पिता किसान, मां गृहि‍णी, झारखंड की बेटी सलीमा ने झोपड़ी से तय किया ओलंपिक तक का सफर

ओलंपिक में भारत की ओर से खेलने वालों भारतीय खिलाड़ियों का जीवन संघर्षों से भरा है, कोई समाज से तो कोई अपने आर्थिक हालातों से निकलकर टोक्यो तक पहुंचा है. ऐसी ही एक खिलाड़ी है भारतीय महिला हॉकी टीम में खेलने वाली सलीमा टेटे जिन्होंने झारखंड के एक छोटे से गांव से टोक्यो तक का सफर तय किया है.

झारखंड के सिमडेगा जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी दूर पिथरा पंचायत के एक छोटे से गांव से आने वाली सलीमा ने गांव की उबड़-खाबड़ पगडंडियों बांस के स्टिक व बॉल से हॉकी खेलना शुरू किया था. वह लठ्ठाखम्हन में हर साल प्रतियोगिता में भी हिस्सा लेती थी।

बेहद गरीब परिवार से है सलीमा

सलीमा अपने परिवार के साथ गांव में ही बने एक मिट्टी के मकान में रहती है जहां उनके पिता सुलक्सन टेटे खेत में हल जोतते हैं। सलीमा की मां सुबानी टेटे गृहि‍णी है और सलीमा की चार बहनें इलिसन, अनिमा, सुमंती एवं महिमा टेटे हैं।

ओलंपिक में खेलने वाली जिले की पहली बेटी सलीमा

सलीमा का चयन ओलंपिक में होने के बाद से ही गांव में खुशी का माहौल हैं. सलीमा से पहले 1980 में पुरुष वर्ग में सिल्वानुस डुंगडुंग का इसी गांव से ओलंपिक के लिए चयन हुआ था।

बता दें कि पूरे जिले में सलीमा पहली लड़की है जिसने आज ओलंपिक तक का सफर तय किया है. अब भारतीय महिला हॉकी का आज शाम में सेमीफाइनल मैच है और हर किसी को उम्मीद है कि महिला हॉकी टीम आज फाइनल में पहुंचेगी और पदक लेकर ही वापस लौटेगी।

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