mansa mata mandir राजस्थान के चूरू जिले में लोगों की मनसा माता के प्रति गहरी आस्था है. जिले के बीचोंबीच बना यह मंदिर काफी ऊंचाई पर स्थित है जिसका स्थापना दिल्ली के शासक महाराजा उदय सिंह ने आज से करीब 550 साल पहले की थी। mansa mata mandir
बताया जाता है कि एक बार महाराजा उदय सिंह एक घने जंगल से घूमते हुए जा रहे थे तो उनको एक जोत दिखाई दी जिसके बाद महाराजा ने तुरंत बीकानेर से 51 ईंटे मंगवाकर यहां मनसा माता मंदिर की स्थापना करवा दी। देखते ही देखते यहां कई जगहों से तपस्वी आने लगे और अपना भोजन तैयार करते थे और आने जाने वाले मेहमानों को भी खिलाने लगे।
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चूरमा बनाते हुए नाम पड़ आया “चूरु”
मंदिर को लेकर एक किस्सा प्रचलित है कि एक दिन यहां एक तपस्वी ने कहा कि आज चूरमा बनाएंगे. चूरमा बनाते हुए एक ने कहा कि मैं घी डालूं तो दूसरे ने कहा कि मैं चूरू हूं। कहा जाता है कि ऐसे ही बातों बातों में शहर बसाने और उसका नामकरण हुआ।
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तंवरों की कुलदेवी है मनसा माता mansa mata mandir
मनसा माता तंवर गौत्र की कुलदेवी है और माता का मंदिर हरिद्वार तथा चंडीगढ़ में भी है। राजस्थान में मनसा माता के 5 मंदिर बताए जाते हैं जिनमें चूरू का एक मंदिर भी है।
मनसा माता का इतिहास mansa mata mandir
मनसा माता भगवान शिव और माता पार्वती की पुत्री है, इनका प्रादुर्भाव मस्तक से हुआ है जिसके कारण इनका नाम मनसा पड़ा। बताया जाता है कि महाभारत के अनुसार इनका वास्तविक नाम जरत्कारु है। वहीं इनके समान नाम वाले पति महर्षि जरत्कारु तथा पुत्र अस्तित्क हैं। इनके भाई बहन गणेश, कार्तिक, देवी अशोक सुंदरी, देवी ज्योति और भगवान अय्यप्पा है।
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मनसा देवी मुख्यतः सर्पों से आच्छादित तथा कमल पर विराजित हैं। सात नाग उनके रक्षण में सदैव विद्यमान हैं। कई बार देवी के चित्र तथा भित्ति चित्रों में उन्हें एक बालक के साथ दिखाया गया है, जिसे वे गोद में लिए हुए हैं। वह बालक देवी का पुत्र आस्तिक है।
बता दें कि राजा युधिष्ठिर ने भी माता मनसा की पूजा की थी जिसके फलस्वरूप वह महाभारत के युद्ध में विजयी हुए। आज भी जहां युधिष्ठिर ने पूजन किया वहां सालवन गांव में भव्य मंदिर का निर्माण किया गया है। mansa mata mandir