येदियुरप्पा ने छोड़ी कर्नाटक की कुर्सी, दिल्ली दरबार किसे पहनाएगा अब कांटों से सजा ताज ?

आख़िरकार कर्नाटक के ताक़तवर नेता और मुख्यमत्री बीएस येदियुरप्पा ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। राज्य में भाजपा सरकार के दो साल पूरे होने पर कर्नाटक विधान सभा के बैंक्वेट हॉल में भावुक स्वर में बोलते हुए सीएम येदि ने पद छोड़ने का एलान किया।

लिंगायत समुदाय से आने वाले कर्नाटक में भाजपा के मजबूत क्षत्रप येदियुरप्पा के जाने के बाद अब राज्य में नए मुख्यमंत्री के नाम की सुगबुगाहट तेज हो गई है। अब देखना यह होगा कि विधानसभा चुनावों के मद्देनजर जातीय समीकरण साधते हुए दिल्ली दरबार किसे अगले दो साल के लिए कांटों भरा ताज पहनाएगा।

क्यों छोड़नी पड़ी येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री की कुर्सी ?

येदियुरप्पा के कुर्सी छोड़ने के पीछे किसी एक वजह को सीधे तौर पर ना मानते हुए कई घटनाक्रमों की परिनिती में इस फैसले को देखा जा सकता है। सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप और सरकारी कामकाज में बेटे की दखलंदाज़ी से सहयोगियों की नाराजगी के चलते येदियुरप्पा को पद छोड़ना पड़ा।

इसके अलावा एक वजह वह ‘इकरारनामा’ भी है जिसके मुताबिक भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने येदि ने सरकार के 2 साल पूरे होने पर पद छोड़ने का वादा किया था।

वहीं पार्टी विधायक और कई नव नियुक्त मंत्रियों की दिल्ली जाकर सरकार की कार्यप्रणाली के खिलाफ शिकायत और कोरोनाकाल में महामारी रोकथाम की दिशा में सरकार के प्रयासों के चलते भी येदियुरप्पा के पद छोड़ने का दबाव बना।

कौन लेगा येदियुरप्पा की जगह?

कर्नाटक में येदियुरप्पा के जाने के बाद पार्टी आलाकमान के सामने कई तरह की चुनौतियां हैं जहां केंद्रीय नेतृत्व को एक मजबूत चेहरे को लाना होगा वहीं पार्टी के भीतर नेताओं की आपसी गुटबाजी को रोकना भी काफी मुश्किल होगा।

जातीय समीकरण साधने की बड़ी चुनौती

कर्नाटक की राजनीति में बीजेपी, कांग्रेस और जेडीएस का चुनावी जातिगत आधार लगभग बंटा हुआ है। य़ेदियुरप्पा राज्य के लिंगायत समुदाय से आते हैं जो कर्नाटक की राजनीति में 17 फीसदी से अधिक का प्रतिनिधित्व करता है और 35 से 40 फीसदी सीटों पर चुनावी नतीजे तय करता है, ऐसे में नए चेहरे पर लिंगायत को थामने के अलावा वोक्कालिगा, अनुसूचित जाति, ब्राह्मण जैसी जातियों के साथ तालमेल बिठाने की जिम्मेदारी होगी।

येदियुरप्पा की तरह लोकप्रिय चेहरा तलाशने का दबाव

येदियुरप्पा चाहे आरोपों से घिरे मुख्यमंत्री रहें हों लेकिन वह राज्य के एक लोकप्रिय नेता थे इसमें कोई दो राय नहीं है, ऐसे में दक्षिण में भाजपा की चुनावी जमीन को तैयार करने के लिए ऐसे नेता की तलाश करना जरूरी है जो पार्टी की छवि को मजबूत बनाए रखने के साथ कार्यकर्ताओं में नया जोश भरे।

इसके अलावा दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए मुख्यमंत्री के सामने भाजपा को भारी बहुमत के साथ वापसी करवाने की भी चुनौती होगी।

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