CISF जवान सुमित सोमरा ने माउंट लाओत्से एवरेस्ट पर लहराया तिरंगा,झुंझुनू के लाडले की हौसलों की उड़ान

राजस्थान की शेखावटी धरती झुंझुनू के लिए एक गौरव की बात है। केंद्रीय सश’स्त्र बल के तीन जवानों ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी में से एक माउंट लाओत्से को फतह कर लिया है। 3 जवानों ने मिलकर इस चोटी पर तिरंगा फहराया। बात करें तो पहले जवान सुमित जो सीआईएसफ में सब इंस्पेक्टर है। सुमित झुंझुनू जिले के मोई पुरानी गाँव के रहने वाले हैं। उनके दो साथी रहे आईटीबीपी के आरएस सोनल और बीएसएफ के सुरेश छत्री।

तीनों जवानों ने मिलकर भारत का तिरंगा आज सबसे ऊंची चोटी में से एक लाओत्से पर फहरा दिया। रविवार को सुबह 8:30 बजे तीनो लोग लाओत्से की 8516 मीटर की ऊंचाई पर तिरंगा फहराने में सफल रहे। अपने सफलता के बारे में सुमित ने बताया कि तीनों लोगों ने 11 अप्रैल को अपनी यात्रा शुरू की थी। 24 अप्रैल को वह लोग एवरेस्ट के बेस कैंप में पहुंचे। 2 मई को यहां से चढ़ाई करना शुरू किया और 8 मई को एवरेस्ट के बेस कैंप 1 में पहुंच गए। वहां से वह फिर रवाना हुए और 9 मई को बेस कैंप 2 में पहुंच गए।

चढ़ाई करते-करते 10 मई को कैंप 3 में पहुंच गए, कैंप 3 की ऊंचाई 7300 मीटर है। कैंप 3 पर पहुंचने के बाद सुमित और उनके साथियों ने देखा कि यहां कई पर्वत चढ़ने वाले लोगों की मौ’ त हो चुकी है। यहां स्विट्जरलैंड और अमेरिका से आए पर्वत चढ़ने वाले लोगों की मौ’ त हो चुकी है, कई लोग खाई में गिर चुके हैं।

वह लोग इस मंजर को नही देख पाए और वापस नीचे आ गए। नीचे आने का एक कारण और वहा का मौसम बहुत खराब था, ताऊ ते तूफान का असर देखा जा सकता था। तूफान की वजह से मौसम बेहद खराब हो चुका था। आगे चढ़ना मुश्किल था। वह लोग वापस बेसकैंप 3 में आ गए,21 मई तक वह लोग वहीं रहे। सुमित आगे बताते है कि 22 मई को रात को 1:00 बजे उन्होंने यहां से चढ़ना शुरू किया। सुमित बताते हैं कि यहां का तापमान -45 डिग्री था और हवाएं भी बहुत तेज चल रही थी।

ठंड के बावजूद भी उन्होंने अपने हौसले को गिरने नहीं दिया और आगे बढ़े तीनों साथियों ने एक कैंप 4 का बाईपास किया। सुमित बताते हैं कि यात्रा के दौरान उन्हें कई तरह के नकारात्मक विचार भी आए,विचार थे कि कहीं अगर ऑक्सीजन खत्म हो गया तो क्या होगा। कहीं रेगुलेटर खराब हो गया तो क्या होगा। कहीं तूफान में हम फंस गए तो क्या होगा। अगर किसी साथी को खो दिया तो क्या होगा। लेकिन सुमित बताते हैं कि उनके साथी और वह खुद बिना अपने हौसले को डगमगाए आगे बढ़ते रहें और रविवार को सुबह 8:30 बजे लाओत्से की चोटी पर जाकर तिरंगा फहरा दिया। सुमित बताते हैं कि उनके साथी और वह खुद इस तूफान से डर रहे थे उस तूफान को पार करके चोटी तक पहुंचे। उन लोगों ने तूफान को मात दी।

झुंझुनूं के बेटे है सुमित

सुमित की बात करें तो सुमित झुंझुनू के रहने वाले हैं। बालपन में ही सुमित के ऊपर से उनके पिता का साया उठ गया। जब वह 7 साल के थे तो उनके पिता का निधन हो गया। उनकी देखभाल उनके ताऊ ने की, सुमित बीटेक तक पढ़ाई करने के बाद सीआईएसफ में भर्ती हो गए। सुमित ने इस कामयाबी का श्रेय अपनी मां,अपने ताऊ और अपने परिजनों को दिया। वे कहते हैं कि परिवार का हमेशा से ही सहयोग रहा। सेना में भर्ती होने के पहले भी परिवार उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा देता था। सुमित के गांव के सरपंच नरेंद्र डैला ने भी परिजनों को बधाई दी है। सुमित कामयाबी के बाद झुंझुनू जिले में खुशी का माहौल है, लोग सुमित पर गर्व कर रहे हैं।

साथियों ने भी परिजनों का किया शुक्रिया

वहीं सुमित के दोनों साथियों ने भी अपने परिजनों का धन्यवाद किया। उन्होंने भी कहा कि हम तीनों को गर्व है कि हम भारत के तिरंगे को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी में से एक माउंट लाओत्से पर ले जा सके।

वाकई हम सब के लिए गौरव की बात है कि केंद्रीय सशस्त्र बल के जवानों ने यह कामयाबी अपने हौसले और अपने आत्मविश्वास से पा ली। हम तीनों ही जवानों का धन्यवाद करते हैं और उन्हें सलाम करते हैं कि उन्होंने तिरंगे की आन बान शान को बनाए रखा।

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