देश की ऐसी प्रसिद्ध दरगाह जहाँ पंडित नेहरू से लेकर वाजपेयी तक ने टेका था मत्था, पढ़ें कहानी

आज हम आपको एक ऐसी जगह की कहानी बताएंगे जिसे मुस्लिम धर्मस्थल के तौर पर जाना जाता है। लेकिन यहां दर्शन करने के लिए गैर मुस्लिम लोग ज्यादा आते हैं। यह जगह हर धर्म के लिए खुली हुई है यहां हिंदू मुस्लिम जैन आदि धर्म के लोग अपने दिल से मुराद मांगने आते हैं। मान्यता है कि यहां सब की मुरादे पूरी भी होती है।

हम बात कर रहे हैं राजस्थान (Rajasthan) के अजमेर शरीफ की दरगाह (Ajmer Sharif Dargah) की। ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की अजमेर शरीफ दरगाह में लोग मन्नत मांगते हैं और मुरादें पूरी होने पर दरगाह पर आकर शुक्रिया भी अदा करते है।

अकबर भी आये थे पैदल

अजमेर शरीफ की दरगाह पर एक बार मुगल राजा अकबर भी 437 किलोमीटर पैदल चलकर पुत्र प्राप्ति के लिए आए थे। अजमेर शरीफ की दरगाह पर हर धर्म के लोग आते हैं। इस दरगाह पर सभी लोगों की मुरादे पूरी होती है।

ऐसा है इतिहास

अजमेर शरीफ की दरगाह को लेकर इतिहास है कि लगभग 89 साल की उम्र में ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती (khawaja moin uddin chishti) ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया था। इसके बाद उनसे जो भी मिलने आता था या उससे मिलने के लिए इंकार कर दिया करते थे।

एक रोज नमाज पढ़ते पढ़ते वह अल्लाह को प्यारे हो गए थे, जिसके बाद उनके चाहने वालों ने उन्हें उसी जगह दफना दिया था। उनकी कब्र बना दी, इसके अलावा मुद्दीन चिश्ती का एक मकबरा भी बनवाया गया। जिसे आज ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती मकबरा के नाम से जाना जाता है।

निज़ाम गेट है मौजूद

अजमेर शरीफ की दरगाह में मुख्य द्वार को निज़ाम गेट के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है कि साल 1911 में हैदराबाद (Hyderabad) स्टेट के निज़ाम ने मीर उस्मान अली खान ने इसका निर्माण करवाया था। इसके बाद में शाहजहां द्वारा खड़ा किया गया था जिसे शाहजहानी दरवाजा कहते हैं। वहीं अंत में सुल्तान महमूद खिलजी द्वारा भी बुलंद दरवाजा बनवाया गया था। बुलंद दरवाजे पर उर्स अवसर पर झंडा चढ़ा कर समारोह आरंभ किया जाता है।

60% जाते है हिन्दू

अजमेर शरीफ की दरगाह पर रोजाना 20 से 22 हजार लोग चादर चढ़ाने जाते हैं। वहीं एक अनुमान की मानें तो लगभग 60% लोग हिंदू होते हैं। यहां राजा मानसिंह का लगवाया हुआ यहां चांदी का कटहरा भी है। वही ब्रिटिश महारानी मेरी क्वीन का अकीदत के रूप में भी यहां बनवाया गया वजू का हौज है।

नेहरू ने भी टेका था मत्था

वहीं भारत के आजाद होने के बाद प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (Pandit Jawaharlal Nehru) ने भी यहां मत्था टेका था। उन्होंने वहां खादिम परिवार को अकीदत से महाराज का नाम दिया था। इसके अलावा नेहरू ने महफिल खानों की सीढ़ियों पर चढ़कर दरगाह में उपस्थित जायरीनो को संबोधित भी किया था।

इसके अलावा अजमेर शरीफ की दरगाह पर रविंद्र नाथ टैगोर, सरोजिनी नायडू, पंडित मदन मोहन मालवीय से लेकर जेपी नारायण (JP Narayan), अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) व इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) जैसी विख्यात हस्तियां भी दर्शन करने के लिए पहुंच चुके हैं।

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