फौज में असिस्टेंट कमांडेंट बनकर झुंझुनू के लाडले रवि कुमार ने अपनी माँ का सपना किया साकार

समदर छोटा हो या मोटा, एक लेन मे तन तैरना है।
पोस्ट एक पर नजर गडा दे, बाकी पर सब को चलना है।

दोस्तों आज मैं आपको एक ऐसे शख्स से रूबरू करवा रहा हूं। जिसने अपनी मां के सपने को साकार करते हुए, फौज में अफसर बनकर, अपने भविष्य की एक लंबी छलांग लगाई है।

परिवार और परिचय।
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झुंझुनू (Jhunjhunu) जिले के बुहाना (Buhana) तहसील में खानपुर गांव (Khanpur Village) के रवि कुमार (Ravi Kumar) पुत्र राजवीर सिंह ने अपनी मां के सपने को साकार करते हुए फौज में अफसर बनकर सबको हैरत में डाल दिया। रवि कुमार ने खुशबू से बात करते हुए अपने बारे में बताया, कि मैं पढ़ाई में होशियार नहीं था। मेरा हमेशा क्लास में नीचे से तीसरा चौथा नंबर ही आता था। अर्थात मैं मध्यम से भी नीचे दर्जे में था। मेरी हमेशा से खेलकूद में रुचि रहती थी।

पढ़ाई में होशियार नहीं होने के बावजूद भी घरवालों का हमेशा से मेरे साथ सहयोग था। मेरे पापा कहते थे कि बड़ा होगा तो सब कुछ समझ में आ जाएगा।

अफसर लाइन की कैसे सोची।
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रवि कुमार कहते हैं कि जब मैं 11th क्लास में था, तब स्कूल के वार्षिकोत्सव में सेना के अफसर ने चीफ गेस्ट बनकर प्रोग्राम की अध्यक्षता की। तब मेरी समझ में आया कि बनना तो अफसर ही है। क्योंकि मेरे परिवार में मेरे पापा जी, मेरे दादाजी, मेरे परदादा जी, सब फौज में थे। लेकिन कोई अफसर नहीं था।

मैंने 12वीं क्लास के बाद में एनडीए का एग्जाम दो बार दिया लेकिन क्लियर नहीं हुआ। अब साढ़े 16 वर्ष से लेकर 19 वर्ष ही एनडीए की उम्र है, वह मेरी निकल चुकी थी।उसके बाद में ग्रेजुएशन किया और सीडीएस (CDS) का एग्जाम दो बार दिया, लेकिन क्लियर नहीं हुआ। फिर 2019 में मैंने सीएपीएफ (CAPF) का एग्जाम दिया। लेकिन क्लियर नहीं हुआ, और मैं हताश हो गया।

उसके बाद में मैंने हमारे पड़ोसी भूपेंद्र सिंह जी जो डीवाईएसपी है जयपुर (Jaipur) में, उनसे सलाह मशवरा किया। उन्होंने मुझे सफलता का मंत्र सिखाया।उन्होंने बताया कि इसमें दो पेपर होंगे। एक ऑब्जेक्टिव टाइप, दूसरा निबंध टाइप। दूसरे में आपको किसी प्वाइंट को विस्तार से लिखना है। जिसका आपको अभ्यास करना है। तो मैंने उसमें मेरा पूरा फोकस लगा दिया कि अबकी बार यदि क्लियर नहीं होगा, तो घर चला जाऊंगा और वहां पर दुकान खोलकर बैठूंगा।

इंटरव्यू के बारे में पूछने पर रवि कुमार ने बताया कि आपको किसी भी हालत में निराश नहीं होना है। चाहे कितने भी सवाल गलत हो जाए या नहीं। वह बार-बार आपको उत्तर बदल वाने की कोशिश करेंगे लेकिन जो सही है वह सही है। अडिग रहना है। आखिरकार रविकुमार टॉप टेन रैंक में रहकर असिस्टेंट कमांडेंट (Assistant Commandant) बन गया।

मम्मी, पापा, भाई और बहन का पूरा सहयोग रवि कुमार को मिला, और रवि कुमार ने मम्मी के सपनों को साकार कर दिखाया। रवि कुमार कहते हैं कि एक बार मैंने अधिकारी से कहा कि इसमें सीट बहुत कम है। तो अधिकारी ने मेरे को जवाब दिया कि कितनी भी सीट हो, आपको तो एक ही मिलेगी। आपको एक सीट पर ही काम करना है। एक पर ही फोकस करो। तो मैंने उसी समय प्रण कर लिया और आज आपके सामने इंटरव्यू के लिए खड़ा हूं।

अपने विचार।
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कमजोर होशियार बहाना है,
यह तो गाने के ही गीत है।
मन में जज्बा कुछ करने का,
तो जिद्द के आगे जीत है।

विद्याधर तेतरवाल,
मोतीसर।

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