पीलीबंगा के मनोकामना सिद्ध बालाजी मंदिर का चमत्कार जहाँ होती हर इच्छा पूरी

सिंधु घाटी सभ्यता घग्घर के समानांतर थी।कालीबंगा (Kalibanga) उसी सभ्यता का एक स्थल है।बंग शब्द चूड़ी से संबधित है।मूल राजस्थानी भाषा और धाटकी बोली में चूड़ी को बंगड़ी ही कहते हैं।इसी कालीबंगा से महज कुछ किलोमीटर की दूरी पर पीलीबंगा (Pilibanga) स्थित है अर्थात अतीत में रहा पीली चूड़ियों का स्थान।लेख का विषय इसी पीलीबंगा के मनोकामना सिद्ध बालाजी मंदिर (Manokamna Siddh Balaji Mandir) का है।इस मंदिर की स्थापना काल का लंबा इतिहास नहीं है।इस मंदिर की नींव 17 जुलाई 2017 में संत श्री 1008 कमलनानंद जी महाराज ने रखी।मंदिर के पुजारी जी बताते हैं कि पिछले तीन-चार साल से बालाजी महाराज की कृपा इस कस्बे पर है और जैसा कि मंदिर का नाम है – मनोकामना सिद्ध बालाजी मंदिर, वैसे ही श्रद्धालुओं की मनोकामना सिद्ध होती है।सालासर का स्वरूप ही यहाँ भी है।जो श्रद्धालू सालासर (Salasar) दर्शन बाबत जाते हैं वे पीलीबंगा भी आते हैं ठीक वैसा ही मामला पीलीबंगा का है।

Manokamna Siddh Balaji Mandir

मंदिर के स्थापना के विषय में जानकारी प्राप्त यह है कि कस्बे के प्रमुख लोग और कुछ सेठ लोगों ने स्थानीय संत समुदाय से अनुरोध किया कि यहाँ कोई बालाजी का मंदिर बनाया जाये और इसी बात को स्वीकार कर उन्होंने इसका सोचा।बकौल पुजारी जी – डॉक्टर ने जिनको मना कर दिया, हाथ निकाल दिए वे लोग बालाजी महाराज के दर्शन कर, उनके यहां मांगी हुई मन्नत का प्रतिफल लेकर हँसते खेलते गये हैं।जिस समय मन्नत मांगी जाती है उस समय नारियल बाँध कर जाते हैं और मन्नत सफल परिणाम में बदल जाती है तो वह नारियल खोल जाते हैं।मंदिर में चढ़ावे के रूप में पंचमेवे का प्रसाद नित्य रूप में चढ़ता है।यह एक मिश्रण होता है जिसमें नारियल, कारक, काजू, काजू, किशमिश आदि।श्रद्धालू अपनी इच्छा से अलग-२ भोग लेकर आते हैं।कोई स्वामणी करता है तो कोई मेवे चढ़ाते हैं।

मंदिर के पुजारी जी का कहना है कि चूरमा (रोटी घी को चूरकर) बालाजी जी को विशेष प्रिय है।और यही कारण है कि जब दोपहर में मंदिर के पट बंद होते हैं तब मंदिर परिसर मे ही एक बड़ी रोटी बनती है जिसे स्थानीय लोकभासा में ‘रोट’ कहते हैं, का भोग लगता है जिसे केवल पुजारी ही लगाते हैं।इसी रोट को चढ़ाने के बाद भक्तों में वितरित कर दिया जाता है।मंदिर में प्रत्येक रविवार को सुंदरकांड का पाठ होता है।महीने के अंतिम शनिवार को अखंड रामचरितमानस का पाठ भी होता है।लब्बोलुआब बात यह है कि यहाँ की मान्यता के मुताबिक बाबा जो मन्नतें मांगी जाती हैं उन्हें सिद्ध करते हैं।

पीलीबंगा के अलावा मुख्य मंदिर सालासर में है।यूँ जयपुर में भी हनुमान जी के कई रूप वाले मंदिर है।जैसे. – ‘काले का हनुमान जी,’ खोले का हनुमान जी’ आदि।चौमूं के पास सामोद में वीर हनुमान जी के स्वरूप में मंदिर है।पहाड़ी पर बना यह मंदिर खूबसूरत इलाके में है।

बरसाती मौसम में बड़े से बड़ा नास्तिक भी चला जाये, निराश नहीं होगा।एक नैसर्गिक जगह है।यूं पीलीबंगा जिस जिले में है उस हनुमानगढ (Hanumangarh) जिले का पुराना नाम भटनेर (Bhatner) था, इसी भटनेर या कहें कि हनुमानगढ पर सुरत सिंह ने जब अधिकार किया था तो उस दिन मंगलवार था और यह वार हनुमान जी (Hanuman Ji) के विशेष मान्यता में है तो मंदिर भी बनाया और तब से जगह का नाम भी हनुमानगढ हो गया।बहरहाल हमारे लोक में ऐसे कई मंदिर हैं, कई इमारते हैं जहां ऐसी कई मान्यताएं निहित हैं जिसमें कुछ घातक तो अघातक तो कुछ उदासीन भी।कुछ भी हो हमारा लोक हमें छोड़ नहीं जाय बस इसी कारण ये तरले अरसे से होते रहे हैं।

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