पूर्व आईपीएस मदन गोपाल मेघवाल के फौलादी जीवन की जुनून भरी कहानी से मिलेगी पॉजिटिव प्रेरणा

मुश्किलें कभी रोड़ा नहीं अटकाती,
मुश्किलों से ही मंजिल मिलती है।
मुश्किलें हमें जीना सिखाती,
मुश्किलों से ही खुशियां खिलती है।

खादी ने हमको मंजिल तक पहुंचाया।
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दोस्तों नमस्कार।
दोस्तों आज मैं आपको एक ऐसी शख्सियत से रूबरू करवा रहा हूं जिनकी कहानी सुनकर आपको मोटिवेशनल पावर मिलेगी और आपके बुझे हुए चेहरों पर खुशियां दमक उठेगी।

परिवार और परिचय।
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बीकानेर के पूर्व आईपीएस आदरणीय मदन गोपाल मेघवाल जी ने सुदेश से बात करते हुए बताया कि मेरे पिताजी रेलवे में एक छोटी नौकरी करते थे। हम पांच भाई और दो बहनों का बड़ा परिवार था। हमारे घर पर बुनाई का काम किया जाता था। सूती कपड़ा बुनना हमारे घर पर हम करते थे। मेरे पिताजी की सूझबूझ और त्याग के कारण हम चार भाई राजपत्रित अधिकारी बने। स्कूल में जाते, खेती का काम करते, घर पर बुनाई का काम करते। इसके बाद में भी मुश्किलों के चलते पढ़ाई छोड़नी पड़ी। उसके बाद में मजदूरी जाते थे, सड़क पर या अन्य भवन निर्माण के कार्य में मजदूरी का काम किया करते थे।

बुनाई के काम ने हमारा साथ दिया और मुश्किलों से कुछ निकलने के बाद में फिर पढ़ाई चालू की, और स्नातक किया। मेघवाल जी ने कहा की मुश्किलें वह सपना होती है जो हमें सोने नहीं देती। मुश्किलें आपको मंजिल को पाने के लिए प्रेरित करती है। मुश्किलें हमेशा रोडा नहीं अटकाती है। उन्होंने बताया कि हम जिस मोहल्ले में रहते हैं, उस मोहल्ले में उस समय तक पढ़ाई का नामोनिशान नहीं था। लेकिन मेरे पिताजी की दूरदर्शिता के कारण हमको पढ़ने के लिए भेजा।

आपकी सफलता पर आपकी मां का क्या रिएक्शन था, के जवाब में वह कहते हैं कि जब मेरा आरपीएस में सिलेक्शन हुआ उस समय मेरे पापा जी तो थे लेकिन मेरी मां नहीं थी। जब मैंने आरपीएस का पद संभाला उस समय मुझे यह पूरा ध्यान था कि मैं कहां से आया हूं। मैंने मेरी पूरी नौकरी के अंदर पीड़ित और सच्चे व्यक्ति का साथ दिया।

सुदेश ने बताया कि रीट में प्रथम आने वाले व्यक्ति का जब रिजल्ट आया उस समय वह ग्वार काट रहा था। तो मेघवाल जी ने कहा कि परेशानियां आज भी वैसी ही है जैसे पहले थी। चयन प्रक्रिया के बारे में वह बताते हैं कि मेरा प्रथम प्रयास में ही चयन हो गया था लेकिन इस प्रकार के एग्जाम में प्रथम बार बैठने पर कुछ मुश्किलें आई थी। क्योंकि आठवीं के बाद में मैं स्नातक तक घर पर ही पढ़ाई करके प्राइवेट पढ़ा हूं। इसलिए मुझे एग्जाम के बारे में ज्यादा नॉलेज नहीं था। कुछ क्वेश्चन छूट गए थे यदि वह नहीं छूटते तो मेरा आर ए एस में भी सिलेक्शन हो सकता था।

समाज में बढ़ती आत्महत्याओं के बारे में वह कहते हैं की हर व्यक्ति अपने बेटे बेटियों को राजा और रानी बनाना चाहता है। इतनी इच्छाएं और अपेक्षाएं ना रखें। उन को खुश रखने का प्रयास करें और उनको काबिलियत के अनुसार आगे बढ़ने का मौका दें। उन्होंने बताया की भौतिक सुख-सुविधाओं की तरफ ना झुके।मैं भौतिक सुख सुविधाओं का विरोध नहीं करता लेकिन मानसिक सुख को प्रथम पायदान पर रखें।

अपने विचार।
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मन खुश तो तन स्वस्थ,
तन स्वस्थ तो होगा काम।
काम करोगे तो अर्थ सुख,
फिर मन को आराम।

विद्याधर तेतरवाल,
मोतीसर।

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