सोने की परत से ढका जैसलमेर का खूबसूरत किला-सोनार किला!

Sonar Qila in Jaisalmer: सोनार किला जैसलमेर राजस्थान।
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जिससे बढे राजस्थान का सम्मान,
यह तो इतिहास गवाही देता है।
यह सूरमाओं की भूमि है,
राजस्थान का सम्मान बढ़ाता है।

राजस्थान की ऐतिहासिक धरोहर।
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दोस्तों नमस्कार!
दोस्तों आज मैं आपको एक ऐसे ऐतिहासिक स्थान पर लेकर जा रहा हूं, जहां की पृष्ठभूमि और सुंदरता का ऐतिहासिक महत्व अपने आप में अलग है। राजस्थान (Rajasthan) में कई ऐसे दुर्ग हैं, जिनका ऐतिहासिक महत्व सुनकर आप दंग रह जाएंगे। राजस्थान एक वीरों की भूमि है यहां की वीरता पूरे विश्व प्रसिद्ध है।आज मैं आप को एक ऐसे ही ऐतिहासिक दुर्ग की कहानी बता ने जा रहा हूं, जिसका विवरण नीचे दर्शाया गया है।

परिचय।
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Sonar Qila
राजस्थान (Rajasthan) में जैसलमेर जिले का सोनार किला (Sonar Qila) किसी परिचय का मोहताज नहीं है उसके अनेकों किस्से आज इतिहास में मौजूद है। एक स्थानीय जन ने अरुण से बात करते हुए बताया कि विक्रम संवत 1156 में महाराजा जैसल ने इस किले का निर्माण करवाया था। उनको प्रजा बहुत प्रिय लगती थी, इसलिए सभी की सुरक्षा के लिए इस किले का निर्माण करवाया गया था। उन्होंने बताया राजा का नाम जैसल और पहाड़ को संस्कृत भाषा में मेरु कहते हैं इसलिए जैसलमेर (Meaning of Jaisalmer) उन्हीं के नाम से पड़ा था।
यहां पर पहले एक बंगाली फिल्म बनी थी। उसका नाम भी सोनार किला था। इसे गोल्डन फोर्ट (Golden Fort in Rajasthan) भी कहते हैं। इस पहाड़ी में पीले रंग का पत्थर है।सुबह की पहली किरण इस पहाड़ पर पड़ती है, तो यह गोल्डन कलर में चमकती है। इसलिए किले का नाम सोनार किला रख दिया गया है। यह किला तीन पहाड़ियों के ऊपर बना हुआ है,वह पहाड़ी त्रिभुज के आकार की है। यह किला अंदर से तीन किलोमीटर लंबा है जो पांच किलोमीटर लंबी पहाड़ियों के ऊपर बना हुआ है।

किले का अंदरूनी भाग।
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इस प्रकार इस किले को त्रिकूट गढ (Trikut Garh) भी कहते हैं। इस किले को धव्न्द किला भी कहते हैं। क्योंकि धव्न्द रेगिस्तान को कहते हैं। जो कि यह रेगिस्तान के बीच में बना हुआ है। इस किले के अंदर चामुंडा माता का मंदिर और घंटियाली देवी, दो मंदिर बने हुए हैं। यहां पर पहले दशहरे के दिन बहुत बड़े मेले का आयोजन होता था। जिसमें सभी ग्रामवासी , राजा महाराजा अन्य गणमान्य व्यक्ति सभी इस चौक के अंदर बैठते थे। इसे दशहरा चौक कहते हैं।
इस किले की 70% प्रॉपर्टी राज परिवार की है।इसमें राजाका महल रानी का महल, प्रिंस महल, दीवाने खास तथा अनेक प्रकार केअलग अलग महल बने हुए हैं, जिनमें ब्राह्मण, राजपूत ही रहते थे। लेकिन अब यहां रेस्टोरेंट्स, होटल अन्य कई प्रकार के कार्यालयों का आधिपत्य है। 19वीं सदी में राजा मंदिर पैलेस में चले गए। अर्थात किले के बाहर दूसरे महल में रहने लगे। और इस किले में केवल प्रजा ही रहती थी। इस किले के अंदर 150 से ऊपर होटल चल रही है।

किले की यूनिक बातें।
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इस किले का पूर्ण ज्ञान रखने वाले एक व्यक्ति ने सभी बातोंके साथ कहा कि राजस्थान का पहला किला जिसमें आम जनता रहती है। आज सभी किले देखरेख के अभाव में खंडहर बने हुए हैंलेकिन इसमें जीवंतता है। यहां इसकी देखरेख की जाती है। अरुण ने बताया कि इस किले की स्थापना को 866 वर्ष हो गए हैं यहां पर पत्थरों पर लोगों के पैरों के गड्ढे बन गए हैं। किले के सबसे ऊपरी भाग में एक बड़ी तोप रखी हुई है, वहां से जैसलमेर का दृश्य बहुत ही सुंदर दिखाई देता है।

अन्य।
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दुर्ग की ऊंचाई 50 फुट से अधिक है। इसके अंदर चारों तरफ घूमने के बाद ऐसा ही महसूस होता है कि आज भी किसी सुंदर बाजार में घूम रहे हैं। ऐसे नहीं लगता कि नौ सौ साल पुराना है। यह दुर्ग राजस्थान का ही नहीं, पूरे भारत का सम्मान बढ़ाता है।

अपने विचार।
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इतिहास गवाही देता है,
यह सुरमाओं की भूमि है।
प्रजा की रक्षा खातिर,
मौत को ही चुनी है।

विद्याधर तेतरवाल,
मोतीसर।

चित्र महल गांव की यह खासियत आपको जरूर जाननी चाहिए!

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