Mohan Singh Oberoi भारत के इतिहास में अगर होटल इंडस्ट्री को लेकर कभी कुछ लिखा जाएगा तो मोहन सिंह ओबेरॉय का नाम पहली पंक्ति में स्वर्ण अक्षरों के साथ लिखा जाएगा। ब्रिटिश कालीन भारत में 1898 में पैदा हुए मोहन सिंह ओबेरॉय आज हमारे बीच नहीं है लेकिन उनका खड़ा किया हुआ साम्राज्य और विरासत इस देश का मान बढ़ाने के लिए काफी है।
Inspirational Story of Mohan Singh Oberoi
मोहन सिंह अपनी मेहनत के दम पर हजारों करोड़ के मालिक बने, आइए जानते हैं कि कैसे एक गांव से चलकर हजारों करोड़ के बिजनेस तक पहुंचे मोहन सिंह और कैसा रहा उनका सफर।
बचपन में उठ गया था पिता का साया
मोहन सिंह का जन्म स्वतंत्रता से पहले भारत के पंजाब प्रांत के भाऊन कस्बे में हुआ जहां उनकी शुरुआती पढ़ाई रावलपिंडी के दयानंद एंग्लो वैदिक स्कूल में हुई गरीबी में बचपन गुजारने वाले मोहन सिंह के सिर से पिता का साया महज 6 महीने की उम्र में उठ गया जिसके बाद उनकी मां ने ही उनका पालन-पोषण किया। स्कूल पूरी करने के बाद मोहन सिंह रावलपिंडी के एक कॉलेज चले गए और फिर नौकरी तलाशने लगे। Mohan Singh Oberoi
नौकरी की तलाश में शहर-दर-शहर भटके
कॉलेज खत्म करने के बाद मोहम सिंह नौकरी की तलाश में शहर शहर भटके लेकिन उन्हें कहीं नौकरी नहीं मिली। एक समय ऐसा भी आया जब नौकरी नहीं मिलने के कारण वह खुद को कमजोर समझने लगे। Mohan Singh Oberoi
एक दो जगह छोटी-मोटी नौकरी करने के बाद वह वापस गांव लौट आए जहां उनकी शादी कोलकात्ता के एक परिवार में हो गई और वह अपनी पत्नी के साथ कोलकाता रहने लगे। Mohan Singh Oberoi
40 रूपए में होटल की नौकरी ने बदली किस्मत
नौकरी की तलाश में वह एक बार फिऱ शिमला पहुंचे जहां एक होटल सिसिल में क्लर्क की नौकरी करने लगे जिसके लिए उन्हें 40 रूपए के मासिक वेतन पर रखा गया।
मोहन सिंह होटल में मैनेजर, क्लर्क, स्टोर कीपर जैसे सभी काम जरूरत पड़ने पर संभाल लेते थे जिससे उनका मैनेजर उनसे काफी खुश रहता था। धीरे-धीरे उनके काम को देखते हुए उनका वेतन बढ़ा दिया गया और होटल में रहने की जगह मिल गई जहां वो अपनी पत्नी के साथ रहने लगे। Mohan Singh Oberoi
ब्रिटिश दंपती से 25 हजार में खरीदा होटल
आपको बता दें कि सिसिल होटल एक ब्रिटिश दंपती का था लेकिन जब दंपती भारत छोड़कर जाने लगी तो उन्होंने मोहन सिंह को होटल खरीदने का ऑफर दिया और 25000 रूपए कीमत रखी।
मोहन सिंह के पास इतने पैसे नहीं थे लेकिन वह होटल खरीदना चाहते थे। मोहन सिंह ने पैसे जुटाने के लिए अपनी पैतृक संपत्ति तथा पत्नी के जेवरात गिरवी रखकर पैसे का प्रबंध किया और 14 अगस्त 1934 को शिमला का सिसिल होटल मोहन सिंह का हो गया।
1947 में खुला ओबेरॉय का पहला होटल
1947 में मोहन सिंह ने अपना ओबेरॉय पाम बीच होटल खोला जिसके साथ में एक मर्करी ट्रैवल्स नाम की ट्रैवल एजेंसी खोली। वहीं 1949 में उन्होंने ‘द ईस्ट इंडिया होटल लिमिटेड’ नाम की एक कंपनी खोली जिसके बाद उन्होंने दार्जिलिंग समेत कई जहगों पर होटल खरीदे।
1966 में उन्होंने मुंबई में एक पोश इलाके में 34-36 मंजिल का खुद का होटल बनाया जिसकी कीमत 18 करोड़ रूपए आंकी गई। ऐसे करते करते मोहन सिंह देश के सबसे बड़े होटल उद्योगपति बन गए।
वर्तमान में ओबेरॉय होटल ग्रुप एक बड़ा होटल ग्रुप है जिसका टर्नओवर 1,500 करोड़ के करीब हैं वहीं कंपनी की मार्केट वैल्यू 7000 करोड़ रूपए हैं। मोहन सिंह को 2000 में सरकार ने पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया। Mohan Singh Oberoi
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