शाकंभरी माता के आशीर्वाद से 24 कोस का चां’दी का ख’जाना बन गया नमक

स्थान सांभर (Sambhar), जिला जयपुर (Jaipur)।यह वही सांभर जहां कभी चौहानों के राज्य स्थल थे।शाकम्भरी माता (Shakambari Mata) चौहानों की कुलदेवी है।बावन शक्तिपीठ में से एक पीठ यह भी है।सांभर स्थित यह मंदिर लगभग ढाई हजार साल प्राचीन है।कथा का प्रसंग इस भांत है कि यहाँ प्राचीन समय में अकाल पड़ा था और सौ साल तक इस निर्जन स्थान पर बारिश नहीं हुई।शाकम्भरी माता ने यहां तप किया और शाक या कहें कि केवल वानस्पतिक भोजन किया।दरअसल इस जगह पर शाक का उत्पन होना भी माता का प्रबल तप कारण बनता है। शाक शब्द से ही शाकम्भरी बना है।लोक के अनुसार सांभर का अपभ्रंश शाकम्भरी ही है।

चौहान काल में सांभर और उसका पास का क्षेत्र सपादलक्ष (सवा लाख की जनसंख्या वाला क्षेत्र) कहलाता था। एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार यहां राजा ययाति ने शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी और शर्मिष्ठा के साथ विवाह किया था।

मान्यता है कि शाकम्भरी माता ने चौहानों को वरदान दिया था कि जितना घोड़ा घुमायेंगे उतना क्षेत्र चांदी में तब्दील हो जायेगा।माता ने उन्हें कहा कि पीछे मुड़कर मत देखना।आखिर मनुष्य के अंदर जिज्ञासा तो होती है, पीछे मुड़कर देख लिया और पाया कि पूरा क्षेत्र चांदीमय हो गया है।तब घर आकर सबने अपने घरों में इस बात का जिक्र किया तो घरवालों ने कहा कि कौन खाने देगा आपको? और इसी संदर्भ में लोक में एक दोहा प्रचलित है-

“बाईस कोस घोडौ़ फिरयौ, बणी चांदी की खाण
म्हानैं कुण खावण देसी मैया, लड़सी आलमजहां

बताते हैं कि शासक माता के यहाँ आये और इस परेशानी से उन्हें अवगत कराया तब माता ने कहा कि जाओ इसे अब खारा करती हूँ।फिर यह इलाक़ा नमक के क्षेत्र में बदल गया।तब से यहाँ नमक ही नमक है।सांभर झील इसी नमक के रूप में फेमस है।यहां कई फ़िल्में फिल्मायी गयी।विवादित और चर्चित फिल्म जोधा-अकबर की शुटिंग भी यहॉं हुई।

भाद्रपद की राधा अष्टमी को माता के प्रांगण में मेला भरता है।प्रसाद के रूप में हलवा, पूरी, मिठाई चढ़ायी जाती है।श्रद्धालु माता के लिए वेश लेकर आते हैं।यहाँ प्रतिमा के रूप में स्थापित मूर्ति के ऊपर वेश पहनाया गया है।दर्शन के रूप में माँ का घुटना दिखता है।मंदिर के अंदर ही एक सुरं’ग है।यह पृथ्वीराज चव्हाण (PritivjiRaj Chouhan) के समय की है।पुजारी जी बताते हैं कि यह जहां जहां पृथ्वीराज का राज रहा वहाँ वहाँ जाती है।एक जानकारी के मुताबिक यह सुरंग अजमेर के तारगढ़ से लेकर दिल्ली के लालकिले तक लंबी है।

देवी की प्रतिमा के पास गणेश जी और भैंरू जी दोनों की मूर्तियाँ स्थापित है।बताते हैं कि ये दोनों माता के साथ ही प्रकट हुए थे।माता की प्रतिमा के ऊपर चांदी का छत्र लगा हुआ है।यह छत्र भक्तजन अपनी मनोकामना सिद्ध होने के पश्चात चढ़ाते हैं।माता के मंदिर में अखंड ज्योति दिन-रात शुरू रहती है।मंदिर परिसर में ही अलग नक्काशी और शैली का भगवान शिव का मंदिर है।शिव लिंग भी।मंदिर परिसर के ठीक बाहर धर्मशाला, पेयजल आपूर्ति के लिए ठोस सुविधा समेत तमाम प्रकार की सुविधा उपलब्ध है।यहाँ तक पहुँचने के लिए सीधा राजधानी जयपुर से भी पहुंचा जा सकता है।रेलमार्ग जयपुर नागौर के बीच में सांभर आता है।सांभर कस्बे से बेशकीमती खजाना माता के मन्दिर की दूरी करीब 15 किलोमीटर है।

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