इसलिए पीरियड्स में लड़कियों को रसोई में जाने से रोकते हैं, हर काल्पनिक बात का सच जानिए

महिलाओं को हर महीने एक प्राकृतिक प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, जिन्हें हम पीरियड का नाम देते हैं। आज हम आपको पीरियड से जुड़े कुछ फैक्ट्स और हकीकत के बारे में बताएंगे। सभी काल्पनिक बातों को डॉ जय मदान नहीं अपनी सोशल मीडिया प्लेटफार्म से वीडियो के जरिए फैक्ट्स के साथ प्रस्तुत किया है, लेकिन उससे पहले आप यह जानिए कि आखिर जय मदान कौन है?

कौन है जय मदान

डॉ जय मदान एक ज्योतिषी और वास्तु विशेषविद के तौर पर जाना-पहचाना नाम है। छोटी उम्र से ही उन्होंने अपना सफर अध्यात्म में शुरू कर दिया था। जय मदान की 11 साल की एक बेटी है उनकी बेटी भी एक टैरो कार्ड रीडर है। वहीं जय मदान की बात करें तो जय मदान को मोटिवेशनल स्पीकर, रिलेशनशिप काउंसलर के तौर पर भी जगह-जगह आमंत्रित किया जाता है। इसके साथ ही उन्होंने फिलॉसफी में दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कॉलेज से ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की।

500 साल पहले जुड़ती है आज की कहानी

अब बात करते हैं जय मदान द्वारा पीरियड के बारे में बताए गए कुछ फैक्ट्स के बारे में। जय मदान बताती हैं कि पीरियड से संबंधित आज भी हमारे भारतीय घरों में कई काल्पनिक बातों को माना जाता है।

वे बताती हैं कि इसका सच 500 साल पुराना है। वह कहती है कि 500 साल पहले संसाधनों की कमी होती थी। इंसानों के पास पूरी तरह से कपड़े भी नहीं होते थे और ना ही महिलाओं के लिए सैनेटरी पैड होते थे। इसीलिए महिलाएं पीरियड आने पर कपड़े का इस्तेमाल किया करती थी।

रसोई के समान खुद तैयार करती थी महिलाएं

डॉ जय मदान बताती हैं कि इतने सालों पहले भारतीय घरों में आटा पीसने के लिए चक्की का प्रयोग किया जाता था इसके अलावा मिर्च हल्दी जैसे मसालो को कूटकर के तैयार किया जाता था। वह बताती है कि महिलाओं को खुद चक्की में गेहूं पीस करके आटा बनाना पड़ता था।

शौच की भी नहीं थी सुविधा

वहीं जय मदान आगे बताती हैं कि महिलाओं के लिए तब शौच करने के लिए भी एक पर्याप्त जगह नहीं होती थी। वह कहती है कि आज भी भारत के कई राज्यों व कई गांवों में पूरी तरीके से शौचालय नहीं बनाए गए हैं। मदान आगे कहती है कि शौचालय के अलावा महिलाओं को पूरी तरीके से नहाने की व्यवस्था तक नहीं होती थी। तालाब में जाकर के महिलाएं नहाती थी।

मन्दिर भी होता था दूर

रसोईघर और नहाने के बारे में बताने के बाद वह कहती हैं कि गांव के अंदर सभी के घरों में पूजा गृह नहीं होता था। 500 साल पूर्व गांव के अंदर एक सार्वजनिक मंदिर हुआ करता था जिसमें गांव के सभी लोगों का आकर की पूजा अर्चना करते थे।

इसी लिए रोका जाता था

जय मदान आगे बताती है कि पीरियड के दौरान महिलाएं अधिक खून बहने से थोड़ा सा चिड़चिड़ी हो जाती है। इसके साथ ही वह बताती हैं कि शरीर की एनर्जी नीचे की तरफ जाने लगती है।

तो इस परिस्थिति में महिलाओं को रसोई घर के काम करने से लेकर मंदिर जाने के लिए रोका जाता था। उन्हें दूर-दूर न चलने देने के लिए आराम करने के लिए इन जगहों पर जाने से रोका जाता था। पहले यह कारण होता था कि महिलाएं अगर मंदिर जैसी शुद्ध जगह पर शरीर से बेहतर खून के साथ जाएंगी तो उन्हें खुद अच्छा नही लगेगा।

आज नही है कोई डर

जय मदान आगे बताती है कि समय बदलता गया जिसके बाद आज सभी लोगों के घरों में शौचालय बन चुके हैं। इसके अलावा सभी के घर में मंदिर भी बन चुके हैं। वहीं महिलाओं को रसोईघर के समान तैयार करने के लिए गेहूं पीसने, मसलों को कूटने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इसलिए अब पीरियड्स में मंदिर ना जाना साथ ही रसोई घर में ना जाने देना गलत बात है। महिलाएं अब पीरियडस के दौरान इन चीजों का भी प्रयोग कर सकती हैं।

भारत की स्थिति है खराब

वहीं जय मदान आखिरी में कहती हैं कि भारत में केवल 20% महिलाएं ही सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं। वह कहती हैं कि इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि रेड लाइट पर मिलने वाले लोग साथ ही हमारे घर में आने वाले नौकर समेत कई लोग सेनेटरी नैपकिन को जानते तक नहीं है।

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