रेत से बना दुनिया का सबसे मजबूत भटनेर दुर्ग जिसमें सिरसा से भटिंडा तक रहस्यमयी सुरंग

दूर दूर तक मनुष्य नहीं दिखने वाले धोरों में एक किला बना राजस्थान के पश्चिम इलाके में, वह इलाक़ा वर्तमान हनुमानगढ़ (Hanumangarh) है।पुरातत्वविदों का कहना की इसी भटनेर दुर्ग (Bhatner Fort) के पास से होकर गुजरती थी घग्घर नदी।जिसे सरस्वती नदी (Sarswati River) भी कहा गया।इलाक़ा बीकानेर से नजदीक था, माल मवेशियों का समय था।व्यवस्थाएं सारी राजशाही थीं।राजा जो कहते वो होता।बीकानेर से 245 किलोमीटर दूर स्थित इस दुर्ग का निर्माण भाटीयों ने करवाया।भाटी राजपूत भूपत और उनके पुत्र अभयराव भाटी ने 295 ईस्वी में भटनेर की नींव रख दी।52 बुर्जों वाले इस भटनेर का नाम भी भाटी वंशज के निर्माता होने के कारण है।पक्की ईंटो और चूने से निर्मित इस दुर्ग को जीतने बाबत बहुतों ने कोशिश की किन्तु ‘उत्तर भड़ किवाड़ भाटी’ का जयघोष भारी रहा सब पर।इस दुर्ग के वास्तुकार का नाम जहां तक पता चलता है वह नाम केकैयी है।इसी दुर्ग में एक महत्वपूर्ण सुरंग भी है, बताते हैं कि यह सुरंग भटनेर से सिरसा-भटिंडा (Sirsa-Bhatinda) तक है।

तैमूर लंग हर जगह अपनी धाक रखता हुआ आ रहा था।इतिहास का बोध कहता है कि बगदाद के बाद वह सीधा भारत पर आक्रमण करने आया था और अप्रेल 1398 के किसी रोज़ उसने झेलम और रावी को पार कर भटनेर पर कब्जा कर लिया।समय राव दूलचंद का था।भटनेर उनके राज में चल रहा था अचानक हुए इस आक्रमण का दूलचंद को पता नहीं चलता और वह धोखे से इस दुर्ग का घेरा डाल आक्रमण कर देता है।फिर होती है लूटपाट और नर संहार।इसी दुर्ग में रहते हुए तैमूर ने अपनी जीवनी ‘तुजुक-ए-तैमूरी’ लिखी और उसमें लिखा कि- “मैंने अपने जीवन में इस दुर्ग जैसा मजबूत किला नहीं देखा कभी”।तैमूर अकेला नहीं आया था यहाँ।

इस रेत के किले में गजनवी तैमूर से पहले आ चुका था।तेरहवीं शताब्दी में गुलाम भी यहाँ आए और गयासूद्दीन बलबन का यहाँ राज रहा।बलबन का चचेरा भाई शेर खां यहाँ हाकिम रहा दुर्ग में।मंगोलों से लड़ा,उनके आक्रमण सहे और अंत में इसी दुर्ग में मृत्यु भी हो गयी दुर्ग में शेर खां की कब्र बनी हुई है।कुतुबुद्दीन एबक, पृथ्वीराज चौहान, अकबर, जहांगीर आदि ने इस दुर्ग में राज किया।इतिहास बताता है कि दिल्ली सल्तनत की रजिया सुल्तान को भी इसी दुर्ग में कुछ समय के लिए रखा गया था।या कहें कि सबसे ज्यादा विदेशी आक्रमण इसी दुर्ग, इसी उतरी सीमा के प्रहरी ने झेले।इतने आक्रमणों का कारण था इस किले का दिल्ली मार्ग के बीच होना।इस किले का भटनेर सम्भवतः भारत का एकमात्र ऐसा किला है जहां मुस्लिम महिलाओं ने भी जौहर किया।

भटनेर कब हनुमानगढ हुआ उसका भी अपना किस्सा है।किस्सा क्या राजाओं की बातें हैं।उनकी स्वायत मान्यताएँ हैं।बीकानेर महाराजा सूरत सिंह ने 1805 के किसी माह के किसी रोज इस किले पर अधिकार कर लिया था उस दिन मंगलवार था और हमारे यहाँ यह वार हनुमान जी का वार है तो सहाब नाम रख दिया हनुमानगढ।और इस उपलक्ष पर दुर्ग में हनुमान मंदिर भी बनवाया गया।इसी दुर्ग में करणी माता का मंदिर भी स्थित है।दरअसल हमने बातें बहुत कीं लोक को बचाने की, संस्कृति को बचाने की, हमारी विरासत को बचाने की लेकिन हमने केवल बातें की फकत बातें और यही कारण है कि भटनेर जैसे कई दुर्ग जर्जर अवस्था में जीवन काट रहे।उनकी सेवा कौन करे इस युग में? चीजें बदल गईं।समय पूरा वैश्वीकरण की ओर है ऐसे में लोक और लोक की चीजों को संरक्षित करने की उम्मीद करना बेमानी है।फिर भी यह कहना एक उम्मीद भर है कि सरकार को चाहिए कि इन विरासतों का जीर्णोद्धार करें और पर्यटकों के लिए नए रास्तें निकालें।एक बात आश्चर्य भरी है कि 1700 साल पुराना यह किला अनेक विपदाओं को झेलने के बावजूद भी ज़िन्दा है अभी।पुनर्निर्माण भी हुए हालांकि।

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