भरतपुर का ऐसा अजेय लोहागढ़ का किला जिसे अंगेज़ 13 यु’द्धों में भी नहीं भेद पाए

18 वीं शताब्दी एन राजा सूरजमल द्वारा नियमित यह गढ़ बहुत सुंदर तरीके से बनाया गया है।लॉर्ड लेक ने 1805 में लगभग पांच – छह हफ्तों तक इस किले की घेराबंदी की, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद भी वे इसे जीत नहीं पाये।किले में बनी जवाहर और फतेह बुर्ज को मुगलों और अंग्रेजों से जीतने के बाद जश्न मनाने के रूप में बनाया गया।एक गहरी खाई से घिरे इस किले का ए दिल्ली से लाया गया है। इतिहास के मुताबिक अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ के किले पर विजय प्राप्त करने के बाद दिल्ली ले गया था,वही गेट 17 वीं शताब्दी में इस किले में लाया गया।मुंबई और मद्रास से आए सैनिकों से ब्रिटिश बल को मजबूत किया तो उन्होंने हमले को नए सिरे से अंजाम दिया।

ब्रिटिश सैनिकों पर बो’ल्डर से हमला किया गया लेकिन फिर भी उनमें से कुछ किले में प्रवेश करने में सफल रहे। किले का प्रवेश द्वार अष्ट धातु नाम से है।इस किले के निर्माण के समय पहले एक चौड़ी और मजबूत पत्थर की ऊंची दीवार बनाई गयी। के गोलों का असर नहीं हो, इसके लिए इन दीवारों के चारों ओर सैकड़ों फुट चौड़ी कच्ची मिट्टी की दीवार बनाई गयी

भरतपुर के इस किले पर आक्रमण करने में कोई भी सफल नहीं हो पाता था क्योंकि एक तो इसका ढांचा ही इस प्रकार का था कि गोले गारे की दीवार में धंस जाते थे।किले का इससे कोई नुकसान नहीं होता था। इसलिए पर सबसे ज्यादा आक्रमण अंग्रेजों ने ही की बताते हैं कि अंग्रेजों ने 13 बार इस किले पर आक्रमण करने की कोशिश लेकिन तेरा बारे में से एक बार भी वे इस किले को भेद नहीं सके इसके लिए कि अपनी स्थापत्य ढांचागत विशेषताएं हैं।

बकौल जेम्स टॉड इस किले की सबसे मजबूत धुरी इसकी दीवारें थीं जो मिट्टी से बनी हुई है बावजूद इसके इसको फतेह करना बहुत टेढ़ा काम था।किले में एक दिलचस्प संग्रहालय है जो इसके प्रमुख स्मारकों का हिस्सा है।लोहागढ़ किले का निर्माण मूल रूप से 1730 में महाराजा सूरज मल द्वारा किया गया था जिन्होंने अपने सारे धन और शक्तियों का इस्तेमाल अपने ढंग से किया।

किले की दीवार करीब सात किलोमीटर लंबी है, बताते हैं कि इसको बनाने में आठ साल का समय लगा।1826 में दुर्भाग्य से किले की दीवारों को ब्रिटिश सेना द्वारा तोड़ दिया गया था, जब इस पर कब्जा किया गया था।किला हमेशा जाटों के अधीन रहा, राज उन्हीं का था, इन्होंने किले को इतने अच्छे ढंग से निर्मित किया कि कोई आक्र’मण करने का सोचे तो भी वह सफल न हों।किले के चारों तरफ जाट राजाओं ने खाई बनायी और उसमें पानी भर दिया, इतना ही नहीं, इतिहास की जानकारी के मुताबिक कोई दुश्मन तैर कर भी नहीं पहुंच पाये इस बाबत पानी में मगरमच्छ छोड़ दिये।

एक घटना का उल्लेख यहाँ किया जा सकता है वह यह कि अंग्रेजी सेनाओं से लड़ते लड़ते नरेश जसवंतराव होल्कर ने भरतपुर में आकर शरण ली।समय उस समय रणजीत सिंह का था, उन्होंने वचन दिया कि आपको बचाने के लिये हम सब कुछ कुर्बान कर देंगे। ब्रिटिश सेना के कमांडर इन चीफ लार्ड लेक ने भरतपुर के जाट राजा रणजीत सिंह को खबर भेजी कि या तो वह जसवंतराव होल्कर अंग्रेजों के हवाले कर दे या वह खुद को मौ’त के हवा’ले।

यह धमकी जाट राजा के स्वभाव के खिलाफ थी।जाट राजा को यह धमकी बिल्कुल नहीं सुहायी और उसने लॉर्ड लेक को सन्देशा भिजवाया कि वह अपनी ताकत आजमा सकता है।कमांडर को इस प्रकार के प्रत्युत्तर की आशा न थी, उसने तुरंत अपनी टुकड़ियों से आ’क्रमण करने को कहा।जाट सेनाएं साहस भरकर डटी रही अंग्रेजी सेना तो’प से गो’ले उगलती जा रही थी और वह गोले भरतपुर की मिट्टी के उस किले के पेट में समाते जा रहे थे। तो’प के गोलों के घमासान हमले के बाद भी जब भरतपुर का किला ज्यों का त्यों डटा रहा।

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