अद्भुत करिश्मा ~ राजस्थान की ऐसी चमत्कारी धरती जहाँ अपने आप बिना बिजली मोटर के निकलता पानी

प्यार से बोलो प्यार बढ़ाओ,
गंदे रास्ते राड के।
कुदरत की है माया निराली,
देता छप्पर फाड़ के।

दोस्तों नमस्कार।

दोस्तों आज मैं आपको एक कुदरत के अद्भुत करिश्मे की दास्तान बता रहा हूं , सच्ची घटना बयां कर रहा हूं। जिसको सुनकर आप भी दांतों तले अंगुली दबा लेंगे। आप भी चाहेंगे कि वहां जाकर देखूं। ” कुदरत जब देता है तो छप्पर फाड़ के देता है”। इस कहावत को बीकानेर (Bikaner) सीमा से दस किलोमीटर दूर जैसलमेर (Jaisalmer) जिले में अपने खेत में खड़े किसान सुखराम ने सुदेश से बात करते हुए कही।

कुदरत का पानी।
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सुखराम ने पानी के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि यहां पर लगभग 25 कुओं में इस तरह का पानी आ रहा है, जो बिना बिजली मोटर के अपने आप आ रहा है। बीकानेर जिले की सीमा से दस किलोमीटर दूरी पर हमारा यह खेत है। यहां पर दस वर्ष पहले मैंने यह बोर करवाया था। आवश्यकता के अनुसार इसका पूरा उपयोग करते हैं। और भरपूर फसल का आनंद लेते हैं।

चने के अलावा लगभग सभी फसलें यहां पर भरपूर मात्रा में होती है। पानी अपने आप आता है, इसलिए बर्बाद भी होता है। पर इसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं गया। बहुत से लोग यहां पूछने के लिए आते हैं कि कितना पानी है, कितना खर्चा आएगा, हम यहां आकर बस जाएं क्या, वगैरा-वगैरा। यहां से आगे जालूवाला, ढाका, देवा, इन सब गांवों में पानी इसी प्रकार आ रहा है।

इंदिरा गांधी नहर कितनी दूर है।
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उन्होंने बताया कि यहां से बीस किलोमीटर की दूरी पर इंदिरा गांधी नहर है। लेकिन इस पानी का उस नहर से कोई संबंध नहीं है। इस अद्भुत पानी को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। बताने से किसी को विश्वास नहीं होता। सुखराम ने बताया कि मेरी ससुराल अनूपगढ़ (Anupgarh) है। तो मेरे ससुराल वाले भी आकर देखते हैं, तो अचंभे में पड़ जाते हैं। कोई कहता नीचे मोटर लगी हुई है, लेकिन यहां तो आसपास में पांच किलोमीटर तक बिजली का नामोनिशान नहीं है।

रेतीले धोरों में स्वर्ग।
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सुदेश ने जैसलमेर के रेतीले धोरों के बीच उस स्थान को स्वर्ग समान बताया है। जहां पर जाकर अलौकिक शांति मिलती है। आज वहां पर लोगों की जिंदगी बदल रही है, सब अमन चैन से रहते हैं। सुदेश ने बताया कि राजस्थान में पानी की त्राहि त्राहि मच रही है, ऐसे समय में आपके पुण्य कर्म है, जो आप बिना कुछ खर्च किए पानी का आनंद ले रहे हैं।

अन्य।
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सुखराम के पास में अन्य किसान भी आ गए, जिन्होंने चावल, मूंगफली, गेहूं, सरसों, जो, बाजरी सब फसलें भरपूर मात्रा में होना बताया। उन्होंने वहां पर भरपूर मात्रा में वृक्षारोपण और फसल कर रखी है।पानी बर्बाद हो रहा है, इसके बारे में किसान ने बताया कि कोई मिस्त्री आकर इसको सही तरीके से सैट करें तो बंद भी हो सकता है।

अपने विचार।
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कुदरत का है खेल निराला,
इसका पार न पाया।
कहीं जगह ना कण रखने को,
कहीं ब्रह्मांड समाया।

विद्याधर तेतरवाल,
मोतीसर।

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