क्रांतिकारी कवि केसरी सिंह बारहठ जिनकी रचना ने मेवाड़ के महाराणा दिल्ली दरबार जाने से रोक लिया

कवि और क्रांतिकारी दोनों शब्द एक दूसरे के पर्याय है। जब कोई आहत हो जाता है समाज से, परिवेश से और आखिर में स्वयं के साथ घटित घटनाओं से वह कविताएं रचता है और कविताओं के माध्यम से क्रांति कर उबरता है।

केसरी सिंह बारहठ भी ऐसे ही थे जो कवि होने के साथ असल जीवन में भी क्रान्तिकारी थे। अंग्रेज़ो के ख़िलाफ़ बगावत कर जेल गए। उनके भाई जोरावर सिंह बारहठ व पुत्र प्रताप सिंह बारहठ ने रास बिहारी बॉस के साथ मिलकर लॉर्ड हार्डिंग द्वितीय पर बम से हमला किया।

केसरी सिंह का जन्म 21 नवम्बर 1872 को शाहपुरा रियासत के देवखेड़ा नामक गांव में एक चारण परिवार में कृष्ण सिंह बारहठ व बख्तावर कंवर के घर हुआ था। चारण जाति को कवि जाति भी कहा जाता है। जब वे अल्पायु में थे तब ही मां का आंचल छीन गया व उनकी दादिसा ने अपनी गोद में बड़ा किया।

8 साल की उम्र में ही कंठस्थ कर लिया अमरकोश

केसरी की 6 वर्ष की उम्र में शिक्षा शाहपुर में महन्त सीताराम की देख-रेख में प्रारम्भ हुई। इसके बाद विद्वान पंडित गोपीनाथ के सानिध्य में उन्होंने शिक्षा लेनी शुरू की। उनकी बौद्धिक क्षमता इतनी प्रखर थी कि उन्होंने आठ-नौ वर्ष की उम्र में ही ‘अमरकोश’ कंठस्थ कर लिया। केसरी सिंह ने संस्कृत एवं हिन्दी के अतिरिक्त अन्य भारतीय भाषाओं बांग्ला, मराठी एवं गुजराती का भी पर्याप्त अध्ययन किया। इसके साथ ही उन्हें ज्योतिष, गणित एवं खगोल शास्त्र का भी अच्छा ज्ञान था।

मेवाड़ के महाराणा को दिल्ली दरबार जाने से रोका

केसरी सिंह के पिता के निजी पुस्तकालय ‘कृष्ण-वाणी-विलास’ जिसमें उन्होंने भरपूर अध्ययन किया। उनकी मुख्य काव्य शैली डिंगल व पिंगल थी जिसमें उन्होंने अपना साहित्य रचा।

साल 1903 में जब लार्ड कर्जन द्वारा ने दिल्ली दरबार मे सभी राजाओ को बुलाया तो मेवाड़ के महाराणा का जाना राजस्थान के क्रांतिकारियों को ठीक नहीं लगा, ऐसे में उन्हें रोकने के लिए क्रांतिकारी कवि केसरी सिंह को जिम्मेदारी दी गई।

पग पग भम्या पहाड,धरा छांड राख्यो धरम |

(ईंसू) महाराणा’र मेवाङ, हिरदे बसिया हिन्द रै |

इसके बाद उन्होंने प्रसिद्द “चेतावनी रा चुंग्ट्या” नामक सोरठे रचे, जिन्हें पढ़कर महाराणा इतने प्रभावित हुए कि ‘दिल्ली दरबार’ नहीं जाने का फैसला किया।

समाज में साक्षरता लाने के लिए चलाई कई पहल

केसरी सिंह बेहद प्रगतिशील व्यक्ति थे जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में कई योजनाएं चलाई व अंधकार से आने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने तेज दिमाग छात्रों को प्रौद्योगिकी शिक्षा के लिए जापान भेजा तथा खासकर क्षत्रिय समाज में साक्षरता लाने के प्रयास किए।

इसके अलावा साहित्य के क्षेत्र में उन्होंने वर्धा से विजय सिंह पथिक के साथ मिलकर “राजस्थान केसरी” की शुरूआत की। केसरी सिंह बारहठ ने ताउम्र कविताएं रची और 14 अगस्त 1947 को उनकी आत्मा ने देह का साथ छोड़ दिया।

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