104 साल के स्वतंत्रता सेनानी रामेश्वर चौधरी जी के निधन पर उनके जीवन की शौर्य गाथा

शहीदों की भूमि झुंझुनू जिले से 104 साल के योद्धा स्वतंत्रता सेनानी रामेश्वर चौधरी (Rameshwar Choudhary) का निधन हो गया है जिन्होंने आजादी की लड़ाई के लिए 10 साल तक घर छोड़ दिया और भूमिगत होके आंदोलन को चलाया था। स्वतंत्रता सेनानी रामेश्वर चौधरी जी का जन्म गांव बाय में हुआ था

और आज उन्ही के पैतृक गाँव में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार हुआ।

उन्होंने अपने जीवन में चिकित्सा शिविर, नशा मुक्ति शिविर जैसे आयोजन के माध्यम से बहुत बड़े बड़े काम किये है और महात्मा गांधी के मार्गदर्शन में “अहिंसा परमो धर्मः” की धारणा को अपनाते हुए लोगों में जागरूकता के बहुत कार्य किये। चौधरी जी को आजादी के रत्न सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। जयपुर नेशनल यूनिवर्सिटी (JNU) द्वारा उनको डॉक्टरेट की उपाधि से भी नवाजा जा चुका है।

झुंझुनू के लाल स्वतंत्रता सेनानी रामेश्वर चौधरी जी ने 14 साल की उम्र में ही पढाई को छोड़ के स्वतंत्रता की लड़ाई में भाग लेके हिंदुस्तान को गुलामी की जंजीरो से आजाद करवाने में अहम योगदान दिया था।

जब वो आजादी की लड़ाई में शामिल हुए तो उनके पिता, और परिवार के हर सदस्य ने उनके इस फैसले में सहयोग दिया। वर्तमान में स्वतंत्रता सेनानी रामेश्वर चौधरी की बहू तारा देवी पूनिया ग्राम बाय की सरपंच जिनके अनुसार उन्होंने अपने ससुर बहुत आजादी की किस्से सुने है जो किसी भी युवा में या किसी भी उम्र के व्यक्ति में जोश भर देता है।

हमारे जिले के स्वतंत्रता सेनानी रामेश्वर चौधरी जी जैसे योद्धा की वजह से ही हम सब आजादी को हासिल कर पाए, झलको झुंझुनू (Jhalko Jhunjhunu) ऐसे वीर योद्धा को शत शत नमन करता है और उनके इस सेवा, समर्पण और त्याग को सलाम करता है। जय हिन्द

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