हज़ारों साल पुराना तारानगर का डरावना जैन मंदिर जहाँ पूरी बारात रातोंरात गायब हो गयी

राजस्थान (Rajasthan) में ऐसे कई स्थान हैं जहां लोक में ऐसी कथाएं प्रचलित हैं कि विज्ञान के इस प्रगतिशील युग में विश्वास करना थोड़ा कठिन हो जाता है।ऐसा ही एक स्थान है चूरू (Churu) के तारानगर स्थित जैन मंदिर (Taranagar Jain Mandir)।हज़ारों साल पुराने इस मंदिर में लोग आने से डरते, कतराते हैं।तारानगर मुख्य बाजार में अवस्थित यह मंदिर कस्बे के सभी मंदिरों से पुराना है।मंदिर में आम जनता का कोई खास जुड़ाव नहीं है, पुजारी पूजा करने आते हैं।हालांकि पुजारी लोग इस बात से इंकार करते हैं कि यहाँ कुछ असहजता है।वे कहते हैं हमें ऐसा कुछ लगा नहीं जिसे डरने की स्थिति पैदा हो।लोगों को केवल भय है।उनका मानसिक उद्वेलन वहीं स्थिर हो गया है।

पुराने ज़माने में बारातें कई दिनों तक रहती थी, गोठें खाती थी।उसी समय की दंत कथा है कि यहाँ कभी एक बारात ने रात को रुकना तय किया और वह पूरी बारात रात में गायब हो गयी।तब से इस मंदिर का नाम ‘डाकी देव’ का मंदिर हो गया।मंदिर में ही एक कमरे पर ताला लगा हुआ है एक समय से।लोगों का मानना है कि वह गुफा है, कुछ कहते हैं यह सुरंग है जो कि बीकानेर तक लंबी है हालांकि इस बात की पुष्टि का कोई आधार नहीं है और न ही किसी की हिम्मत की उसको खोलकर देखें।ताला लगा हुआ है तो रहे।मंदिर के इतिहास के बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं मिलती सिवाय इसके कि यह एक प्राचीन मंदिर है।

गर्भ गृह में बीचोबीच माता पद्मावती की प्रतिमा स्थापित है, समीप ही शीतलनाथ जी की मूर्ति भी लगी हुई है और कुछ पत्थर से बनी हुई प्रतिमाएं भी स्थापित हैं।मंदिर का आर्किटेक्चर रूप है वह पुराने किलों की भांति है।राजस्थान के कई गढों-कोटों, इमारतों में ऐसी कुछ जगहें होती हैं जिनके बारे में पूर्वाग्रह बनाए जाते हैं।एक मिथकीय नैरेटिव रच दिया जाता है जबकि बहुत कम ऐसा सच होता है।जैसलमेर जिले के पोकरण उपखंड के सांकडा़ गांव के पुनमल नाम के एक डकैत बहुत प्रसिद्ध थे, सांकडा़ में एक कुंआ था कहते थे कि उस कुंए में जिसने पानी पिया वो पुनमल जैसा डकैत बन गया।फिर उस कुंए का पानी कोई नहीं पीता था और पुनमल के इस दुनिया से जाने के बाद उस कुंए पर प्रशासन ने ताला भी लगवा दिया।

वैसे तारानगर खास के कई लोगों ने इस मंदिर को अंदर से नहीं देखा ऐसा सुनने को मिलता है।लोग इसलिए भी आने से डरते हैं कि इसका आरती का समय सुबह छह सवा छह रहता है और शाम में सात बजे।दिन में लगभग बंद रहता है।सूर्योदय और सूर्यास्त के इस आरती समय में जाहिर बात है ढलान में आए इस मंदिर में ऐसा माहौल बन जाना लाजिमी है कि डर लगे लेकिन आदतन जो आये उनके लिए यह बहुत सामान्य हो जाता है।

एक प्रतिमा के के सन्दर्भ में एक ग्रामीण बताते हैं कि साहवा(चुरू-हनुमानगढ सीमा पर स्थित गांव) के एक तालाब में ये मूर्ति निकली और जब उपर्युक्त उल्लेखित दो जिले अलग हुए तो नोहर के आसपास वाले लोग बोले कि मूर्ति हम ले जाएंगे और यहाँ के लोग बोले इसे हम ले जाएंगे।इसी दरमियान मूर्ति को रथ में रख दिया गया।और रथ का मुँह नोहर की तरफ और मूर्ति तारानगर की तरफ, इसे भक्तों ने भगवान का चमत्कार माना।एक जानकारी के मुताबिक बीकानेर संभाग का सबसे पुराना मंदिर यही है।लोगों का यूं तो इस मंदिर में आना न के बराबर होता है लेकिन जब किसी की मृत्यु होती है तो इसमें आते हैं।स्थानीय लोगों की कहनी कि इस मंदिर में रात रुकने की इजाजत किसी को नहीं दी जाती।

Add Comment

   
    >