गौशाला में ‘गायों की सेवा’ से लेकर ‘हज’ तक का सफर तय करने वाले “खान चाचा” की इंसानियत की कहानी

आज आपको एक ऐसे व्यक्ति की कहानी बताएंगे जिसने निस्वार्थ भाव से धर्म जाति से ऊपर उठकर सेवा करने की मन में ठानी। हिंदू धर्म में गौ माता को सबसे ऊंचा माना जाता है, कहा जाता है कि गौ माता के शरीर में 33 करोड़ देवी देवताओं का वास होता है। लेकिन उस गौ माता की सेवा एक मुस्लिम करें तो शायद आप सुनकर अचंभित हो जाएंगे। लेकिन यह बात सत्य है, हम बात कर रहे हैं “खान चाचा” की।

खान चाचा अपने कहानी बताते हुए कहते हैं कि साल 2000 का समय था,जब दिन बुरे थे। उनके पास ना कोई नौकरी थी, न पेट पालने का कोई दूसरा साधन। वह नौकरी की तलाश करते करते हैं, राजस्थान के जैसलमेर पहुंच गए। 1 साल भटकने के बाद भी उनको नौकरी नहीं मिली, जैसे तैसे करके वह अपना गुजारा चला रहे थे। एक दिन अचानक उनकी नजर पड़ी एक इश्तिहार पर इश्तिहार था, कि गौशाला में किसी सहायक पद पर एक आदमी की जरूरत है। खान चाचा ने आवेदन करने का मन बनाया और सीधे पहुंच गए गौशाला।

उन्होंने आवेदन किया और गौशाला के व्यक्तियों ने उन्हें नौकरी पर रख लिया। चाचा बताते हैं कि उन्हें मवेशियों के साथ काम करने का अनुभव नहीं था, लेकिन फिर भी बिना अनुभव के उन्हें नौकरी मिल गई। इसी तरह वह बन गए गौशाला में काम करने वाले पहले मुसलमान। खान चाचा अपने कहानी को बताते हुए कहते हैं कि रोजाना दिन बीतते गए साल गुजरते गए, उन्हें कभी यह महसूस ही नहीं हुआ कि वह गौशाला का हिस्सा नहीं है। उनकी दिनचर्या ऐसी बन गई की गौशाला की गायों से उन्हें प्रेम हो गया। रोजाना सुबह उठकर गायों को नहलाते, उन्हे खाना खिलाते।

खान चाचा बताते हैं पहले तो वह सिर्फ इस काम को पेट पालने के लिए करते क्योंकि उनका एक बड़ा लंबा चौड़ा परिवार था। उन्हें उस समय 1500 रुपए महीना तनख्वाह मिलती थी, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने बताया कि जैसे समय बीतता गया वह गौशाला में गायों को ही अपना परिवार समझने लगे। चाचा बताते हैं कि उन्होंने गौशाला की कमाई से ही अपने बच्चों को पढ़ाया लिखाया उनकी शादियां कि आज उनके बच्चे सभी अच्छी पोस्ट पर नौकरी कर रहे हैं। शादी के बाद बच्चे बाहर चले गए हैं लेकिन चाचा आज भी जैसलमेर की गौशाला में अपनी सेवा कर रहे हैं। चाचा बताते हैं कि उन्होंने बच्चों की शादी के बाद सभी जिम्मेदारियों से मुक्त होने के बाद हज जाने के लिए पैसे जोड़ना शुरु कर दिया।

लेकिन वह कहते हैं ना कि जिंदगी में मुसीबत किसी भी मोड़ पर आ सकती है। ऐसा ही खान चाचा के साथ हुआ साल 2019 में किसे हादसे में उनके छोटे बेटे का निधन हो गया।
जिसके बाद छोटे बेटे के बच्चों की जिम्मेदारी खान चाचा पर आ गई। खान चाचा ने जितने पैसे जमा किए थे वह सब आप अपने पोता पोती की पढ़ाई-लिखाई पर लगाने लगे। इसी तरह उनका हज जाने का सपना और लेट हो गया।

हिन्दू भाइयो ने की मदद:

खान चाचा ने जब यह बात गौशाला में अपने हिंदू भाइयों को बताई तो सभी की आंखें भर आई। उन लोगों ने खान चाचा की मदद करने की ठानी और खान चाचा के लिए 30 हजार रुपये जमा करके दिए और कहा कि आप हज की यात्रा पर जाइए। खान चाचा कहते हैं कि उनका हज जाने का सपना गौशाला के हिंदू भाइयों ने पूरा किया।

खान चाचा कहते हैं कि धर्म जाति से हमें ऊपर उठकर सोचना होगा। हम सब इंसान है नफरत का बीज बोने वाले लोग हमारे बीच में सिर्फ दरारे डालना चाहते हैं। वह कहते हैं कि ना हिंदू बुरा है ना मुसलमान बुरा जो इंसान का इंसान से बुरा करे वह इंसान बुरा। खान चाचा कहते हैं कि गौशाला में काम करते हुए उन्हें कभी महसूस ही नहीं हुआ कि वह मुसलमान है या उनके साथ कभी दुर्व्यवहार किया जा रहा है। वह गायों को ही अपना परिवार समझकर निस्वार्थ भाव से सेवा करने लगे। आज भी खान चाचा जैसलमेर की उस गौशाला में काम करते हैं। उनकी कहानी से हम सबको यह सीख तो जरूर मिलती है कि धर्म और जाति सिर्फ इंसान ने बनाई है। भगवान ने तो इंसान बनाया है।

बॉलीवुड स्टार नाना पाटेकर की एक फिल्म का डायलॉग है कि हिंदू का खून और मुसलमान का खून,दोनों को मिलाया तो बता किसका कौन सा खू’न,जब बनाने वाले ने फर्क नहीं किया तो हम इंसान कौन होते हैं फर्क करने वाले। इस बात को साबित किया खान चाचा की कहानी ने और गौशाला में काम करने वाले हिंदू भाइयों ने। अलग-अलग धर्म के होने के बावजूद भी भाइयों की तरह गौ माता की सेवा करते खान चाचा और वह गौशाला के बाकी साथी इंसानियत का उदाहरण पेश करती हैं।

राजनीति में उछाल रहें हैं वो उछाल सकते हैं जितना ! वो रखता हैं अल्लाह के रोजे तू राम के व्रत रखना !!
वो करता हैं झुक कर सजदा तू हाथ जोड़ कर पूजा करना ! करता हैं प्रेम तू भारत से करता हैं वो उतना !!
वो बट जाता हैं मज़हब में तू धर्म जात में बटना! वो चाँद को देखकर ईद मानता हैं तू अपना करवा चौथ मना लेना!!
जो चल रही हैं लहर ये पवन उसमें खुद को मत बदल लेना ! तुझमें और उसमें बस फर्क हैं इतना!! वो देखता हैं ख्वाब और तू देखता सपना।

इन पंक्तियों से सिर्फ एक बात समझ में आती है कि देश में जरूर हम लोग धर्म जातियों में बैठ गए,लेकिन हम सब एक ही हैं।

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