भारत की प्रसिद्ध मूर्तिकार माधवी पाल के जीवन की कहानी जिन्होंने मनवाया अपनी हुनर का लोहा

आज हम आपको कहानी बताएंगे झारखंड (Jharkhand) की पहली महिला मूर्तिकार माधवी पाल (Murtikar Madhavi Pal) की, अपने पति के निधन के बाद उन्होंने पति के ही काम को आगे बढ़ाया और आज वह एक वर्कशॉप चलाते हैं जिसमें 7 से 8 लोगों को रोजगार भी दे रही हैं।

माधवी पाल मूर्तिकार के पति का निधन साल 2012 में हो गया था। इसके बाद परिवार की जिम्मेदारी चलाने का भोज माधवी पाल पर आ गया था। उन्होंने अपने पति के काम को आगे बढ़ाने की सोची और मूर्ति बनाने का काम शुरू कर दिया। माधवी पाल के पति भी मूर्तिकार थे और उनकी कला बेहतरीन थी। झारखंड में उन्हें लोग बहुत सम्मानित मूर्तिकार के नाम से जानते थे।

ऐसे हुई शुरूआत

माधवी पाल कोकर इलाके में वर्कशॉप को तैयार किया। उन्होंने भगवान गणेश, लक्ष्मी, सरस्वती की मूर्ति बनाना शुरू कर दिया। जो लोग उनके पति के पास काम करते थे वह लोग काम छोड़ कर चले गए। तब माधवी पाल ने अपने अन्य लोगों को अपने साथ जोड़ा और काम करना शुरू किया। लोगों को डर था की माधवी शायद पहले सैलरी भी टाइम पर नहीं दे पाएंगी लेकिन बाद में तनख्वाह के साथ-साथ बोनस देना भी शुरू किया। माधवी पाल की बनाई हुई मूर्ति को टीपू दाना और रामगढ़ के लोग लेकर जाते हैं।

राज्य की पहली मूर्तिकार

माधवी पाल को झारखंड की राज्य की पहली महिला मूर्तिकार का सम्मान भी दिया जा चुका है। वहीं उनके बच्चों की बात करनी है तो उन्होंने मूर्ति बनाकर अपने बच्चों को कामयाब बनाया। उनकी बेटी और बेटा दोनों बेंगलुरु में अच्छी नौकरी करते हैं। माधवी पाल का बेटा बेंगलुरु में इंजीनियर है और उनकी बेटी सॉफ्टवेयर प्रोफेसर है।

माधवी पाल कहती हैं कि जब उनके ऊपर जिम्मेदारी आए तब उन्होंने खुद को संभाला माहौल भी सम्भाला। जब उन्हें लगा कि वह परिवार में एकमात्र कमाने वाली सदस्य हैं तब उन्होंने मूर्ति बनाने के कार्य को आगे बढ़ाया और उन्हें खुशी है कि आज उन्होंने इस मुकाम को पा लिया है।

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