रेगिस्तान में खेती करने का नया तरीका, युवा किसानों ने पेश की अनोखी तकनीकी की शानदार मिसाल

धोरा री धरती ,
बीकानेर रो पानी।
नई नई खोज करो,
नई फसल उगानी।

ठेठ रेगिस्तान में लहलहाती फसल।
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दोस्तों नमस्कार।

दोस्तों आज मैं आपको मरुस्थलीय रेगिस्तान में ले चलता हूं। जहां आपको रेतीले टीलों के अलावा कुछ भी नहीं दिखाई देता था, आज वहां पर फसल लहलहा रही है। बीकानेर से आगे खाजूवाला, पुगल सड़क मार्ग के पास में पुगल से तीन किलोमीटर की दूरी पर सुदेश से बात करते हुए किसान ने बताया कि हमारे यहां पर किसी प्रकार की कोई फसल नहीं होती है। केवल बरसात के दिनों में एक ही फसल होती है, इसके अलावा यहां पर फसल नहीं की जाती है। लेकिन अब समय बदल रहा है।

इस समय आपने क्या क्या बो रखा है का जवाब देते हुए किसान कहता है कि तोरी, कद्दू, हरी मिर्च, टमाटर आदि। पानी कहां से आ रहा है के जवाब में कहता है कि यह डिग्गी से आ रहा है। इसको बोये हुए लगभग दो महीने हो गए और दो महीने बाद में पक जायेगी।

आपने जो यह मेनिया लगा रखा है ये क्या काम करता है। इसका जवाब देते हुए किसान कहता है कि इससे नमी बरकरार रहती है। निराई गुड़ाई नहीं करनी पड़ती तथा ये फसल के सुरक्षा कवच का काम करता है। आगे का प्लान के बारे में किसान कहता है कि अभी दो बिगा में पंजीरी और दो बीघा में प्याज लगाने पर विचार कर रहे हैं।

ऑर्गेनिक खेती के बारे में वह कहते हैं कि यह बहुत अच्छी होती है। इसमें रासायनिक खाद का प्रयोग बिल्कुल भी नहीं होता है। केवल गोबर की खाद का प्रयोग किया जाता है केंचुआ खाद इसके लिए सर्वोत्तम है। हम इसकी ट्राई करेंगे। खर्चे के बारे में वह बताते हैं कि लगभग ₹बीस हजार प्रति बीघा के हिसाब से खर्च होता है। लेकिन आमदनी भी ज्यादा होती है।

बरसात की फसल के बारे में वह कहते हैं कि मूंगफली, बाजरा, मूंग, मोठ, गवार की खेती हुई थी लेकिन उसमे ज्यादा फायदा नहीं है क्योंकि बरसात की फसल तो एक जुआ है। बरसात का असंतुलन किसान के लिए सबसे बड़ा अभिशाप है। रबी की फसल में ज्यादा फायदा होता है। जमीन के पानी के बारे में किसान कहता है कि ये ज्यादा उपजाऊ नहीं है, इससे सरसों, कनक, जो की फसल ही ले सकते हैं। हमारे यहां पानी में क्षरीयता और नमक की मात्रा ज्यादा होने के कारण इसमें दूसरी फसलें नहीं होती है। यह भारी पड़ता है।

उन्होंने बताया कि नहर के आसपास में तो सभी फसल होती हैं लेकिन यहां पर नहीं होती। ट्यूवल्स की संख्या बढ़ रही है लेकिन पानी में नमक की मात्रा ज्यादा होने की वजह से यहां पर किसान का खर्चा ज्यादा है और आमदनी कम है। लेकिन फिर भी आज का नवयुवक हर प्रकार की रिस्क उठाने को तैयार है।


अपने विचार।
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मेहनत जज्बा हो साथ,
तो धरती मां सोना देती है।
धोरों की धरती को देखो,
हरी भरी वो खेती है।

विद्याधर तेतरवाल,
मोतीसर।

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