टीकाराम पालीवाल राजस्थान का पहला निर्वाचित मुख्यमंत्री जिन्हें भूमि सुधार का जनक कहा जाता है

राजस्थान के राजनीतिक इतिहास में कई राजनेता हुए जिन्हें उनके कामों के लिए आज भी याद किया जाता है, उनमें ऐसे ही एक नेता थे जिन्हें प्रदेश में भूमि सुधार का जनक कहा जाता था। हम बात कर रहे हैं राजस्थान के प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्री टीकाराम पालीवाल की जो एक बहुमुखी प्रतिभा के नेता थे।

टीकाराम पालीवाल का जन्म 24 अप्रैल 1909 को सवाईमाधोपुर जिले के मंडावर गांव में हुआ था जिनकी प्रारंभिक शिक्षा मंडावर, दिल्ली एवं मेरठ में हुई। वे मेरठ न्यायालय में अधिवक्ता भी रहे। टीकाराम पालीवाल का राजनीतिक सफर भी स्वर्णिम रहा।

पालीवाल दौसा जिले की महुआ विधानसभा से साल 1952 में विधायक निर्वाचित होकर  पहली बार विधानसभा पहुंचे थे। उस समय वो महज आठ महीने मुख्यमंत्री रहे किंतु उनकी लोकप्रियता इतनी रही कि 1952 में मुख्यमंत्री रहते हुए जयनारायण व्यास जोधपुर और जालौर दोनो जगह से चुनाव हार गए लेकिन टीकाराम पालीवाल महुआ एवं मलारना दोनो जगह से चुनाव जीते।

गांधीवादी विचारधारा के नेता थे पालीवाल

जयनारायण व्यास के हारने के बाद पालीवाल को 3 मार्च 1952 को उपमुख्यमंत्री बनाया गया। वे साल 1957 में राज्यसभा सदस्य मनोनीत हुए। इसके बाद 1962 में हिंडौन से लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बने। गांधीवादी राजनेता के तौर पर छवि वाले टीकाराम पालीवाल आजादी के आंदोलनों में भी शामिल रहे और जेल भी गए। यूथ लीग नामक संस्था बनाकर उन्होंने युवा नेताओं के साथ मिलकर गांधीजी के नमक आंदोलन का सहयोग किया था।

जागीरदारी खत्म करवाकर ही दम लिया

राजनीतिक क्षेत्र में आने से पहले पालीवाल सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय रहे। पालीवाल प्रदेश के राजस्व मंत्री, वित्त मंत्री और मुख्यमंत्री जैसे पदों पर रहे। टीकाराम एक बार उपमुख्यमंत्री के साथ साथ राजस्व मंत्री भी रहे। राजस्थान में इन्हें भूमि सुधारों के जनक भी कहा जाता है। अपने राजस्व मंत्री के कार्यकाल में पालीवाल ने बेगारी प्रथा और जागीरदारी को खत्म करने का प्रस्ताव रखा। लोगों ने उनके इस प्रस्ताव के खिलाफ रोष भी प्रकट किया किंतु उनके प्रयासों से जागीरदारी खत्म हो गई।

टीकाराम पालीवाल के बारे में कहा जाता है कि वह बेहद सादगी पसंद, मिलनसार और मेहनती व्यक्तित्व के थे। उन्होंने मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए और पदमुक्त होने के बाद भी कभी सरकारी बंगला नहीं लिया। वो जयपुर में न्यू कॉलोनी पांच बत्ती चौराहा पर कालाडेरा के सेठ अपने दोस्त रामगोपाल सेहरिया के मकान में ही रहे। 8 फरवरी 1995 को 86 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई।

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