फौजी के बेटे ने रिश्तेदारों के तानों का अफसर बनके दिया जवाब, की बोलती बंद ~गाड़ा सफलता का झंडा

कमजोर होशियार एक बहाना, यह तो गाने का एक गीत है।
मन में जज्बा हो कुछ करने का, तो जिद्द के आगे जीत है।

दोस्तों नमस्कार।

दोस्तों आज मैं आपको एक ऐसी शख्सियत से रूबरू करवा रहा हूं। जिसने अपनी जिद के आगे सबको चौंकाने के लिए मजबूर कर दिया। और बता दिया कि जिद के आगे जीत है।

परिवार और परिचय।
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लांबी अहिर (Lambi Ahir) बुहाना (Buhana) के रहने वाले साहिल ने अपने फौजी पिता और गांव का नाम रोशन कर अपने कैरियर की एक लंबी छलांग लगाई है। दूसरी क्लास तक कई स्कूलों में धक्के खाने के बाद में आखिरकार साहिल (Sahil) को देहरादून (Dehradun) पिता के पास में ही छोड़ना पड़ा। लेकिन वहां भी दसवीं क्लास तक नॉर्मल से भी कमजोर रहा।

साहिल ने खुशबू से बात करते हुए अपनी जिंदगी और सक्सेस स्टोरी (Success Story) के बारे में विस्तार से बताते हुए कहां कि मुझे देहरादून जाने के बाद में फौजी रुतबे का एहसास हुआ। कैसे चलते हैं, कैसे सैल्यूट मारते हैं। फौजी मेरे पिता को रोककर सैल्यूट मारते हैं, मेरे पिता ही मेरे हीरो है। मेरे पिता भी उच्च अधिकारियों को रोककर सैल्यूट मारते हैं। तब मुझे एहसास हुआ कि मुझे भी उच्च अधिकारी ही बनना है।

फिर मैंने क्वार्टर पर आकर गूगल पर सर्च करना शुरू किया कि अधिकारी कैसे बनते हैं। खोजबीन के बाद में मालूम पड़ा कि एनडीए (NDA) का कोर्स, जहां पर जल, थल और नभ तीनों के अधिकारी कोचिंग लेते हैं,और एनडीए पास करने के बाद में ही उच्च अधिकारी बनाए जाते हैं। एनडीए का एग्जाम यूपीएससी (UPSC) ही करवाती है। मैं बॉस्केटबॉल खेलता और इधर-उधर घूमकर टाइम पास कर रहा था। उसके बाद में डिसाइड किया की 28 महीने की ट्रेनिंग है, उसमें 4 पेपर होंगे, 300 का मैथ्स, 200 की जीके, 200 की इंग्लिश, 200 की जनरल साइंस।

साहिल (Sahil) ने बताया कि दसवीं क्लास के बाद में दो महीने की छुट्टी पर घर आया। मैं सबका लाड़ला था,पतला दुबला भी था,तो सबने लाड बिखेर बिखेर कर मेरा वजन 92 किलो कर दिया। घर में केवल वजन बढ़ता देखकर मुझे मेरा टारगेट दिखने लग गया। मैं कोचिंग के लिए चल दिया। सब बच्चों के मैथ्स में 80 परसेंट से ऊपर नंबर आते थे, लेकिन मेरे तो 10–15 से ऊपर नहीं आते थे। लेकिन जिद्द कर मैंने मेरे कदम लक्ष्य की तरफ बढ़ा दिए।

मेरा टारगेट की तरफ कदम शुरू हो गया और मैंने ट्वेल्थ के साथ में फर्स्ट अटेम्प्ट एनडीए का दिया। जिसमें मेरे मैथ्स में 67 नंबर बने। जबकि 120 नंबर होने चाहिए। तो मुझे विश्वास हो गया कि मैं कर सकता हूं। लेकिन दूसरा पेपर कोरोना की वजह से कैंसिल हो गया, और पढ़ाई का फ्लो टूट गया।

फिर आया असली टाइम : 

कोरोना के टाइम पर घर आ गया। घरवालों के तरह-तरह के ताने, मामाजी के ताने, कहीं फौज वगैरह में लग जा। हम भात भर दे, हम फ्री हो जाए, वगैरा-वगैरा। अगले एग्जाम की तारीख नजदीक आ गई। एग्जाम के 4 महीने थे मैंने पढ़ने का लक्ष्य निर्धारित किया। अलग से कमरा सेट किया, जूते पहन कर बैठे बैठे पढ़ना शुरू किया। रात को बहुत ज्यादा पानी पीता था बार-बार टॉयलेट आए, तो नींद नहीं आए। इस तरह मैंने मेरे शरीर को कठिन परिस्थितियों में डालकर चार महीने की पढ़ाई की और सफल हुआ।

उसके बाद में 19 सितंबर को इलाहाबाद (Allahabad) में इंटरव्यू हुआ, जिसकी मैंने पहले से ही बहुत अच्छी तैयारी कर रखी थी, इसके चार पड़ाव होते हैं।और उनको मैंने बखूबी पार किया और आज आपके सामने इंटरव्यू के लिए खड़ा हूं।

अपने विचार।
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जज्बा हो कुछ करने का,
तो रोम रोम जगता है।
पहाड़ नुमा लक्ष्य भी,
राई सा लगता है।

विद्याधर तेतरवाल ,
मोतीसर।

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