मनरेगा में मजदूरी कर बाप ने बेटी को पढ़ाया, अब IAS अधिकारी बन करेगी समुदाय के लिए काम

गरीब और पिछड़ी पृष्ठभूमि से जब कोई देश में अपनी सफलता का परचम लहराता है तो रातों-रात हर किसी के लिए प्रेरणास्त्रोत बन जाता है। ऐसी ही कुछ संघर्ष की कहानियां होती हैं जो सालों तक मिसाल के तौर पर याद की जाती है।

आज हम बात करेंगे एक ऐसी ही कहानी की जिसमें मेहनत, लग्न, जज्बा सबकुछ है। कुरिचिया जनजाति से आने वाली 25 साल की श्रीधन्या सुरेश उन्हीं में से एक है।

केरल के वायनाड जिले की रहने वाली श्रीधन्या केरल के कुरिचिया समुदाय से पहली महिला है जिसने सिविल सेवा परीक्षा में सफलता हासिल की है। श्रीधन्या ने तीसरे प्रयास के बाद परीक्षा में 410वीं रैंक हासिल की।

पिता हैं दिहाड़ी मजदूर बेचते हैं तीर-धनुष

आपको बता दें कि श्रीधन्या के पिता एक दिहाड़ी मजदूर हैं जो मनरेगा में भी काम करते हैं एवं काम नहीं मिलने पर गांव में ही धनुष और तीर बेचकर अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं।

 

अब अपने पिता की आमदनी पर श्रीधन्या को दो वक्त की रोटी मिल जाती यही काफी था, पढ़ाई का तो वह सोच भी नहीं सकती थी। बचपन से ही बुनियादी सुविधाओं का अभाव झेलने वाली श्रीधन्या के तीन भाई-बहन है।

आदिवासी हॉस्टल में किया वार्डन का काम

श्रीधन्या ने सेंट जोसेफ कॉलेज से जूलॉजी में अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी की जिसके बाद उन्होंने कालीकट विश्वविद्यालय से पोस्ट-ग्रेजुएशन पूरा किया।

श्रीधन्या शुरू से ही सिविल सेवाओं के बारे में पढ़ती रहती थी और तैयारी का सोचती थी। कॉलेज पूरी होने के बाद श्रीधन्या केरल के अनुसूचित जनजाति विकास विभाग में एक क्लर्क के तौर पर काम करने लगी और कुछ समय बाद वायनाड में आदिवासी हॉस्टल की वार्डन बन गई और तैयारी करने लगी और कुछ समय बाद वह कोचिंग के लिए तिरुवनंतपुरम चली गई।

आदिवासी समुदाय के लिए करना चाहती है काम

सिविल सेवा में सफलता हासिल करने के बाद श्रीधन्या का कहना है कि वह आदिवासी समुदाय के लिए काम करना चाहती है। वह कहती है कि मैं राज्य के सबसे पिछड़े जिले और समुदाय से आती हूं ऐसे में एक आदिवासी आईएएस अधिकारी होने के नाते अब मैं उन लोगों के लिए काम करना चाहती हूं।

वहीं श्रीधन्या के पिता कहते हैं कि हमारे जीवन में हमनें तमाम कठिनाइयों का सामना किया लेकिन अपने बच्चों की शिक्षा से समझौता कभी नहीं किया।

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