राजस्थान का अनोखा गाँव जहाँ करोड़पति भी कच्चे मकान में रहते,अजब गजब किस्से सुन रह जाओगे हैरान

बड़ा कुनबा बड़ी रीत,
उनके जीवन का आधार है।
अमीर गरीब में भेद नहीं है,
यही जीवन का सार है।

दोस्तों नमस्कार।

दोस्तों आज मैं आपको एक ऐसे गांव में ले चलता हूं। जहां पर 400 –500 घरों का समूह, कच्चे मकानों में जीवन बसर कर रहा है। उनकी दिनचर्या सादगी भरी है। अमीर गरीब में कोई भेद नहीं है। वहां करोड़पति भी कच्चे मकानों में ही रहता है।

अजमेर (Ajmer) जिले का यह देवमाली गांव (Devmali Village) ब्यावर (Beawar) से 20 –25 किलोमीटर की दूरी पर बसा हुआ है। इस गांव में सभी लगभग 500 घर आज भी कच्चे हैं। अमीर गरीब के अंदर कोई भेदभाव नहीं है। यहां पर करोड़पति भी कच्चे मकानों में ही रहते है।

कच्चे मकानों का क्या कारण है।
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गांव के मुखिया ने बात करते हुए दीप को बताया गांव कि बसावट के समय जब गांव में मंदिर बनाया रहा था, तो हमारे पूर्वजो ने भगवान से यही कॉल वचन किया था कि हम आपके बराबर में नहीं बैठ सकते। आप यदि पक्के मकान में रहोगे, तो हम हमेशा कच्चे मकानों में ही रहेंगे। उसी वचन की परंपरा के अनुसार आज भी गांव में मकान बनाने के लिए कारीगर आता है, लेकिन सीमेंट बजरी पत्थर नहीं आता है।

उन्होंने बताया कि हमारे गांव में कोई भी व्यक्ति दारू और मीट का प्रयोग नहीं करता है। हमारे गांव के नीचे जो भी काश्तकारी की जमीन है, वह मंदिर के नाम से है। हमारे नाम से कुछ भी नहीं है। और ना ही हमारे को किसी भी प्रकार का सरकार का सहयोग मिलता है। बहुत पुराने समय से गांव की जमीन देव जी के नाम से है, अर्थात मंदिर के नाम से चली आ रही है। लेकिन गांव में शिक्षा, नौकरी, रिश्तेदारी आज के आधुनिक समाज के हिसाब से चल रही है।

बेमाली से देवमाली।
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गांव के जानकार लोगों ने बताया कि इस गांव का पहले नाम बेमाली था किसी आपदा के कारण गांव में मंदिर का निर्माण करवाया गया। तथा देव स्थान की पूजा अर्चना करने के बाद में तथा आपदा के खतम होने के बाद में गांव का नाम भी बेमाली से देवमाली रखा गया। आज भी गांव में पुराने रीति रिवाज के हिसाब से बैल से खेती की जाती हैं। हर घर में गाय भैंस दूध के लिए रखते हैं।

उन्होंने बताया कि दो भाइयों ने आकर के यह गांव बसाया था। लेकिन एक भाई के किसी आपदा में खत्म होने के बाद में पूरा गांव एकही भाई की ओलाद है। मंदिर की सेवा किसी एक ही व्यक्ति के द्वारा की जाती है लेकिन यदि गांव उस सेवा से संतुष्ट नहीं है,तो दूसरे व्यक्ति को सेवा दी जाती है। शादी वगेरह में कोई फिजूल खर्ची नहीं होती है। यहां पर जो भी पैसा होता है वह विकास में जाता है।

अन्य।
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वहां पर गांव के पास में जो पहाड़ी है, उसके जितने भी पत्थर हैं या उसके ऊपर खड़े हुए जो भी वृक्ष है, उनका झुकाव पश्चिम दिशा की तरफ ही है। उनका मानना है कि ईश्वर इस दिशा से ही हमारे गांव में आए थे।

गांव में ट्रैक्टर, मोटरसाइकिल, कार सब सुविधाएं मौजूद है। लेकिन जो भी कार्य घर के या खेती के हैं, वह पुराने तरीके से ही किए जाते हैं।

अपने विचार।
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धीरज, धर्म धन से बड़ा,
सबसे बड़ा ईमान।
देवमाली में कोई कमी नहीं,
ना फ्री का कोई काम।

विद्याधर तेतरवाल,
मोतीसर।

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