्सीन पर भी बेअसर है। ये तो हमने जान लिया की NeoCoV और MERS – CoV क्या हैं लेकिन जिन्हें ये नहीं पता की म्यूटेशन और वेरिएंट क्या होता है वो जान ले की आखिर यह वेरिएंट शब्द आखिर क्या है?

क्या होता है म्यूटेशन और वैरिएंट?

जब कभी भी किसी सूक्ष्मजीव या फिर वायरस के जेनेटिक स्ट्रक्चर में बदलाव होता है, तो उसे म्यूटेशन कहते है। जैसे हम अपनी सुरक्षा के लिए नए – नए बचाव ढूढ़ते है उसी तरह यह वायरस भी खुद को बचाए रखने के लिए खुद में लगातार बदलाव करते रहते है, और इसी बदलाव को म्यूटेशन कहते है।

इसी म्यूटेशन के कारण आगे चलकर वायरस के नए वेरिएंट बनते है। हम इसे नया वेरिएंट इसलिए कहते है क्योंकि यह मूल वायरस से थोड़ा अलग होता है, लेकिन यह इतना अलग भी नहीं होता कि इसे नए संक्रमण का नाम दे दिया जाए।

अब तक कितने वेरिएंट कर चुके है वार?

अल्फा, बीटा, गामा, डेल्टा और अब ओमीक्रॉन। ये सुनने में तो मैथ्स या फिजिक्स के कोई टर्म जैसे लगते है, लेकिन ये कोरोना के अलग – अलग वेरिएंट है। इनमें से हर वेरिएंट एक – दूसरे से अलग है। WHO ने इन वेरिएंट को मुख्य रुप से दो तरह से क्लासिफिकेशन किया है। जिसमें है ‘वेरिएंट ऑफ कंसर्न’ और दूसरा है ‘वेरिएंट ऑफ इंटरेस्ट’ जिसमें अल्फा, बीटा, गामा, डेल्टा को ‘वेरिएंट ऑफ कंसर्न’ में रखा गया है और लैम्बडा एवं एमयू जैसे वेरिएंट को ‘वेरिएंट ऑफ इंटरेस्ट’ में रखा गया है। तो चलिए एक – एक कर इन सभी अल्फा, बीटा, गामा को जान लेते है।

अल्फा वेरिएंट – पिछले साल कोरोना के इस अल्फा वेरिएंट ने मौत का खूब तांडव मचाया था। इस मेथ्स के टर्म जैसे लगने वाले अल्फा को वैज्ञानिकों ने B.1.1.7 का नाम दिया। जिसे सबसे पहले ब्रिटेन में खोजा गया था, और यही से इस वेरिएंट ने पूरी दुनियां में अपना हमला बोला था। इस वेरिएंट ने अमेरिका तक में तबाही मचा दी थी। इस वेरिएंट में वैज्ञानिकों को 23 म्यूटेशन देखने को मिले थे।

बीटा वेरिएंट – असान भाषा में अगर इनका परिचय दिया जाए तो यह कोरोना के दूसरे भाई है। जिन्हें हमारे वैज्ञानिकों ने B.1.351 नाम दिया है। इस वेरिएंट के दो म्यूटेशन E48K और N501Y को सबसे ज्यादा खतरनाक माना गया है। वैज्ञानिकों का ऐसा मानना है कि यह उन लोगों को संक्रमित कर सकता है जो कोरोना वायरस से उबर चुके है।

गामा वेरिएंट – यह वायरय सबसे पहले ब्राजील में मिला था। गामा वेरिएंट को वैज्ञानिकों ने नाम दिया है P.1 , गामा वेरिएंट के दो स्ट्रेन E484K और N501Y है, जो काफी खतरनाक है। वैसे आप भी यही सोच रहे होंगे की इनके नामों से असान तो किसी गाड़ी का नंबर होता है। खैर अब बात करते है डेल्टा की।

डेल्टा वेरिएंट – आखिरकार यह वायरस सच्चा देशभक्त निकला क्योंकि यह वायरस सबसे पहले भारत में ही पाया गया था। हमारे वैज्ञानिकों ने पिछले साल अक्टूबर में इस वायरस को ट्रेस किया था, और इसे नाम दिया था B.1.617.2

ओमीक्रॉन वेरिएंट – यह वेरिएंट फिलहाल उसी तरह चर्चा में है जिस तरह किसी नए सुपरस्टार की दमदार एक्टिंग से उसकी चर्चा में तेजी आ जाती है। ओमीक्रॉन कई देशों में पाया गया है। इन्हें वैज्ञानिकों B.1.1.529 नाम दिया। इस वेरिएंट पर अभी भी रिर्सच जारी है। हालांकि कोरोना के इस वेरिएंट को काफी इंफेक्शियस बताया जा रहा है। इस वेरिएंट को पहली बार दक्षिण अफ्रीका में पहचाना गया था।

लैम्बडा वेरिएंट – यह वेरिएंट सबसे पहले पेरु में पाया गया था। जिसे नाम दिया गया C.37 इस वेरिएंट को WHO ने ‘वेरिएंट ऑफ इंटरेस्ट’ में रखा।

एमयू वेरिएंट – यह वेरिएंट सबसे पहले कोलंबिया में पाया गया था। 30 अगस्त 2021 को WHO ने इसे B.1.621 का नाम दिया। कोरोना के इस वेरिएंट को भी रखा गया ‘वेरिएंट ऑफ इंटरेस्ट’ में। अब आप सोच रहे होंगे की ये ‘वेरिएंट ऑफ इंटरेस्ट और वेरिएंट ऑफ कंसर्न’ क्या है। तो चलिए एक नजर इन पर भी डाल ही लेते है।

‘वेरिएंट ऑफ कंसर्न’ क्या होता है?

जब भी किसी वायरस के वेरिएंट की पहचान होती है तो उस वेरिएंट को और जानने – समझने के लिए WHO उसे निगरानी में रखता है। जिसे वेरिएंट ऑफ इंटरेस्ट में डाल दिया जाता है।

अगर वायरस पर स्टडी करते वक्त ऐसा पता चलता है कि यह वेरिएंट तेजी से फैल सकता है या फिर काफी ज्यादा संक्रामक है तो उसे ‘वेरिएंट ऑफ कंसर्न’ में डाल दिया जाता है।

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