भारत पाकिस्तान सीमा पर बसे राजस्थान के आखिरी गाँव की कहानी, लोगों के जीवन से जुड़ी खास बातें

पुरखों की परंपरा है,
बिना छत के रहेंगे।
शपथ ली थी तब हमने,
करें जैसा वो कहेंगे।

दोस्तों नमस्कार।

दोस्तों आज मैं आपको एक ऐसे लोंगेवाला (Longewala) गांव की कहानी सुना रहा हूं। जो भारत पाकिस्तान सीमा पर राजस्थान (Rajasthan) का आखिरी गांव है।जहां चोबीस घंटे खतरा, मिलिट्री का पहरा, पेट्रोलिंग, धमाकों की आवाज तथा हरदम लड़ाई जैसा, किस प्रकार रहते हो। इन सभी बातों की जानकारी के लिए मैं आप को लोंगेवाला लिए चलता हूं।

आपकी दिनचर्या कैसी है।
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एक बुजुर्ग व्यक्ति ने सुदेश से बात करते हुए बताया कि हमारा यहां सभी का धंधा भेड़ पालन, बकरी पालन है। सभी लोगों के पास में भेड़ और बकरीया है। कोई दूसरा काम नहीं है। गांव में स्कूल के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि स्कूल है, दो अध्यापक है, बच्चे सभी पढ़ने जाते हैं। पास में पचास किलोमीटर पर रामगढ़ गांव है, इसके बाद में बच्चे वहां पढ़ने जाते हैं।

एक अन्य व्यक्ति जो लुहार का काम करता है,से पूछने पर उसने बताया कि आज हम आगे जाने वाले हैं। पांच सात दिन ही एक जगह रुकते हैं। और वहां का पूरा काम करने के बाद में आगे चल देते हैं।यहां पर हम कसीया, फावड़ा टूटे हुए लोहे का औजार और बर्तनों को ठीक कर देते हैं और आगे चल देते हैं।

घर का काम चल जाता है क्या।
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उन्होंने बताया कि हम इस साइड में पहली बार आए हैं क्योंकि रामगढ़ (Ramgarh) के लोहार एक जगह रुक कर काम करते हैं। और हम चलते फिरते काम करते हैं। तो इस साइड आने पर हम को भरपूर काम मिला है। यहां लोग बहुत इज्जत करते हैं। इस गांव में 50 के लगभग घर हैं।आप मोबाइल को चार्ज कैसे करते हो के जवाब में वह कहते हैं कि हम लोगों के घर में जहां काम करते हैं। वहीं पर मोबाइल चार्ज कर लेते हैं।

हर जगह अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने वाले लोहार की गाड़ी के पास में जाकर सुदेश ने, उनके रहन-सहन खाने पीने और तकलीफ से संबंधित सभी बातें खुलकर की। आपको तकलीफ नहीं होती है। पूछने पर उन्होंने बताया कि तकलीफ तो होती है लेकिन हम तो हमारी पुरानी परंपरा पर आज भी कायम है कि कभी एक जगह रुकेंगे नहीं। सिर पर छत नहीं होगी। घास फूस की रोटी खाकर जीवन बसर कर लेंगे। इस प्रकार का प्रण हमने महाराणा प्रताप के साथ में लिया था।

उन लोगों की हर बात के आगे तकलीफ तो है।” के करा।” वह कहते हैं कि हम घुमंतू हैं, तकलीफ होगी, लेकिन क्या करें। परिपाटी यही है, जो बहुत दिनों से चली आ रही है।

अन्य।
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लकड़ियां कहां से लाते हो, के बारे में उन्होंने बताया कि जिस घर का काम करते हैं, उन्हीं से लकड़ियां ले लेते हैं।और उन्हें जलाकर कोयला बनाते हैं,और फिर इस साइकिल नुमा धोंकनी से लोहे को गर्म करके औजार बनाते हैं। एक बुजुर्ग व्यक्ति ने सुदेश से बात करते हुए बताया कि हम अनूपगढ़ (Anupgarh) से एक महीने पहले चले थे। इधर से उधर आने जाने में साधन किराए पर ले लेते हैं।

अन्य प्रश्नों का उत्तर देते हुए उन्होंने बताया कि इंदिरा गांधी नहर (Indira Gandhi Nahar) तो यहां पर आ गई लेकिन पानी नहीं आया। अभी हम गेहूं और बाजरा दोनों ही खाते हैं। यहां पर खेती नहीं होती है।

अपने विचार।
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सामान्य जीवन देखा नहीं,
संघर्षों से पाला सदा पड़ा।
सिद्धांतों की जब बात करें,
तो इनसे कोई नहीं बड़ा।

विद्याधर तेतरवाल,
मोतीसर।

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