जब तक मेरी सांस चलेगी, तब तक मैं पढाऊंगा।
उम्र हो गई सौ के नजदीक, मां का कर्ज उतारूंगा।
आज मैं आपको शेखावाटी के लाल, प्रसिद्ध गणितज्ञ ,शिक्षा के प्रति समर्पित डॉक्टर घासीराम जी वर्मा की जीवनी के बारे में बता रहा हूं। घासीराम जी वर्मा का जन्म 1 अगस्त 1927 को हुआ था। उनके पिताजी का नाम चौधरी लादूराम तेतरवाल और माता जी का नाम जीवनी देवी था। आज घासीराम जी वर्मा (Dr. Ghasiram Verma) किसी परिचय का मोहताज नहीं है।
झुंझुनू (Jhunjhunu) जिले के सिगड़ी गांव (Sigri Village) में चौधरी लादूराम जी तेतरवाल के घर जन्मे, 1964 से अमेरिका के किंग्सटन शहर (Kingston City) की रोडे यूनिवर्सिटी में गणित के प्रोफेसर रहे घासीराम जी वर्मा ने बात करते हुए कहा कि, मेरी उम्र अब 95 वर्ष की हो गई है। मैंने खूब पैसा कमाया, खूब मान सम्मान पाया है। अब अंतिम इच्छा एक ही है कि अंतिम सांस अपनी माटी में लूं। अब मैं अमेरिका वापस नहीं जाऊंगा।
करोड़पति फकीर के नाम से प्रसिद्ध घासी राम जी
अपनी लगभग पूरी कमाई शिक्षा में लगाने वाले घासीराम जी वर्मा करोड़पति फकीर के नाम से प्रसिद्ध है। उनका कमाया हुआ पैसा कब शिक्षा पर खर्च हो जाता है। उनको इसका आभास ही नहीं रहता। बहुत बार दोस्तों से मांगना पड़ता है। शुरुआत की चार पंक्तियां–
करोड़पति फकीर की लेखी, तपती धूप में बाला देखी।
धधकती ज्वाला को दबा दिया, बालिका छात्रावास बना दिया।
सबसे पहले गांव की लड़कियों को दोपहर में स्कूल से वापिस अपने गांव जाते समय बस के इंतजार में तपती धूप में खड़े देखा। तब उन की इस मुहिम की शुरुआत हुई, और झुंझुनू के मंडावा मोड़ (Mandawa Mod) पर बालिका छात्रावास (Maharishi Dayanand Balika Vigyan Mahavidyalaya) बनाकर इस मुहिम की शुरुआत की। उसके बाद वर्मा जी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और अपने वेतन से 12 करोड़ से अधिक धन बालिका शिक्षा पर खर्च कर दिया।
अपनी पेंशन से अपने गृह जिले और राजस्थान में बालिका शिक्षा पर लगभग 50 लाख रुपया सालाना खर्च कर रहे हैं। उन्होंने अब तक ग्यारह करोड़ से अधिक अपने वेतन और पेंशन से खर्च कर दिए हैं। उनकी प्राथमिक शिक्षा गांव में स्कूल नहीं होने के कारण पड़ोस के गांव वाहिदपुरा के एक निजी विद्यालय में हुई। वाहिदपुरा गांव से 5 किलोमीटर दूर था जहां रोज पैदल आया जाया करते थे। इसके बाद इंटर तक पिलानी में शिक्षा ग्रहण की। पिलानी में घासी राम जी छात्रावास में रहते थे तथा गर्मी की छुट्टियों में घर नहीं आते थे और वहीं पर चार पांच बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर अपने खर्चे में कमी को पूरा करते थे। इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद से बीए और एम ए बनारस विश्वविद्यालय से किया।
घासी राम जी ने पीएचडी करने के बाद 1958 में इंडियन साइंस कांग्रेस की कोलकाता कॉन्फ्रेंस में शामिल हुए । उस बैठक के बाद गणितीय विज्ञान संस्थान की ओर से उनका अमेरिकन विद्वान प्रोफेसर फ्रेडरिक से परिचय हुआ ।उन्होंने इनकी योग्यता को समझकर अमेरिका आने का निमंत्रण दे डाला। 1958 में घासी राम जी के पास अमेरिका से एक पत्र आया ।जिसमें घासी राम जी को न्योता देते हुए $400 प्रतिमाह देने का वादा किया गया था ।भारतीय रुपए के हिसाब से ₹2000 का यह तत्कालीन निमंत्रण था।
घासी राम जी ने न्यूयॉर्क के किंग्सटन शहर में रोडे आईलैंड यूनिवर्सिटी में सन 1964 से सन 2000 तक 36 वर्ष गणित के प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएं दी। लगभग 20 वर्ष पहले सेवानिवृत्त हो चुके वर्मा जी को लगभग ₹68 लाख रुपए पेंशन वगैरह के मिलते हैं जिनमें से 50 लाख रुपए बालिका शिक्षा पर खर्च कर रहे हैं।
घासी राम जी का लगाव अपने गांव से दूर जाने के बाद भी कम नहीं हुआ और प्रति वर्ष 3 महीने भारत आते हैं और पूरा पैसा खर्च कर वापस चले जाते हैं कभी-कभी तो वापिस जाने का किराया भी मांगना पड़ता है। इसलिए करोड़पति फकीर कहलाए।
डॉक्टर घासीराम वर्मा से सम्बंधित एक छोटी सी कहानी:
एक दिन नवलगढ़ ठिकाने के एक बड़े अफसर हेमसिंह राठौड़ कार लेकर सीगड़ी गांव में आये। गाँव में बच्चे उनकी कार को देखने के लिए इकट्ठे हो गये। ठाकुर हेमसिंह राठौड़ ने उन बच्चों से एक सवाल पूछा कि एक पेड़ पर दस कबूतर बैठे हैं, एक शिकारी की गोली चलने से एक कबूतर मर गया तो बताओ पेड़ पर कितने कबूतर बचे ? सब बच्चे एक दूसरे का मुंह देखने लगे।
लेकिन बालक घासीराम ने जवाब देने के लिए हाथ उठाया। ठाकुर ने उसकी ओर देखा तो बालक घासीराम बोला, गोली की आवाज से पेड़ पर एक भी कबूतर नहीं बचा, सब उड़ गये। हेमसिंह राठौड़ बच्चे की बुद्धिमानी से बहुत ज्यादा प्रभावित और खुश हुए और उन्होंने इस बालक को निकटता और गहराई से देखा व सुप्त प्रतिभा को पहचान गये। वो कहते है ना पूत के पाँव पलने में दिख जाना ! उन्हें आभास हुआ कि यह बालक प्रतिभावान है। बालक के पिता को बुलवाया और कहा कि चौधरी आपका यह बालक बहुत बहुत होशियार और बुद्धिमान है। आप इसे पिलानी पढ़ने भेज दो।
चौधरी ने अपनी आर्थिक स्थिति बताते हुए कहा कि वहां सेठों की स्कूल है व खर्चा भी ज्यादा आयेगा। छोटा बच्चा घर से भी दूर चला जायेगा, इन सब की वजह से हम इसको दूर नहीं भेज सकते लेकिन हेमसिंह के अधिक समझाने पर घासीराम के पिताजी मान गये। ठाकुर ने शुकदेव पाण्डे (बिड़ला शिक्षण संस्थान के डायरेक्टर) को एक सिफारिशी पत्र लिख दिया। चौधरी साहब उस पत्र को लेकर घासीराम को पांचवी कक्षा में पढ़ाने पिलानी ले गये और बालक को पिलानी में प्रवेश मिल गया। मात्र अढाई रुपये मासिक की छात्रवृत्ति मिल गयी और छात्रावास में रहकर पढ़ने लगे। इस तरह उनकी पढाई और प्रतिभा में निखार आया। इस छोटी सी जीवन की कहानी के बाद घासीराम वर्मा कभी नहीं रुके और जीवन बहुत सारी ऊंचाइयों को छूआ, उन्होंने घिसाराम से डॉ. घासीराम वर्मा तक जीवन का सफर बहुत सादगी से तय किया।
ऐसी गाथा लिख दी प्रभु ने, गर्व से सीना फूल गया।
शेखावाटी का लाल घासी, मोह माया सब भूल गया।
दान की शुरुआत: तपती धूप में बाला देखी, मन में उठती ज्वाला देखी। धधकती ज्वाला को दबा दिया, बालिका छात्रावास बना दिया। अमेरिका से पहली बार जब घासी राम जी घर आए तो ग्रामीण क्षेत्र की लड़कियों को झुंझुनू में दोपहर की तपती धूप में घर जाते देखा तो मन पसीज गया और छात्रावास बनाने का निर्णय लिया। इस शुरुआत के बाद वर्मा जी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और छात्रावास के पास में महर्षि दयानंद विज्ञान महाविद्यालय का शुभारंभ किया।
महिला शिक्षा को बढ़ावा देने हेतु विद्यालय ,कॉलेज, महाविद्यालय ,छात्रावास आदि को अब तक ग्यारह करोड़ से अधिक का सहयोग कर चुके हैं। आज भी 93 वर्ष की उम्र में अतिथि प्रोफेसर की हैसियत से तथा पेंशन से प्राप्त किए पचास लाख रुपए से अधिक का सहयोग प्रतिवर्ष कर रहे हैं। और युवक की भांति अपना जीवन जी रहे हैं।
पुरस्कार:
अस्थाई रूप से अमेरिका में बस चुके शिक्षाविद डॉक्टर घासीराम वर्मा को 2021 के स्वामी गोपाल दास पुरस्कार के लिए चुना गया है ।यह पुरस्कार चूरू की सर्वहित कारिणी सभा पुत्री पाठशाला, कबीर पाठशाला जैसी संस्थाओं के संस्थापक, आजादी के आंदोलन के प्रहरी व समाजसेवी को स्वामी गोपाल दास की स्मृति में दिया जाता है। डॉक्टर घासी राम जी को राज्यसभा का टिकट दिया जा रहा था लेकिन नहीं लिया और पदम श्री पुरस्कार के लिए आवेदन के लिए कहां लेकिन नहीं किया इसलिए श्री वर्मा जी को संत के नाम से भी पुकारते हैं।
शादी:
डॉक्टर साहब की शादी इंटर पास करते ही आखातीज के अबूझ सावे पर गांव नयासर के गंगाराम जी की बेटी रुकमणी देवी के साथ कर दी ।इन के 3 पुत्र ओम, सुभाष और आनंद है। डॉक्टर साहब पर लिखी गई मुख्य पुस्तके : (1) अभिनंदन ग्रंथ (2) करोड़पति फकीर (3) उटज अजीर से गुरु शिखर तक (4) बावन बन्यो विराट (5) अतीत की झलक (6) धन्य हुई जननी की कोख (7) डॉक्टर घासीराम वर्मा एक परिचय (8) scaling the heights (9) धोरो से हिलोरो तक (10) बेदाग चदरिया
युवाओं के लिए संदेश।
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आप युवाओं को क्या संदेश देना चाहेंगे। इसका जवाब देते हुए घासीराम जी कहते हैं कि नियमित पढ़ाई करें तथा ईमानदार रहें। इसके अलावा सबसे कहना चाहूंगा, कि आप जितना भी कमाते हैं, उसका कुछ हिस्सा दान जरूर करें। अमेरिका में सब लोग पैसे के पीछे भाग रहे हैं।
घासीराम जी कहते हैं कि किसी के पास कितना भी पैसा हो जाए, यदि संतोष नहीं है तो वह सुखी नहीं है। मैं आज अमेरिका से आया हूं और आते ही कॉलेज में पढ़ाकर आया हूं। और आगे भी अंतिम सांस तक पढ़ाता रहूंगा। मुझे इसमें संतोष मिलता है।
लेखक की कलम से: गरीब किसान की एक झोपड़ी, बनी हुई थी गांव सीगड़ी। दाता दान का ऐसा निराला, सब कुछ लुटा कर करें उजाला। ऐसी गाथा लिख दी प्रभु ने, गर्व से सीना फूल गया। शेखावाटी का लाल घासी, मोह माया सब भूल गया।