अभिताभ बच्चन का ऐसा जबरा फैन किसान रामबुल कश्यप जो करता पानी में उगने वाले अनोखे मेवे की खेती

पंचतत्व से फल बना,
पानी अलग से न्यारा।
जल का मेवा कहलाता है,
भर पानी का क्यारा।

जल का मेवा। केबीसी में भी पूछा था एक करोड़ का प्रश्न।
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दोस्तों नमस्कार।

दोस्तों आज मैं आपको एक ऐसी शख्सियत से मिलवाने जा रहा हूं। जिनके पास जल मेवा की खेती है। उनका नाम है रामबुल कश्यप सिंघाड़े वाला, हनुमानगढ़ राजस्थान।

आपने यह खेती कब से शुरू की।
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झलको हनुमानगढ़ के प्रशांत से बातचीत करते हुए कश्यप ने अपनी सिंघाड़े की खेती के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा, कि यह खेती बारह महीने की है। एक साल इसमें पूरी मेहनत करनी पड़ती है। उसके बाद में तीन महीने का सीजन आता है। प्रथम दो महीने तेजी के होते हैं। बाद में एक महीना मंदी का ही रहता है।

उन्होंने बताया कि मेरे पिताजी का नाम जग्गू राम कश्यप है। जो यूपी से 50 वर्ष पहले यहां पर आए थे, और उन्होंने ही हमें इस कार्य में प्रशिक्षित किया था। हनुमानगढ़ में केवल मैं ही इस खेती को करता हूं। अब आगे मैं मेरे बच्चों को भी इसी कार्य में प्रशिक्षित कर रहा हूं।

इसका बाजार कहां कहां पर है।
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कश्यप जी ने बताया की हमारे यहां से पूरे भारत में सभी लोग अपने रिश्तेदारों के यहां पर भेजते हैं। श्री गंगानगर, डब्बा वाली, संगरिया, ऐलनाबाद, पीलीबंगा, अबोहर के लोग यहां पर आकर ले जाते हैं।यह सिंघाड़ा फ्रूट की श्रेणी में आता है। जिसको कच्चा भी खाया जाता है। और ड्राई फ्रूट्स में भी काम में लिया जाता है।

उन्होंने बताया इसकी लागत बहुत कम है। लेकिन इसमें मेहनत बहुत ज्यादा है। इस समय सिंघाड़े तोड़ने वाले 7_8 व्यक्ति लगे हुए हैं। इसी प्रकार घास चुगाई में भी तीन चार महीने बहुत मेहनत करनी पड़ती है। कीमत के बारे में उन्होंने बताया कि ₹80 प्रति किलो से ₹100 प्रति किलो तक इस समय यह बाजार में बिक रहा है। सिंघाड़ा एक फल है, और जड़ी-बूटी भी है। जो बहुत सी दवाइयों में काम आता है।

इसकी खेती किस प्रकार करते हो।
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इसका बीज बाजार में नहीं मिलता है। मैं घर पर ही इसका बीज तैयार करता हूं। बीज तैयार होने के बाद में खेत में बड़े-बड़े क्यारे बनाते हैं। उसमें बीज को छोड़ देते हैं। समय आने पर बीज अपने आप अंकुरित हो जाता है। फिर उसके अंदर पानी भर देते हैं, कुछ समय बाद में बेल उगाई शुरू हो जाती हैं।

कुछ समय के बाद में इसके अंदर घास उगना शुरू हो जाता है। उस घास को चुगने में हमको तीन चार महीने का समय चाहिए। वह बहुत ही मेहनत का काम होता है। और फिर समय आने पर इसके फल आने शुरू हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि अप्रैल माह में फसल की लगाई शुरू होती है और गणेश महोत्सव से पहले इसकी पैदावार आ जाती है और अभी दो महीने और चलेगी।

अन्य।
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बहुत से लोगों की धारणा है कि सिंघाड़े की खेती गंदे पानी में होती है। जबकि मेरा 50 साल का तजुर्बा है कि हम रात दिन इसके अंदर काम करते हैं। यहां पर बिल्कुल स्वच्छ पानी है। नहर का पानी, बरसात का पानी, ट्यूबवेल का पानी या अन्य स्वच्छ पानी ही इसकी खेती के अनुकूल होता है। एक बार अमिताभ बच्चन ने भी अपने शो में एक सवाल पूछा था कि पानी के फल का नाम बताओ। यह वही पानी फल है।

” जय झलको ___ जय हनुमानगढ़। ”

अपने विचार।
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मन में जज्बा काम करण का,
तो खुशियों का अंबार खिलता है।
मेहनत करो जीभर के,
तो पानी में मेवा मिलता है।

विद्याधर तेतरवाल,
मोतीसर।

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