चूरू का 1000 साल पुराना हिंगलाज माता का मंदिर जहाँ अम्बानी परिवार भी पूजा करता है

कथा है कि सती के वियोग में निराश शिव जब सती की पार्थिव देह को लेकर तीनों लोक को घूमने निकले तो विष्णु ने सती की देह को 51 खण्डों में बांट दिया और जहाँ जहाँ सती के अंग प्रत्यंग गिरे वह स्थान शक्तिपीठ कहलाये।ऐसी ही एक शक्तिपीठ बलोचों के प्रदेश बलूचिस्तान में है।मकरान के रेगिस्तान में। यह पीठ उक्त उल्लेखित हिंगलाज माता की है।हिंगलाज माता का मंदिर (Hinglaj Mata Mandir) यहीं हैं शेष मंदिरों का बनना इसके बाद की प्रक्रिया है।यह मंदिर हिंगोल नदी के किनारे है।मुख्य मंदिर के पड़ोसी इलाकों यथा राजस्थान, गुजरात, सिंध आदि में भी माता के अनुयायी हैं।

स्थानीय मुस्लिम इस मंदिर में आस्था रखते हैं, पूजा करते हैं।और वे उस मंदिर को नानी का मंदिर (Nani Ka Mandir) भी कहते हैं।मान्यता है कि रावण को मारने के बाद श्री राम ने अपने पाप यहीं धोये थे।यहां यह ध्यातव्य रहे कि करणी माता जी इन्हीं हिंगलाज माता जी की पूजा करती थी।इस मंदिर में सच्चाई का इम्तिहान देना होगा है भक्तों को।भारत के पूर्व विदेश मंत्री जसवंत जसोल हिंगलाज माता में गहरी आस्था रखते थे, उन्होंने कुछ बरस पहले बलूचिस्तान स्थित मुख्य मंदिर की यात्रा भी की।

बलूचिस्तान, लोद्रवा, जसई, छिंदवाड़ा, टोंक और जैसलमेर की गडीसर झील,निवाई आदि के साथ हिंगलाज माता का एक मंदिर चुरू (Churu) के लोसना बड़ा (Lohsana Bara) गांव में भी मंदिर अपनी भव्यता के कारण काफी प्रसिद्ध है।मंदिर के स्थापना काल के बारे में स्थानीय लोगों का कहना कि यह हज़ारों वर्ष पुराना है।श्रद्धालुओं के जत्थे आते रहते हैं, व्यवस्थायें करनी पड़ती हैं। कथा अनुसार सदियों पहले जमीन से एक मूर्ति का निकलना हुआ और ग्रामीणों ने उसे देवी का रूप मानकर वहाँ मंदिर बना दिया छोटा सा।बाद में पुनर्निर्माण होते गये और आज यह भव्यता से सज्जित है।

पुजारी सत्यनारायण जी ने वर्तमान मंदिर के निर्माण की कल्पना की और बिना मिस्त्री का काम जानते हुए भी उन्होंने इसको भव्य बनाकर एक अद्भुत कार्य किया।वे आज भी मौजूद हैं, इसी गांव में रहते हैं।दशहरे को मेला मरता है, अच्छे खासे लोग मंदिर में धोक लगाने आते हैं।कबड्डी, कुश्ती, दौड़ आदि प्रतियोगिताएं भी आयोजित होती हैं।प्रदेश में रह रहा शेखावाटी का अंबानी वर्ग भी यहां खूब संख्या में आता है। मंदिर की स्थिति चूरू से दूधवा स्टेशन को जा रही रोड़ पर है, दूधवा से दक्षिण में पांच किलोमीटर की दूरी पर यह मंदिर स्थित है।मंदिर के दूसरे तल से लगभग पूरे लोसना बड़ा को देखा जा सकता है यह वास्तुकला की अपनी ऊंचाई है।मंदिर की ऊंचाई तकरीबन एक सौ आठ फीट है।मंदिर का मुख्य आकर्षण इसकी ऊंचाई, नीचली छतों पर बनी नक्काशी और लंबे लंबे सीसे हैं।

आदिशक्ति हिंगलाज को अधिक पूजने वाले वर्गों में चारण समुदाय और राजपूत समुदाय का ध्यान आता है।वे सभी देवियों से ऊपर हिंगलाज को मानते हैं।यही कारण है कि चारण जाति के कई व्यक्तियों के नाम हिंगलाज होते हैं।

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