थार के धोरों से किले में झुमके बेचने वाली एक नारी सेठानी वैष्णवी की हार नहीं मानने वाली कहानी

आज हम आपको एक ऐसी लेडी की कहानी बताएंगे जिसने अपनी मेहनत से अपने बच्चों को कामयाब कर दिया, यह कहानी थार के मरुस्थल जैसलमेर की कहानी है । उन्होंने मेहनत करके अपना परिवार खड़ा कर दिया। अपने ऊपर गिरी दुख की बारिश को उन्होंने हंसते हंसते सह लिया। हम बात कर रहे हैं वैष्णवी की, वैष्णवी जी बताती हैं कि बचपन में उन्होंने शादी करने का सपना देखा। असल में केवल 16 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई।

उनके लिए शादी का मतलब केवल नए कपड़े और मिठाई खाना होता था। बताती है कि केवल 16 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई और शादी के बाद उन्होंने गोल रोटी और अपने पति की फेवरेट हलवा पुरी बनाना सिखा। आगे बताती हैं कि उनके पति बहुत ही अच्छे इंसान थे, रोजाना 75 रु दिन का कमाया करते थे। उनके पति कंस्ट्रक्शन का काम करते थे, जितना कमाते थे उतना परिवार चलाने के लिए काफी था।

वे बताती हैं कि इस पैसे में से उनके पति बचत भी करते थे और साथ ही वैष्णवी को राजेश खन्ना की फिल्म दिखाने ले जाया करते थे। वैष्णवी राजेश खन्ना की बहुत बड़ी फैन रही है। उन्होंने बताया कि जिंदगी अच्छी चल रही थी, 10 साल में उनके 5 बच्चे हो गए और उनके पति इस दौरान भी कभी राजेश खन्ना की फिल्म वैष्णवी को दिखाना नहीं भूलते थे। आगे बताती हैं कि जब दोनों फिल्म देखने जाया करते तो बस के बदले पैदल चलते दे, जिससे साथ में अधिक समय बिता सकें। इसके बदले में अपने पति को पसंदीदा हलवा पूरी खिलाती थी। अच्छी जिंदगी चल रही थी लेकिन एक समय ऐसा आया कि सब कुछ बदल दिया।

उन्होंने बताया कि 1 दिन उनका सबसे बड़ा बेटा और उनका पति बाजार में कुछ सामान लेने गए। लेकिन लौटा तो सिर्फ उनका बेटा, उनका बेटा डरा हुआ लग रहा था और आकर उसने कहा कि बाबूजी को कुछ हो गया है। सभी लोग घबरा गए और उनके पति को जल्दी से अस्पताल लेकर पहुँचे। लेकिन अस्पताल पहुंचते पहुंचते देर हो गई थी,वैष्णवी के पति हार्ट अटैक से इस दुनिया को अलविदा कह चुके थे। आगे बताती हैं कि किसी तरीके से घर आए उनका सबसे छोटा बेटा केवल 2 साल का था। वह बताती हैं कि वह बहुत रोई और उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें।

लेकिन इसके बाद उन्होंने अपने परिवार की जिम्मेदारी खुद उठानी शुरू कर दी और एक होटल में 5 हजार महीने की नौकरी करना शुरू कर दिया। लेकिन 5000 रु से इतने बड़े परिवार को चलाना मुश्किल था,जिसके बाद उन्होंने दोस्तों की मदद ली और किले के अंदर झुमके बेचना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि यह काम करना बेहद मुश्किल था, लेकिन अपने बच्चों की खुशी से ज्यादा मुश्किल नहीं था। उन्होंने कहा कि बच्चे अपनी मां को कई बार जाने से रोकते थे वह वैष्णवी को कहते हैं मां आज रुक जाओ लेकिन मैं उनको कहती कि शाम को टॉफी लेकर आऊंगी और अपने काम पर चली जाती। उन्होंने कहा कि शुरुआती 5 वर्षों में पति की मृत्यु के बाद बच्चों को पालना बहुत मुश्किल रहा लेकिन उनकी सास ने उनकी बहुत मदद की। उन्होंने एक काम करने के लिए हमेशा प्रेरणा दी। वैष्णवी बताती है कि मैं कई बार इतनी दुखी हो जाती कि बाथरूम में खुद को बंद करके रोने लगती।

आज इन बातों को 50 वर्ष पूरे हो चुके हैं। लेकिन उनका दर्द आज भी कम नहीं हुआ है उनके पति की याद उनको आज भी सताती है। लेकिन उनको इस बात की बेहद खुशी है कि वह अपनी मेहनत से अपने बच्चों को कामयाब बना सकी है। अपनी लड़कियों की शादी कर चुकी है और लड़के भी अच्छा कमा रहे हैं। उनका एक बेटा तो भारतीय सेना में रहकर के देश की रक्षा कर रहा है। वह कहती हैं कि बच्चों को कामयाब बनाने के बाद अब उन्हें काम करने की जरूरत नहीं है लेकिन वह काम ना करें तो करें क्या। इसीलिए वह आज भी काम करती है। उन्होंने बताया कि वह हमेशा किले में झुमके बेचती हुई नजर आएंगी, जब तक उनका जीवन है तब तक वह किले में ही झुमके बेचेगी।

अपने एक किस्से के बारे में बताती है कि एक समय एक लड़का उनके पास सामान खरीदने आया जिसके बाद उस बच्चे ने उन्हें सेठानी कहकर के पुकारा। ज्यादातर वैष्णवी अम्मा या बहू सुनती थी, लेकिन उन्होंने सेठानी शब्द सुना तो बेहद खुशी हुई। वैष्णवी ने बताया कि आज भी उनको श्रीमती से ज्यादा सेठानी वैष्णवी सुनना बेहद पसंद है।

इस कहानी को बताने के पीछे हमारा एक ही मकसद यह है कि आपको यह बता सके कि किस तरीके से वैष्णवी ने अपने परिवार की जिम्मेदारी ली और अपने बच्चों को पाला पोसा। बच्चों को कामयाब बनाया और आज भी जिस काम को उन्होंने अपने संघर्ष के दिनों में किया उसे कर रही हैं। वे कहती हैं कि आखरी सांस तक वह इस काम को करती रहेंगी। यह कहानी हर एक उस औरत को प्रेरणा देने वाली है जो जिंदगी से हार मान जाती है। जिसकी जिंदगी में दुखों का पहाड़ टूट पड़ता है लेकिन वैष्णवी की कहानी से उन्हें प्रेरणा लेकर जीवन में आगे बढ़ने की सोचनी चाहिए।

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