चूरू के ददरेवा में सांपों के देवता गोगाजी के मंदिर में प्रसाद में चढ़ता है प्याज

गोगाजी (Gogaji) का जन्म चूरू (Churu) के ददरेवा (Dadrewa) में चौहान वंश के शासक जब्बर सिंह के घर हुआ।गोगाजी अपने समय में राजा भी रहे और उनका क्षेत्राधिकार सतलुज से हरियाणा की हांसी नदी तक था।लोक में उन्हें साँपों के देवता के रूप में पूजा जाता है।भाद्रपद के दोनों पक्षों की नवमी में ददरेवा में मेला भी भरता है और स्थानीय लोगों की कहनी कि हर प्रदेश से लोग आते हैं, प्रवासी भी।

सबसे ज्यादा जनता पंजाब, उत्तर प्रदेश से आती है।तकरीबन चार पांच लाख श्रद्धालु आते हैं।मंदिर परिसर में ही बाहर की ओर एक जाल का वृक्ष है, यह वही जाल है जिससे पीलू नामक फल प्राप्त होता है।इस जाल के आने वाले श्रद्धालु धागा बाँध कर जाते हैं।मन्नत का धागा।स्थानीय लोगों और लोक की समझ यह है कि, ये जाल गोगाजी के समय की है।

पाबू, हड़बू, रामदे, मांगळिया मेहा
पांचू पीर पधारजौ गोगाजी जेहा

यह दोहा लोक में बहुत चाव से सुना, सुनाया जाता है।राजस्थान में पांच पीर उक्त उल्लेखित है, इन्हीं पांचों पीरों में से एक हैं गोगाजी।

गोरखटीला
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गोगाजी गोरखनाथ के शिष्य माने जाते हैं।उनकी आराधना में उनका समय गुजरा।जन्म स्थल से थोड़ी दूरी पर एक टीले पर गोरखनाथ जी की पूजा होती है, इस पूजा स्थल को गोलखटीला कहा जाता है।वहां बने धूणे पर श्रद्धालु शीश नवां मन्नत मांगते हैं।गोरखनाथ जी के साथ यहाँ पर गोगाजी की पूजा होती है। चूरू जिले के सादुलपुर इलाके में स्थित ददरेवा धाम देश का ऐसा अनूठा मंदिर है जहां गोगाजी और गुरु गोरखनाथ मंदिर में प्रसाद के रूप में प्याज चढ़ाया जाता है। प्याज चढ़ाने की ये परंपरा वर्षों साल पुरानी है।

वि.स. 1330 में जन्में गोगाजी 1352 में गद्दी पर बैठे और 1392 में हनुमानगढ़ जिले के गोगामेडी़ में समाधि ली।ददरेवा मंदिर के गर्भगृह में रखी बीच की मूर्ति स्वत: भूमि से निकली है।वहीं एक लेख, एक शिवलिंग भी स्वत: निकले हुए हैं।पुजारी जी बताते हैं कि साँप खाए हुए आदमी के काटे हुए स्थान पर मंदिर में रखी मटकी की मिट्टी लगाते हैं तो वो सही हो जाता है।मंदिर में साँप को चाहे कोई भी पकड़ ले वह खाएगा नहीं।मान्यता है कि गोगाजी का जन्म गुरू गोरखनाथ के वरदान से हुआ था। गोगाजी की माँ बाछल देवी निःसंतान थी। संतान प्राप्ति के लिए तमाम कोशिश केकरने के बाद भी संतान सुख नहीं मिला। गुरू गोरखनाथ ‘गोगामेडी़’ के टीले पर तपस्या कर रहे थे। बाछल देवी उनकी शरण मे गईं तथा गुरू गोरखनाथ ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और एक गुगल नामक फल प्रसाद के रूप में दिया। प्रसाद खाकर बाछल देवी गर्भवती हो गई और तदुपरांत गोगाजी का जन्म हुआ। गुगल फल के नाम से इनका नाम गोगाजी पड़ा।

हनुमानगढ की नौहर तहसील में स्थित गोगामेडी़ में भी खूब अच्छा मेला भरता है।यहाँ गोगाजी ने समाधि ली थी।यह मंदिर साम्प्रदायिक सद्भावना का प्रतीक है।हर मजहब के साथी साथ खड़े होकर पूजा करते हैं।गोगाजी की मान्यता हर गांव में होने के कारण लोक में एक कहावत प्रचलित है कि “गांव-गांव में खेजड़ी और गांव – गांव में गोगा”। ददरेवा में आने वाले श्रद्धालुओं को यहां की लोकभासा में जातरू कहा जाता है।ये जातरू गुरु गोरखनाथ और जाहरवीर माने कि गोगाजी के भजन करते हैं।डैंरू व कांसी का कचौला विशेष रूप से सज्जित होता है।

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