लोहार्गल की चेतनदास जी की बावड़ी की रहस्यमयी कहानी

शेखावाटी (Shekhawati) के झुंझुनूं (Jhunjhunu) जिले से लगभग सत्तर किलोमीटर उदयपुरवाटी (Udaipurwati) उपखंड में एक जगह पड़ती है लोहार्गल।इसी लोहार्गल (Lohargal) में अरावली (Arawali) की 1050 मीटर लंबी(सर्वाधिक) चोटी है।लोहार्गल का शाब्दिक अर्थ जो वहां का लोक बताता है वह यह है-‘वह स्थान जहां लौह भी गल जाये’। मान्यता और दंतकथायें प्रचलित हैं कि महाभारत में पांडव स्वजनों की हत्या करने के पाप के लिए दुखी थे उसी समय भगवान कृष्ण की सलाह पर कि जहां तुम्हारे हथि’ यार पानी में गल जाये वहीं आपके पाप धुलेंगे, वे कई स्थान घूमते घूमते इसी लोहार्गल में पहुंचे और यहाँ इनके हथि’ यार गल गये।वैसे पौराणिक कहानियों मे लोहार्गल का अपना मह्त्व प्रकाशित है।

chetandas ji ki bawadi lohargal

कथा है कि परशुराम ने यहीं पश्चाताप का यज्ञ किया और अतीत में रहे पाप से मुक्ति पायी।इसी लोहार्गल में एक बावड़ी निर्मित है जिसे चेतनदास की बावड़ी (Chetan Das ki Bawadi) कहा जाता है।इस भव्य बावड़ी के निर्माण में कई कथाएं प्रचलित है, कहते हैं कि जब इसका निर्माण कार्य चल रहा तब जैसे ही दिन में बावड़ी के जमीन खोदते रात को मिट्टी निकालने के लिए किया गया खड्डा पुनः भर जाता।फिर भैरों जी की प्राण प्रतिष्ठा की गयी और इसका निर्माण विधिवत शुरू हुआ।इसी बावड़ी के पास ही पहाड़ी पर सूर्यकुंड और सूर्य मंदिर बने हुए हैं जिसके पीछे भी एक रोचक कहानी है।

चेतनदास जी लोहार्गल के संत थे, तपस्वी थे और लोहार्गल की पावन भूमि को और भी अधिक पवित्र किया।लोहार्गल धाम से थोड़ा पहले उनका धाम स्थित है।इसी आश्रम में गोपाल जी का मंदिर भी बना हुआ है। चेतनदास जी के धाम के पास ही उक्त उल्लेखित बावड़ी स्थित है।यह पांच तलों के स्वरूप में है।हालांकि स्थानीय लोगों का कहना है कि ये पहले सात तल के रूप में थी लेकिन एक समय बीत जाने के कारण मिट्टी की वज़ह से दो तल ढक गए।देखने में भव्य यह बावड़ी काफी साफ सुन्दर है।बावड़ी के पीछे चेतनदास जी का धाम है,स्थानीय लोगों और भ्रमण कर चुके लोगों का कहना है कि धाम में आज भी चेतनदास जी चरणों के निशान मौजूद है।

बावड़ी निर्माण के संदर्भ में कथायें हैं कि स्थानीय राजा चेतनदास जी के वचनों से अभिभूत था और उनका अनुयायी था, और चेतनदास जी के वचनों से इस राजा की मनोकामना पूर्ण हो गयी और इस उपलक्ष में वह चेतनदास जी के पास आया और बोला कि आप आदेश करें – मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ? तो चेतनदास जी ने उन्हें बावडी बनाने के लिए कह दिया यह सोचकर कि यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं की प्यास बुझेगी।लगभग 1673 में बनी इस बावड़ी के आसपास कई मंदिर, कुंड आदि हैं।नजदीक जगह बरखंडी के बरखंडी महाराज और चेतनदास जी गुरु भाई थे।यहीं उत्तर दिशा में बावन भैरों और चौंसठ जोगणी की प्रतिमाएँ भी स्थापित हैं।

लोहार्गल के सूर्यमंदिर (Surya Mandir) और सूर्यकुंड (SuryaKund) आने वाले लगभग सभी लोग इस बावड़ी को देखकर जाते हैं।बावड़ी लगभग पानी से भरी रहती है।पुजारी जी से यह पूछने पर कि, क्या इसकी कोई सार-संभाल कर्ता है? वे कहते हैं जनता करती है यह तो।उसमें भी कई ऐसे हैं जो पत्थर फेंकते हैं तो दूसरे ध्यान रखते हैं।राजस्थान की खूबसूरत और भव्य बावड़ियों में चेतनदास की जी की बावड़ी का उल्लेख होता है।बावड़ी के अंतिम तल में एक गुफा भी है जिसके विरचन के संदर्भ में कोई जानकारी नहीं मिलती।

बावड़ियों के तलों और उसकी कारीगरी को देखने पर पता चलता है कि उस जमाने की अभियांत्रिकी भी कम नहीं थी।उस समय के वास्तुकार भी लाजवाब थे।हमारी धरोहर ही हमारा लोक होता है, कलाएं होती हैं।यह एक पर्यटनीय विरासत है जो पहचान का द्योतक है।विरासत के संरक्षण के लिए राज्य सरकारों को, केंद्र सरकारों को काम करना चाहिए, उन्हें संवर्धित करना चाहिए ताकि विदेशी और देसी पर्यटक बने।समय एकदम दूसरा आ चुका है।वह समय दूसरा था जब सेठ साहूकार इलाकों में बनायी गयी पर्यटन की जगह का जीर्णोद्धार करवाते थे या निर्माण को महत्व देते थे।यह समय संस्कृति, विरासत और लोक कलाओं का विरोधी है।हमें इस विरोधी समय का विरोध करना चाहिए और लोक को बचाने के लिए अपनी बात रखनी चाहिए।

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