नारायणी माता जिनके चमत्कार से पहाड़ों से घिरी बंजर भूमि हो गई पानी-पानी, आज भी बहती है धारा

आज हम आपको ऐसी माता की दिव्य कथा सुनाएंगे जिसके चमत्कार से पहाड़ों से घिरे हुए क्षेत्र में पानी की धारा बहने लगी. जी हां, अलवर जिले के घने जंगली क्षेत्र में नारायणी माता का मंदिर इसका जीता जागता उदाहरण है।

पति की लाश के साथ बैठ गई चित्ता में

ऐसा माना जाता है कि सेन समाज की कुलदेवी माता नारायणी का विवाह हुआ और जब वह पहली बार अपने पति के साथ ससुराल जा रही थी तब उस समय आवागमन के साधन नहीं थे, इसलिए दोनों पैदल ही जा रहे थे।

गर्मियों के दिन थे इसलिए एक वट वृक्ष के नीचे विश्राम करने का निश्चय किया। जब वह विश्राम कर रहे थे तभी अचानक एक सांप ने आकर उनके पति को डस लिया और वे अनंत में विलीन हो गए।

इसके बाद नारायणी माता बिलख-बिलख कर रोने लगी। शाम के समय कुछ ग्वाले अपनी गायों को लेकर वहां से गुजरे। नारायणी माता ने उनसे उनके पति के दाह संस्कार के लिए चिता बनाने को कहा। ग्वालों ने आसपास से लकड़ियां लाकर चिता तैयार की। मान्यता है कि उस समय सती प्रथा थी। इसलिए अपने पति को साथ लेकर नारायणी माता भी उनके साथ चिता पर बैठ गई।

नारायणी माता का सती होना

नारायणी माता ने सभी ग्वालों को अपना भाई कह कर संबोधित किया और अपने पति के साथ चित्ता पर बैठ गई। अचानक चित्ता में आग प्रज्वलित हो गई जिसे ग्वालों ने चमत्कार मान नारायणी माता से प्रार्थना कर कहा कि हे माता हम आपको देवी रूप मानकर आपसे कुछ मांगना चाहते हैं।

चित्ता से आवाज आई कि जो मांगना है मांग लो. उस समय अकाल पड़ा हुआ था। ग्वालों ने कहा कि हे माता हमारे इस स्थान पर पानी की कमी है जिससे हमारे जानवर मर रहे हैं कृपा करके हम पर दया करें। चित्ता से आवाज आई कि तुम में से एक व्यक्ति इस चित्ता से जलती हुई लकड़ी उठाकर भागो और पीछे मुड़कर मत देखना।

सत में शक्ति अपार है,

सत कांटों का हार।

माता के प्रकोप से,

निकली जल की धार।

जहां पीछे मुड़कर देखोगे पानी की धारा वहीं रुक जाएगी। एक ग्वाला लकड़ी उठाकर भागा और भागते भागते वह 2 कोस के करीब पहुंच गया। अचानक उसके मन में शंका हुई कि कहीं देखो पानी आ रहा है या नहीं। और जैसे ही उसने पीछे मुड़कर देखा पानी की धारा वहीं रुक गई।

आज उसी चित्ता वाले स्थान पर कुंड बना दिया गया है और उस कुंड से धारा के रूप में पानी 2 कोस दूर जाकर समाप्त हो जाता है जो एक चमत्कार है। यह घटना 1100 साल पुरानी बताई जाती है लेकिन पानी की धार आज भी जीवंत है और लगातार बनी हुई है। ना धार की दिशा बदली और ना वह स्थान बदला है।

मौसम के अनुसार पानी का बदलना

इस कुंड से गर्मियों में ठंडा पानी निकलता है और सर्दियों में गर्म पानी निकलता है. इस पानी की धार से बहुत से लोगों की बीमारियां दूर हो गई है. नारायणी माता का यह मंदिर पूरे देश में एक ही है। पौराणिक कथा के अनुसार नारायणी माता भगवान शिव की पहली पत्नी सती का अवतार मानी जाती है।

यहां पर भादवा की पूर्णिमा को मेला लगता है और भंडारा होता है। नारायणी माता के मंदिर में जो पानी का कुंड बना हुआ है उसके अंदर जब देखते हैं तो सिक्कों की आकृति नजर आती है लेकिन जब बाहर निकालते हैं तो वह पत्थर बन जाते हैं। इस प्रकार नारायणी माता चमत्कारों से भरी हुई जगत जननी है।

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