नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयन्ती पर जानिए उनसे जुड़ी कुछ खास और अनकही बातें

Subhash Chandra Bose Jayanti : भारत के स्वतंत्रता सेनानी और महान नेताओं में से एक सुभाष चंद्र बोस (Subhas Chandra Bose) का जन्म 23 जनवरी सन् 1897 में ओडिशा के कटक शहर में हुआ था। भारत में हर साल 23 जनवरी को उनकी जन्म जयंती मनाई जाती है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी के जन्मदिन को पराक्रम दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। उनके अविस्मरणीय योगदान का देश आजतक कर्जदार है।

इस साल उनकी 125वीं जयंती मनायी जाएगी। अंग्रेजों को धूल चटाने वाले सुभाष चंद्र बोस के जोशीले विचार और भाषण आज भी देश के युवाओं के लिए प्रेरणादायक है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस न केवल स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे बल्कि लोगों के लिए वो रोल मॉडल थे।

आइए जानते उनसे जुड़ी कुछ खास बाते : – स्वामी विवेकानंद से प्रभावित थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस

नेताजी के पिता उन्हें आईएएस (IAS) बनाना चाहते थे। जिसके लिए उनके पिता ने उन्हें विदेश भेजा था। 1920 में नेताजी ने आईएएस में चौथे स्थान से पास हुए। लेकिन नेताजी के दिलो – दिमाग पर केवल स्वामी विवेकानंद के आदर्शों और ज्ञान का कब्जा था। ऐसे में बला आईसीएस (जिसे आज आईएएस कहते हैं)) बनकर वो अंग्रेजों की गुलामी को नहीं करते। इसलिए उन्होंने उस पद को त्याग दिया।

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दुसरे विश्व यु’द्ध के दौरान, अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए नेताजी ने जापान की मदद लेकर आजाद हिंद फौज का गठन किया। और उनका ‘तुम मुझे खू’न दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ नारा राष्ट्रीय नारा बन गया। कहा जाता है कि जब नेताजी ने जापान और जर्मनी से मदद लेने की कोशिश की थी तो ब्रिटिश सरकार ने 1941 में उन्हें खत्म करने का आदेश दिया था।

प्रमुख हस्तियों के साथ थे वैचारिक मतभेद

जैसा कि हम जानते है कि नेताजी को अंग्रेजों के साथ काम करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी, इसलिए वे स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए और कांग्रेस पार्टी के सदस्य बन गए। लेकिन महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) और जवाहर लाल (Jawaharlal Nehru) जैसी प्रमुख हस्तियों के साथ काम करने के बावजूद नेताजी के बीच बड़े वैचारिक मतभेद थे। इसका कारण गांधी जी का हिं’सा के खिलाफ होना था।

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दरअसल, कांग्रेस (Indian National Congress) में एक क’ट्टरपंथी नेता होने के नाते नेताजी 1938 में पार्टी के अध्यक्ष बने लेकिन गांधी और पार्टी के साथ मतभेद होने के कारण उन्हें बाहर कर दिया गया। ये तो हम सभी जानते है कि नेताजी औपनिवेशिक शासकों के खिलाफ यु’द्ध छेड़ना चाहते थे, लेकिन गांधी हिं’सा खिलाफ थे और यही बात उन दोनों के बीच मतभेद का कारण बनी।

लिख रहा हूं मैं अजांम जिसका कल आगाज आएगा। मेरे ल’हू का हर एक कतरा इकंलाब लाएगा। मैं रहूं या न रहूं पर ये वादा है तुमसे मेरा कि मेरे बाद वतन पर मरने वालों का सैलाब आएगा’‘……नेताजी की कही ये बात आज इस भारत में हम अपनी खुली आंखों से देख रहे है।

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