कच्छवाह वंश की कुलदेवी जमवाय माता मंदिर की कहानी और रहस्य

कच्छवाह वंश की कुलदेवी जमवाय माता मंदिर की कहानी और रहस्य :

यूं तो अब राजस्थान में अब जमवाय माता के कई छोटे और बड़े मंदिर हैं, लेकिन सबसे प्रचीन और पहला मंदिर जमवा रामगढ़ का मंदिर ही है जो रामगढ़ बांध से कुछ ही दूरी पर बना है. कछवाहा राजवंश की कुलदेवी जमवाय माता का मंदिर जयपुर से लगभग 35 किलोमीटर दूर पूर्व में जमवा रामगढ़ की पहाड़ियों की घाटी में स्थित है. जामवा रामगढ़, जयपुर जिला का एक कस्बा है. हरियाली की गोद में पहाड़ियों के बीच जमवाय माता का मंदिर है. इनका पौराणिक नाम जामवन्ति है. इस मंदिर की स्थापना कछवाहा वंश के राजा दूलहराय ने की थी. इस मंदिर के अंदर तीन मूर्तियॉ विराजमान है , पहली मूर्ति गाय के बछडे के रूप में विराजमान है, दूसरी मूर्ति श्री जमवाय माता जी की है और तीसरी मूर्ति बुडवाय माता जी की है.

Jamway Mata Temple, जमवाय माता मंदिर

मंदिर की स्थापना का इतिहास:

कहा जाता है पहले इस इलाके का नाम मांच था और चौकीदार मीणों का यहां शासन था. एक बार दूलहराय से उनका युद्ध हुआ जिसमें दूलहराय को पराजय का सामना करना पड़ा और वह बेहोश हो गए. बेहोश अवस्था में उन्हें जमवाय माता ने दर्शन दिए और कहा कि मीणा शासक उनके मंदिर में तामसी भोग अर्पित करते हैं. यदि वो उसे रोककर मीठे का भोग लगवाना शुरू करेंगे और मंदिर का जीर्णोद्धार करवाएंगे, तो वह मीणों से युद्ध जीत जीएंगे. साथ ही उन्हें जीवनदान भी मिलेगा.

और हुआ भी यही. राजा दूलहराय युद्ध जीत गए औरमंदिर में तामसी भोग बन्द हुआ. उन्हें मीठी लापसी (मीठे दलिया ) का भोग अर्पित किया जाने लगा. मांच का नाम बदलकर अब इसका नाम जमवा रामगढ़ रख दिया गया. राजा जहां बेहोश हुए थे और माता ने दर्शन दिया था, वहीँ दुलहराय ने मंदिर का निर्माण किया.

ये वही मंदिर है जिसे अपनी कुलदेवी मानकर कछवाहा वंश ने सैंकड़ों साल तक आमेर पर शासन किया और जयपुर बसाया. मंदिर में नारियल की भेट चढ़ाना शुभ माना जाता है और आज भी कछवाहा वंश के लोग यहां बच्चों का मुण्डन और विवाह के बाद जोड़े की ढोक लगाने आते हैं. भले ही जमवाय माता कछवाहा वंश की कुल माता हैं, लेकिन अन्य वंश और जातियों के लोग भी माता के दरबार में मत्था टेकने आते हैं. जमवाय माता कुलदेवी होने से नवरात्र एवं अन्य अवसरों पर देशभर में बसे कछवाहां वंश के लोग यहां आते हैं और मां को प्रसाद, पोशाक और 16 शृंगार का सामान भेंट करते हैं.

कछवाहा राजवंश का इतिहास:

कछवाहा वंश को भगवान श्रीराम का वंशज माना जाता है. जयपुर के पूर्व राजघराने से जुड़ी सांसद दीया कुमारी भी खुद को राम का वंशज बता चुकी हैं. हाल ही में अयोध्या में बनाए जाने वाले भव्य राम मन्दिर के भूमि पूजन में जमवाय माता के मंदिर की पवित्र मिट्टी भी शामिल की गई है. दावा किया जाता है कि कच्छावा वंश के जयपुर के पूर्व राजघराने के सदस्य भवानी सिंह भगवान राम की 315 वीं पीढ़ी में थे. भवानी सिंह की बेटी और राजसमंद से बीजेपी सांसद दीया कुमारी भी कुछ वक़्त पहले दावा कर चुकी है कि उनका परिवार भगवान राम का वंशज है. कोर्ट में मन्दिर को लेकर चल रही सुनवाई के दौरान भी दीया कुमारी खुलकर सामने आई थी और वंशावली वृक्ष भी पेश की थी.

अयोध्या राज्य के राजा भगवान श्री रामचन्द्र जी के पुत्र राजा कुश के वंशज कछवाह कहलाते हैं, जिनका राज्य अयोध्या से चलकर रोहताशगढ (बिहार) में रहा . 11वी शताब्दी में महाराजा दुल्हेराय जी ने अपनी राजधानी नरवर (ग्वालियर राज्य) में बनाई. नरवर (ग्वालियर ) राज्य के अंतिम राजा दुलहराय जी ने अपनी राजधानी सर्वप्रथम राजस्थान में दौसा राज्य में स्थापित की. दौसा से उन्होंने मांच पर अपना अधिकार किया जहॉ पर मीणा जाति का कब्जा था. कछवाह राजवंश के राजा दुलहराय जी ने अपने ईष्टदेव भगवान श्री रामचन्द्र जी तथा अपनी कुलदेवी श्री जमवाय माता जी के नाम पर मांच का नाम बदल कर जमवारामगढ रखा.

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