झुंझुनू के बाबा ने एक दिन में बना डाला चिराणा का कैलाशपुरी मंदिर

1972 में बना यह मंदिर झुंझुनूं के चिराणा गाँव में एक पहाड़ी पर स्थित है।मूलतः यह मंदिर शिव भगवान का है।श्रावण और शिवरात्रि पर इस मंदिर का दृश्य देखने योग्य होता है।श्रद्धालुओं की आस्था का भान उस दिन होता है। मंदिर परिसर में जो निर्माण होता है और भंडारे की व्यवस्थाएं होती है वह सभी ग्रामीणों के द्वारा होती है – चंदा व्यवस्था से। मंदिर की स्थापना के बारे में एक बुजुर्ग बताते हैं कि 25 अगस्त 1972 को एक बाबाजी गांव की दुकानों के पास आए थे और हमें बताया कि सामने दिख रही पहाड़ी पर एक मंदिर बनेगा।हम ने उन्हें बताया कि इतनी दूर पहाड़ी पर कहां से मंदिर बनेगा साहब।तो बाबा जी ने कहा कि मंदिर वहीं बनेगा और हम लोग वहां निरीक्षण के लिए आ गए और रात को वहाँ जागरण हुआ और वहां इस मंदिर की प्रतिस्थापना की गई।

मंदिर पहाड़ी पर स्थित होने के कारण पानी की किल्लत होती थी गांव के सभी लोगों में से एक एक करके जो अपनी श्रद्धा के अनुसार एक एक घड़ा नीचे गांव से लेकर ऊपर पानी तक पहुंचा था। कुछ लोगों ने वहां पर अपनी श्रद्धा अनुसार करके चंदा इकट्ठा करके वहां एक टंकी का निर्माण भी करवाया जिससे आमजन और आने वाले श्रद्धालुओं की प्यार का इंतजाम हों।ऐसे मंदिर अरावली के चारों ओर खूब स्थित है।समय साधुओं का था, वे तप-जप के लिए इधर उधर भ्रमण करते रहते थे।जहां जगह ठीक लगती थी वहीं अपना डेरा जमा देते थे।

उस समय ग्रामीण लोग भी उनके प्रति शुद्ध आस्था रखते थे, उनको खाना खिलाना सौभाग्य समझते थे।लेकिन वह समय दूसरा था अब समय बिल्कुल बदल गया है तो ऐसे में यदि कोई किसी को खाना खिला रहा है चाहे वह आस्था के बहाने ही सही, बड़ी बात है।

मंदिर एकदम पहाड़ी पर है।मंदिर के आसपास बंदरों ने घेरा कर रखा है।उन्हें भी अपने खाने पीने का जुगाड़ मिल जाता है।हर कोई अपने अस्तित्त्व को जिंदा रखने के लिए लड़ता है।मंदिर कैलाशपुरी नाम से हैं, इसके पीछे का तर्क वही रहा जो कैलाश के मानसरोवर का रहा।बहरहाल ऐसे मंदिर गांवों में, कस्बों में, शहरों मे हर जगह अपने लोक के गणराज्य के रूप में जिंदा होते हैं।उन्हें मानसिक सुख देते हैं।

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