बीकानेर: यहां भूगर्भ से निकला जाता है लाल पत्थर और फिर खड़ी होती हैं इमारतें

Bikaner News: लाल पत्थर की खान, दुलमेरा, बीकानेर।
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खनिज बड़ा अनमोल है,
इसकी महिमा अपरंपार।
सोना चांदी चाहे पत्थर,
है मां धरा इनका भंडार।

ऐतिहासिक इमारतों का ऐतिहासिक पत्थर।
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दोस्तों नमस्कार!
दोस्तों आज मैं आपको एक ऐसे स्थान पर लेकर जा रहा हूं, जहां एक ऐसा पत्थर भूगर्भ से निकाला जाता था। जिसकी ऐतिहासिक इमारतें आज भी दुनिया में अपनी सुंदरता का बखान कर रही हैं। उस पत्थर हेतु तत्कालीन महाराजा ने स्पेशल रेलगाड़ी भी चलाई थी। मैं आपको उस पत्थर की कहानी तथा पृष्ठभूमि के बारे में नीचे विस्तार से बता रहा हूं।

परिचय।
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बीकानेर के पास दुलमेरा गांव (Dulmera Village) में गांव के एक बुजुर्ग व्यक्ति ने भागीरथ से बात करते हुए गांव की वस्तुस्थिति और पहचान के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बताया की बहुत वर्षों पहले यहां पर लाल पत्थर की खाने थी। और उसी पत्थर से बीकानेर की ऐतिहासिक इमारतें आज अपना इतिहास बनाए हुए हैं। वहां की ऐतिहासिक इमारत जूनागढ़ महल, लालगढ़ पैलेस,इसी लाल पत्थर से बनाए हुए हैं।
उन्होंने बताया कि यहां पर जितनी भी खाने हैं, उन सबका लाइसेंस है। बिना लाइसेंस की एक भी खान नहीं है। यहां से पत्थर देशनोक, नोखा, बीकानेर जाया करता था, लेकिन अब सब बंद हो गया है। इस पत्थर से कारीगरी का काम ज्यादा होता था, जिनमें फूल पत्ती बनाना वगैरा-वगैरा। पहले यह पत्थर हाथों से निकाला जाता था। जिसमें बहुत मेहनत होती थी, और सब गांव वालों को अच्छा रोजगार मिला हुआ था। लेकिन अब चारों तरफ बेरोजगारी हो गई है। खदानों में कीकर ही कीकर उगी हुई है।
अभी यहां पर बीकानेर से कोई नहीं आता है पहले तो गंगा सिंह जी भी आते थे, और इस लाल पत्थर की अच्छी पूछ थी।

दुलमेरा में ट्रेन।
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दुलमेरा के व्यक्ति ने बताया कि पहले ऊंट पर ही यहां से लाल पत्थर जाता था,लेकिन उस के बाद में गंगा सिंह जी ने दुलमेरा तक ट्रेन भी चलाई थी। जिससे इस पत्थर की ढुलाई होती थी। यहांपर एक बहुत बड़ी खदान थी, जिसको गंगा सिंह जी की खान के नाम से आज पुकारा जाता है। यहां पर गंगा सिंह जी का महल भी था। एक डिब्बा स्पेशल ट्रेन में उनके लिए आता था, तथा खदान में काम करने के लिए मजदूर भी आते थे, लेकिन अब समय के साथ-साथ सब बंद हो गया।

अपने विचार।
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तकनीक, तर्क, विज्ञान ने,
सब कुछ बदल दिया।
मजदूर अब आश्रित हो गया,
भ्रष्ट तंत्र ने सब हड़प लिया।

विद्याधर तेतरवाल,
मोतीसर।

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