आज ही के दिन पोकरण में पर’मा णु परीक्षण से थर्राई थी धरा, लेकिन अब वहाँ के लोगों की जिंदगी ?

आज का दिन पूरे हिंदुस्तान और राजस्थान के लिए गर्व की बात है, आज ही के दिन 11 मई 1998 को पोकरण की धरा पर पर’मा’ णु परी’क्षण किया गया था जिससे पूरी दुनिया देखती रह गई थी और इसी परी’क्षण के बाद भारत सुपर’पाव’र के रूप में उभर के सामने आया था। जगत में ऐसी बहुत कम वस्तुएँ होंगी जिनके दो पहलू न हों।माने कि पॉजीटिव, नेगेटिव।पर’मा णु परी’क्षण भी इसी जगत में होता है।

भारत जब दुनिया का छठा पर’मा णु पाव’र बना तो देशवासियों में खुशी की एक जबरदस्त लहर चल पड़ी।अखबार भर गये।किताबों के नये संस्करण छपे और उनके मुख्य पृष्ठ पर पहले में मेडम गांधी और दूसरे में बाजपेयी जी का वह सामूहिक चित्र।सब कुछ शानदार हो गया था।और वास्तव में ठीक भी था।दु’श्म न घेर चुके थे।पर यह नहीं सोचा गया कि जिस इलाके में यह हुआ वहाँ के आसपास उसके अनुषंगी प्रभाव कितना घर जाएंगे? नहीं उन्होंने कुछ नहीं सोचा।उन्होंने यही सोचा कि थार के भोले लोग हैं।कुछ बोलेंगे नहीं।पर’ मा’णु और नाभि’ की’य चीजों जैसे तत्व इनके लिए काले अक्षर भैंस बराबर हैं। सो चुना मरूस्थल का पोकरण।

जब झलको राजस्थान की टीम पोकरण के खेतोलाई गांव में गयी तो लोगों के अनुभव सुनकर हैरानी हुई और लगा कि यु’ द्ध और प’रमा’ णु हमेशा घा’ तक होते हैं।बस हुक्मरान लडा़ते हैं हम उनमें उल्लू बन देखते रह जाते हैं।सन 1974 की मई में पहला पर’मा णु परीक्षण हुआ और खेतोलाई गांव के लोग बताते हैं कि 1974 के दिसंबर ढलते और जनवरी आगमन के समय इलाके पूरे में खु’जली का इतना भयं’कर रो’ग फैला कि उसके लिए कोई दवाई कारगर साबित नहीं हुई।चूंकि गायों का चारागाह यही एरिया है तो उनके बछड़े इतने बेडौल पैदा हुए कि न पूछो तो ही ठीक।

किसी के आंख नहीं तो किसी के पैर नहीं।गाय के हर बछडे़ के कान के नीचे एक गाँठ होती है।गायों के थनों में भी गांठ निकल जाती है जिसके कारण उनमें दूध निकलना बंद हो जाता है।जानवरों में भी कैं’सर आम बात हो गया है।

पर’मा’ णु परी’क्षण के कारण फैली इलाके में बिमा’ रियाँ
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खेतोलाई गाँव के एक साथी बताते हुए कहते हैं कि कैं’सर और च’रम रोग सबसे ज्यादा प्रभाव में हैं यहाँ।आज भी गांव में 8-9 मरीज़ कें’सर की पीड़ा भुगत रहे और एक दर्जन से ज्यादा लोगों की कें’सर से मौ’त हो चुकी।हिमो’फिलिया, ब्ल’ ड कैं’सर आदि ने इस इलाके में अपना प्रभाव जमा लिया जो कि बेहद घातक है।इस परी’क्ष ण का प्रभाव जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, पाली के इलाक़ों तक पडा़ और वे इलाके भी प्रभावित रहे।लेकिन राज्य और केन्द्र सरकार द्वारा किसी प्रकार का स्वास्थ्य कैम्प नहीं लगाया जाता और न ही कोई पूछ होती है।

गाँव में एक साथी का कहना है कि हमें और कुछ नहीं चाहिए सिवाय एक बड़आ अस्पताल और एक लैब, सोचिए हम केवल जांचे करवाने दो सौ किलोमीटर जाते हैं।कितना असहज मामला है।जिस समय दूसरा परीक्षण हुआ उस समय बाजपेई जी ने घोषणा की थी कि बड़ा अस्पताल देंगे लेकिन उनके यहां से जाने के उसका यहां कोई किसी प्रकार का क्रियान्वयन नहीं हुआ।

अब्दुल कलाम इस गाँव पर खुश थे कि इस गांव ने परी’क्ष ण की निजता लीक नहीं की लेकिन उनकी ख़ुशी का फल हमें नहीं मिला।सोचा नहीं था कि वि’किर णों को इसी भूमि को खराब करना था।लेकिन देश देश होता है।उसके लिए उसके देशवासी अपना तन मन धन समर्पित कर सकते हैं।स्त्रियों से जब बात की तो उन्होंने बताया कि आधी उम्र आते आते घुटनों में दर्द शुरू हो जाता है।और भी कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

आज पूरे देश के लिए गर्व की बात है और होना भी स्वाभाविक है लेकिन इस गाँव के लोग ही नहीं पता नहीं कितने गाँव के लोग परीक्षण के बाद हुए समस्याओं का जीता जागता उदाहरण है क्या सरकारों चाहे केंद्र हो या राज्य, क्या इनकी जिम्मेदारी इन लोगों की जनता के लिए नहीं बनती जिन्होंने देशभक्ति और देश के लिए अपनी वफादारी साबित की। क्या इनकी समस्याएं हमारी समस्याएं नहीं, सब लोग अपने विचार जरूर बताये ?

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