स’ती परंपरा तोड़ रानी ने बनाई गड़ीसर झील और टीलो की पोल का रहस्य

राजस्थान में सुदूर पूर्व क्षेत्र में थार के रेगिस्तान में एक जिला है जिसका नाम है:- जैसलमेर।जिले में पर्यटन के अनेक स्थल है, उनमें से एक पर्यटन का प्रमुख केंद्र है जो हर वक्त पानी से लबालब और खूबसूरती को अपने आगोश में समाए हुए इतिहास में वर्णित है उसका नाम है:- गड़ीसर झील! इसके बीचो-बीच बनी छतरियां इसकी सुंदरता में चार चांद लगा देती हैं।इसका निर्माण जैसलमेर जिले के संस्थापक महारावल जैसल ने करवाया बाद में महारावल गङसी सिंह ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था और उन्हीं के नाम पर इसका नाम गड़ीसर झील पड़ा, इसको बनाने का कारण यही था कि बारिश का पानी यहां सुरक्षित कर सके और फिर उस बारिश के पानी को काम में लिया जा सके क्योंकि पूर्व में यहां पानी का कोई अन्य स्रोत नहीं हुआ करता था

यहीं से महिलाएं मटको में पानी भर कर ले जाती थी।इस झील का पुनर्निर्माण प्रत्यक्ष तौर पर महारावल गङसी सिंह ने करवाया था वह खुद आकर यहां सहयोग करते थे तथा आमजन ने भी इसके पुनर्निर्माण में काफी सहयोग किया।किसी कारणवश महारावल गङसी सिंह की मृत्यु हो जाने के कारण उनकी रानी ने स’ती परंपरा को तोड़कर इस झील के पुनर्निर्माण कार्य को पूर्ण करने की जिम्मेदारी ली!

इस झील के पास में ही श्री देवल माता जी द्वारा स्थापित आद्यशक्ति श्री हिंगलाज माताजी का बहुत ही प्राचीन एवं रमणीक मंदिर है।यहां पर मुख्य द्वार में ‘टीलो की पोळ’ (टीलो जो कि रॉयल डांसर थी) एक द्वार है जो झील के खूबसूरत परिवेश में अगवानी के तौर पर स्वागत करता है!

इस टीलो नामक नर्तकी ने राजा से कहा कि मैं कुछ निर्माण करवाना चाहती हूं और इसी ने यह भवन बनवाया था! पूर्व में जैसलमेर सिल्क रूट होने के कारण पर्यटक भी यहाँ ठहरा करते थे लेकिन फिर यहां की स्थानीय जनता ने राजा को इसके प्रति भङकाते हुए कहा कि आप राजा होते हुए एक नाचने-गाने वाले के भवन के नीचे से गुजरोगे।तो राजा ने इस भवन को तोड़ने का आदेश दे दिया फिर नर्तकी ने सूझबूझ से यहां के राजा का यदुवंशी होने के कारण इसे 1908 में भगवान विष्णु की एक मूर्ति स्थापित कर मंदिर में रूपांतरित कर दिया और तत्कालीन महारावल के विध्वंस से बचाने के लिए द्वार स्थापित किया गया।

आज भी राजा इस बिल्डिंग के नीचे से होकर नहीं गुजरते!

इसी गङीसर झील के पास से जैसलमेर किले का एक दूर का दृश्य देखा जा सकता हैं। जब सूरज की पहली किरणें किले पर पड़ती हैं तो यहाँ से किले के आकर्षक दृश्यों को देखा जा सकता हैं।सर्दियों के दौरान यहाँ भरतपुर पक्षी अभयारण्य के प्रवासी पक्षी अक्सर उड़कर झील के पास या किनारों पर बैठ जाते हैं। वर्तमान में सफाई की एवं सीवरेज की प्रमुख समस्याएं विद्यमान है यहां के स्थानीय निवासी पर्यटक तथा प्रत्येक भ्रमण करने वाला सफाई के प्रति सचेत नहीं है!

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