राजस्थान का अनोखा धाम जहाँ आकाशवाणी से पहुंची बालाजी की मूर्ति, चमत्कारी पानी की कहानी

परसनेऊ धाम (Parsneu Dham) : मंदिर है विश्वास का, जैसी जिसकी आस। जीवन सफल हो जाएगा, कर देखो विश्वास।

दोस्तो आज मैं आपको एक ऐसे चमत्कारिक धाम की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के बारे में बता रहा हूं। जिसमें प्रवेश करते ही कैसा भी भयानक सर्प खाया हुआ हो, वह ठीक हो जाता है। और लोगों की मन्नत पूरी होती है।

बलराम से बात करते हुए परसनेऊ धाम (Parsneu Dham) के पुजारी जी ने मंदिर की विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि यह मंदिर लगभग 400 साल पुराना है। और जिस दिन सालासर धाम की मूर्ति की स्थापना हुई थी, उसी दिन यहां पर मूर्ति की स्थापना हुई थी। उस समय हमारे दादाजी अखाराम (Dadaji Akharam) जी बाल ब्रह्मचारी थे, तो उन्हीं की देखरेख में बालाजी धाम (Balaji Dham) की स्थापना हुई । उनके प्रकोप और आस्था से हर दर्शनार्थी की आस्था पूरी होती आ रही है।

हमारे यहां पर सुरता राम जी (Surtaram Ji), हरिराम जी (Hariram Ji) और तेजाजी महाराज (Tejaji Maharaj Mandir) का मंदिर है। किसका कितना सहयोग रहता है के जवाब में पुजारी जी कहते हैं कि हर कुएं वाला प्रतिवर्ष 50 किलो अनाज यहां पर देता है। जिससे आने वाले दर्शनार्थियों को भोजन खिलाया जाता है। पुजारी जी ने बताया कि जो भी नवनिर्माण मंदिर में दिखाई दे रहा है, उसको लगभग 15 वर्ष हो गए हैं। और मैं यहां पर बचपन से ही सेवा दे रहा हूं। लेकिन मंदिर सदियों पुराना है।

मूर्ति की स्थापना कब और कैसे हुई।
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पुजारी जी कहते हैं कि बीदासर गांव (Bidasar) के कुम्हार के खेत में हल जोतते समय बालाजी की मूर्ति निकली थी,वहां पर दो मूर्तियां निकली थी। एक मूर्ति सालासर धाम में स्थापित की गई तथा दूसरी मूर्ति उनकी आज्ञा से परसनेऊ धाम में स्थापित करनी थी।इस प्रकार जिस दिन मूर्ति बैलगाड़ी में रख कर आई थी, तो अखाराम जी महाराज बैलगाड़ी के सामने चले गए और मूर्ति स्थापना करने के बाद में उन्होंने ही पूजा करनी शुरू कर दी।

जिस समय मंदिर की स्थापना हुई थी, उस समय दादोजी गायों की सेवा करते थे। और वहां पर भी दादाजी का मंदिर है। इस मंदिर की सेवा का जिम्मा पीढ़ी दर पीढ़ी दादो जी और उनके वंशज जो वर्तमान में हम हैं के जिम्मे है।

बड़ा उत्सव कब होता है।
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परसनेऊ धाम (Parsneu Dham) : भाद्रपद कृष्ण पंचमी को दादोजी के जन्मदिन पर प्रतिवर्ष बड़ा मेला लगता है। और हर दर्शनार्थी को उसकी इच्छा अनुसार वरदान मिलता है। यहां पर कोलकाता, मुंबई, लखनऊ तथा पूरे भारतवर्ष से लोग बाग अपनी मन्नत प्राप्त करने के लिए आते हैं। प्रत्येक शनिवार इतवार तथा हर महीने की पंचमी को बड़ी पूजा पाठ के साथ में भोग लगाया जाता है और लोगों को आशीर्वाद दिया जाता है।

दादा जी ने जब समाधि ली थी तो उस समय गांव के गणमान्य व्यक्तियों ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की थी कि आप तो जा रहे हो, हमारा क्या होगा तब उन्होंने कहा कि मेरा चिमटा है, उससे भभूत घोलकर पिला देना, सारे कष्ट दूर हो जाएंगे। और आज तक वही हो रहा है। पास में एक झाड़ी का पेड़ दिखाते हुए बताया कि किसी को भी खासी, खाज, खुजली, जुखाम हो जाए तो उसके पत्ते खाने भर से सारे रोग नष्ट हो जाते हैं।

गांव वालों के सहयोग के बारे में पुजारी जी कहते हैं कि जब मेले का आयोजन होता है, तो पूरे गांव के दरवाजे आने वाले मेहमानों के लिए खुल जाते हैं। और किसी भी प्रकार की तकलीफ नहीं होने देते हैं।

किसी भी प्रकार की अन्य तकलीफ के बारे में पूछने पर पुजारी जी कहते हैं कि मंदिर की जमीन पर अतिक्रमण हो गया है, उसकी तरफ सरकार का ध्यान चला जाए तो मंदिर के लिए बहुत ही सहयोग का कार्य होगा।

कलवानी पानी।
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वर्षा के पानी में दादो जी के चिमटे से भभूत घोलकर पिलाने से किसी भी प्रकार का रोग नष्ट हो जाता है। उसी को कलवानी पानी कहते हैं। कलवानी पानी पिलाने वाला भी तब तक खाना नहीं खाता है, जब तक रोगी ठीक नहीं हो जाता। जब रोगी ठीक हो जाता है तो सत्संग में दादा जी की छावली गाते हैं जिससे सत्संग पूर्ण माना जाता है।

अपने विचार।
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मन की इच्छा,
कभी पूरी नहीं होती।
है मन में संतोष,
तो कभी अधूरी नहीं होती।

विद्याधर तेतरवाल ,
मोतीसर।

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