सिर पर मैला ढोने से लेकर पद्मश्री पुरस्कार तक का सफर तय करने वाली उषा चौमार, बनी महिलाओं की आवाज

लोग तुच्छ भावना से देखते थे, लेकिन वह महिला आज पद्मश्री से सम्मानित हो चुकी है। जहां एक और लोग उसे अपने घर में भी घुसने नहीं देते अब मेहमान के तौर पर बुलाते हैं। जहां मंदिर में जाने की इजाजत नहीं थी वहां अब वह पूजा करने जाती है। हम बात कर रहे हैं राजस्थान के अलवर जिले की रहने वाली उषा चौमार की। उषा कुमार की माने तो वह बचपन से मैला ढोने का काम किया करती थी। 10 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई थी।

शादी के बाद भी वह लगातार मैला ढोने का काम करती रही। साल 2003 तक उन्होंने इस काम को किया। मैला ढोने का काम करते हुए लोग उन्हें मंदिर व घरों में जाने भी नहीं दिया करते थे। 2 किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ता था। गर्मी होने के कारण लोग दूर से ही उन्हें पानी पिलाया करते थे, लोग उन्हें पिछड़ा हुआ मानते थे।

एनजीओ ने बदली उषा की किस्मत : बतौर उषा साल 2003 तक वह मैला ढोने काम करती रही। साल 2003 में सुलभ इंटरनेशनल के बिंदेश्वर पाठक अलवर आए, उन्होंने महिलाओं के साथ काम करने का मन में विचार किया। मैला ढोने वाली महिलाओं को इकट्ठा करके उनसे बात करने की सोची लेकिन अलवर की कोई भी महिला उनसे बात करने नहीं आई। मैला ढोने का काम करने वाली महिलाएं शर्म आने लगी, लेकिन फिर उषा ने सभी महिलाओं को इकट्ठा करके बिंदेश्वर पाठक से मिलवाया था।

बिंदेश्वर पाठक नई दिशा एनजीओ से जुड़कर महिलाओं को अन्य कामों में भागीदार बनाना चाहते थे। जिसके बाद साल 2003 में उषा भी नई दिशा एनजीओ से जुड़ गई। उन्होंने अचार, पापड़, जूट के थैले बनाने का काम करना शुरू कर दिया। उन्होंने ब्यूटीशियन व अन्य कार्य करना भी शुरू कर दिया। जिसके बाद देखते ही देखते उसने मैला ढोने का काम छोड़कर इसी काम को करने लगी।

विदेश में भी जा चुकी है उषा : साल 2008 में यूएन की ओर से मिशन सैनिटेशन के तहत एक कार्यक्रम रखा गया था। इस कार्यक्रम में उषा के द्वारा बनाई गई ड्रेस को विदेशी मॉडल नहीं पहन कर के कैटवॉक भी किया था। इसके अलावा खुद उषा भी भारत के अलावा अमेरिका व फ्रांस जैसे 5 देशों की यात्राएं भी कर चुकी है। वह जगह जगह जाकर के लोगों को जागरूक भी करती हैं।

पद्मश्री से सम्मान पाना बेहद खुशी की बात: भारत सरकार ने उषा को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित करने के लिए चयनित किया था। जिसके बाद उषा नेखुद को खुशनसीब माना। वह कहती हैं कि उन्होंने अलवर के साथ पूरे राजस्थान का नाम रोशन कर दिया। वह मानती है कि मैला ढोने का काम करने से लेकर पद्मश्री तक उनका जीवन बेहद चुनौतीपूर्ण रहा है। लेकिन आखिरकार उन्होंने अपने जीवन को बदल लिया। उषा ने खुद के जीवन के साथ 157 महिलाओं का जीवन बदल दिया।

आज लोग विशेष मेहमान के तौर पर बुलाते है : राजस्थान के अलवर जिले के हजूरी गेट पर रहने वाली उषा को एक समय में लोग जहां अपने से दूर करते थे। वही आज उषा को इलाके की होने वाली शादियों में बतौर विशेष अतिथि के तौर पर बुलाया जाता है। वह बताती हैं कि बचपन में उन्हें मंदिर नहीं जाने दिया जाता था। लेकिन आज वह हर रोज भगवान की पूजा करती है।

मोदी की मुरीद है उषा : बतौर उषा की मानें तो वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना प्रेरणास्रोत मानती है। वह नरेंद्र मोदी को अपना आदर्श मानती हैं। वे बताती हैं कि वह नरेंद्र मोदी से भी कई बार मिल चुकी है। मुलाकात के अलावा वह नरेंद्र मोदी को राखी भी बांध चुकी है।

उनके बारे में बताएं तो वह आज सुलभ इंटरनेशनल की अध्यक्ष है और एनजीओ नई दिशा के साथ जुड़कर लगातार महिलाओं के लिए अच्छा काम कर रही है।

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