तीसरी पास इस व्यक्ति की कविताओं पर हो रही है पीएचडी, राष्ट्रपति कर चुके हैं पद्मश्री से सम्मानित

71 वर्षीय ओडिशा के बारगढ़ में पैदा हुए हलधर नाग के संघर्ष और सफलता की कहानी हर किसी को आश्चर्यचकित कर देती है। एक गांव से निकले इस कवि की कोसली भाषा की कविता पर आज पीएचडी हो रही है।

वहीं संभलपुर विश्वविद्यालय इनके सभी लेखन कार्य को हलधर ग्रंथाबली-2 नामक एक पुस्तक के रूप में अपने पाठ्यक्रम में शामिल कर चुका है। आइए जानते हैं हलधर नाग की कहानी जिन्हें राष्ट्रपति उनकी कविताओं के लिए पद्मश्री से भी सम्मानित कर चुके हैं।

बचपन में हो गई थी पिता की मौत

हलधर का जन्म 1950 में ओडिशा के बारगढ़ में एक गरीब परिवार में हुआ और बचपन में ही पिता का साया सिर से उठ गया था। पिता के जाने के बाद हलधर पढ़ाई करने की सोच भी नहीं सकते थे, ऐसे में उन्होंने तीसरी कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी।

पेट की भूख मिटाने के लिए वह एक मिठाई की दुकान में बर्तन मांजने लगे। हलधर शुरू से ही पैरों में कुछ नहीं पहनते हैं और सादगी पसंद इंसान है। वह हमेशा धोती और बनियान ही पहनते हैं।

20 महाकाव्य है कंठस्थ

1990 में हलधर ने अपनी पहली कविता ‘धोडो बारगाछ (केले का पुराना पेड़) एक स्थानीय पत्रिका को भेजी और उनकी कविता वहां प्रकाशित हुई। इसके बाद हलधर की सभी 4 कविताएं उसी पत्रिका ने छापी। आपको जानकर हैरानी होगी कि हलधर नाग को अब तक लिखी अपनी सारी कविताएं कंठस्थ हैं।

युवाओं को पसंद आती है कोसली कविताएं

हलधर नाग अपना लिखा हमेशा याद रखते हैं, वह बिना भूले कितने भी साल पुरानी कोई कविता सुना देते हैं। बता दें कि हलधर जिस शैली में कविताएं लिखते हैं वह नौजवानों को बेहद पसंद आती है।

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