दुनिया का एक मात्र ऐसा चूरू का किला जहां दु’श्मनों पर तो’प से दा’गे थे चांदी के गो’ले

चूरू के किले की बात आते ही पहली बात जो याद आती है वह यह कि चूरू का किला दुनिया का एक मात्र ऐसा किला था जहां दु’श्मनों पर तो’प से दा’गे थे चांदी के गो’ले। समय पुराना था राजा को अपनी चीजों के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ती थी राजा के लिए किले को और अपनी प्रजा को बचाना उसके लिए जीवन प्राण धर्म था,इसके लिए वह सोना चांदी सभी को दांव लगा देते थे।

किले का निर्माण 1694 में ठाकुर कुशाल सिंह ने करवाया। निर्माण का उद्देश्य आत्मरक्षा और अपनी जनता की रक्षा। एक महत्तवपूर्ण घटना का उल्लेख किया जा सकता है।1814 में ठाकुर कुशल सिंह के वंशज ठाकुर शिव सिंह का राज था।इतिहास के मुताबिक ठाकुर शिव सिंह के पास सेना बहुत कम थी और जब युद्ध का समय आया तो सेना की सांख्यिकी में बढ़ोतरी हुई क्योंकि वहां की जनता भी अपनी भागीदारी निभाना चाहती है।

महीना अगस्त का रहा होगा, बीकानेर दरबार सूरत सिंह ने चूरु पर आक्र’मण कर दिया शिव सिंह ने अपनी शक्ति और अपनी मजबूती के साथ मुकाबला किया लेकिन कुछ ही दिनों बाद उनके गो’ला-बारू’द खत्म हो गए। शिव सिंह अपनी जनता और आत्मरक्षा के लिए चिंतित हुए।

अंत में आम जनता ने अपनी रक्षा तथा अपने राजा के सम्मान में अपने आभूषण सुनारों, लोहारों के दे दिए और उन्होंने चांदी के गो’ले तैयार किए।और अंत में यु’द्ध में इन्हें काम में लिया गया।इसका असर यह हुआ कि सूरत सिंह की सेना ने हाथ खड़े कर दिए और वहीं से भाग निकले। यह घटना चूरू के इतिहास में अमर हो चुकी।

इसी घटना के संदर्भ से जुड़े कुछ दोहे लोक में बहुत प्रचलित है।

“धोर ऊपर नींमड़ी धोरे ऊपर तो’प। चांदी गोला चालतां, गोरां नाख्या टोप।।

वीको-फीको पड़त्र गयो, बण गोरां हमगीर। चांदी गो’ला चालिया, चूरू री तासीर।।

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