व्यापार छोड़ बने वकील और फिर झुग्गी के बच्चों को देख बदली जिंदगी, आज टीचर बन चलाते हैं 5 फ्री स्कूल

दुनिया में हर काम फायदे के लिए नहीं किया जाता है, कुछ कामों की कीमत इंसानियत भी होती है। आज हम आपको ऐसे ही एक व्यक्ति की कहानी बताएंगे जिन्होंने साबित कर दिया कि इस दुनिया में आज भी इंसानियत जिंदा है। जैसे कि लगातार हम देखते हैं कि भारत में कई एनजीओ लोगों की मदद करते हैं लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो खुद अकेले हो कर भी लोगों की मदद करना चाहते हैं।

लुधियाना में 9 जून 1966 को पैदा हुए हरिओम जिंदल पेशे से वकील हैं और इस वक्त झुग्गी झोपड़ी के बच्चों को पढ़ाने का काम करते हैं। खुद की पढ़ाई की बात करें तो हरिओम जिंदल ने 44 साल की उम्र में वकालत की और इसके बाद लॉ की डिग्री लेकर उन्होंने वकालत को अपना पेशा चुना।

व्यापारिक परिवार को छोड़ बने वकील

हरिओम जिंदल का खुद का परिवार व्यापारिक है लेकिन उन्होंने अपने पिता के व्यापार को छोड़कर वकालत को चुनने का फैसला लिया। हरिओम जिंदल के पिता का एक अच्छा खासा व्यापार था लेकिन उनका व्यापार डूब गया, जिसके बाद उन्होंने लुधियाना से दूसरी जगह रहने का फैसला लिया। हरिओम जिंदल ने परिवार की जिम्मेदारी ली और धीरे-धीरे व्यापार को आगे बढ़ाया।

झुग्गी के बच्चो को देख पसीजा मन

हरिओम जिंदल जब एक बार झुग्गी झोपड़ी के निकट से गुजरे तो उन्होंने देखा कि वहां कुछ बच्चे कूड़ा बीनने का काम कर रहे हैं। तब उनके मन में विचार आया कि इन बच्चों की किस्मत कैसे बदली जा सकती है।

इसके बाद ही हरिओम जिंदल ने एक स्कूल खोलने का निर्णय किया और वहां उन्होंने कूड़ा बीनने वाले बच्चों के हाथों में किताब और कॉपी के साथ पेन देने का फैसला किया। इस वक्त हरिओम जिंदल झुग्गी झोपड़ी के रहने वाले बच्चों के लिए 5 स्कूल चला रहे हैं जहां सैकड़ों बच्चे शिक्षा लेने के लिए आते हैं।

ए फॉर एप्पल नहीं एडमिनिस्ट्रेशन

हरिओम जिंदल स्कूल में पढ़ रहे बच्चों को ए फॉर एप्पल नहीं ए फॉर एडमिनिस्ट्रेटिव सिखाते हैं। बी फॉर बैलेट और C फॉर कॉन्स्टिट्यूशन के बारे में पढ़ाते हैं। हरिओम जिंदल बच्चों को उनके अधिकारों के प्रति भी जागरूक करते हैं। वह बच्चों को बताते हैं कि कानून में उनके लिए क्या अधिकार उपलब्ध है।

कंप्यूटर शिक्षा भी देते हैं हरिओम

स्कूल के अलावा हरिओम जिंदल 1 कंप्यूटर सेंटर भी चलाते हैं जहां बच्चों को मुफ्त कंप्यूटर सिखाने का काम किया जाता है। हरिओम जिंदल के कंप्यूटर सेंटर में 100 से ज्यादा बच्चे इस वक्त कंप्यूटर सीख रहे हैं। वह बच्चों को कॉपी पेन के बाद कीबोर्ड थमाना चाहते हैं। साथ ही तकनीकी वाली इस दुनिया के साथ जोड़ने का काम करना चाहते हैं।

हरिओम जिंदल कहते हैं कि मेरे पास तो संसाधन थे इसलिए मैं अच्छी जगह पढ़ पाया। लेकिन उनका क्या जिनके पास संसाधनों की कमी उन्हें पढ़ने का हक नहीं है। हरिओम ने साबित कर दिया कि शिक्षा की कितनी अहमियत है और बिना संसधानों के आप किसी की कैसै मदद कर सकते हैं।

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