राजस्थान का अनोखा पुस्तकालय जहाँ रखी है सोने की पॉलिश वाली किताबें

पुस्तक आईना दिखाती है,
पुस्तक इतिहास बताती है।
पुस्तक मार्गदर्शक है,
पुस्तक ही भविष्य बनाती है।

दोस्तों नमस्कार।

दोस्तों आज मैं आपको एक ऐसी लाइब्रेरी में ले चलता हूं। जहां पर लगभग दो हजार पांच सौ पुस्तकों पर सोने की पालिश की हुई है। यह राजकीय लाइब्रेरी (Government Library) झुंझुनू जिले (Jhunjhunu District) के खेतड़ी (Khetri) कस्बे में स्थापित है। लाइब्रेरी में कार्यरत अध्यापक ने सोने की पॉलिश वाली किताबें दिखाते हुए बताया यह देखो, यह पुस्तक सन 1842 की लंदन प्रेस में छपी हुई है। यह पुस्तक1846 की है। इनके सोने की पॉलिश करने के बाद में इनकी उम्र बढ़ जाती है अर्थात इनके कोई कीड़ा या दीमक वगैरह नहीं लगता है।

एक बार स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekanand) ने कहा था कि पुस्तक मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र है। यदि महाभारत, रामायण, गीता या अन्य धर्मशास्त्र नहीं होते तो आज समाज और व्यक्ति का स्वरूप कुछ अलग होता। आज समाज उन्हीं के नक्शे कदम पर चल रहा है वरना जंगली जानवरों की तरह एक अलग ही पहचान होती। हमारे ग्रंथों के अंदर सुव्यवस्थित और संस्कारित करने के उपाय बताए गए हैं। हम उन्हीं धर्म ग्रंथों के द्वारा हमारे समाज की सुंदर स्थापना कर रहे हैं और करते हैं। यदि मनुष्य पढ़ा लिखा और थोड़ा संवेदनशील है तो उसका पुस्तक से बड़ा कोई साथी नहीं है।

हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड (Hindustan Copper Limited) के एक सेवानिवृत्त कर्मचारी ने बताया कि इस पुस्तकालय से मैं 60 वर्ष से जुड़ा हुआ हूं। इस पुस्तकालय की स्थापना 1842 में महाराजा फतेह सिंह जी के द्वारा की गई थी। वहां पर रखी एक बड़ी फोटो को दिखाते हुए अध्यापक महोदय बता रहे हैं कि यह फोटो एस आर रंगनाथन की है। जो पुस्तकालय विज्ञान के जनक कहे जाते हैं। आज भारत के अंदर जितने भी पुस्तकालय चल रहे हैं वह इन्हीं की देन है।

रंगनाथन के बारे में वह बताते हैं की यह ऐसे महान शख्स है जो अपनी शादी के दिन भी लाइब्रेरी में जाने से नहीं चूके। इन्होंने कोलन क्लासिफिकेशन नाम की एक विधि तैयार की है जिसके द्वारा भारत के सभी पुस्तकालय चल रहे हैं।

लाइब्रेरी में कार्यरत सुमन मैम ने अपने बारे में बताया कि मेरी फर्स्ट पोस्टिंग यहीं पर हुई थी। मुझे यहां पर 14 वर्ष हो गए हैं और मैं यहां का झाड़ू निकालने से लेकर प्रत्येक कार्य को बड़ी रुचि के साथ करती हूं। यहां मेंबर बनाए हैं और पुस्तकों का सार संभाल का पूरा कार्य मैं अपने घर से भी ज्यादा तल्लीनता के साथ करती हूं। मैं यह कार्य इसलिए कर रही हूं कि लोगों को पता चले कि यहां पर पुस्तकालय में सबको बहुत अच्छी सुविधा मिल रही है। यहां पर ₹100 प्रति वर्ष में पढ़ाई की सुविधा प्रदान की जाती है।

इस पुस्तकालय में रियासत कालीन, स्वामी विवेकानंद के समय की और महाराजा अजीत सिंह के समय की पुस्तकें हैं। यहां पर बच्चों के कंपटीशन की सभी प्रकार की पुस्तकें विद्यमान हैं। बहुत से बच्चे यहां पर पढ़ कर कंपटीशन में निकले हैं और नौकरियां प्राप्त की है।

पुस्तकालय 5 सिद्धांतों पर चलता है ।पहला पुस्तक वही लानी चाहिए जो उपयोगी हो। दूसरा सिद्धांत यह है कि प्रत्येक पाठक को उसके पढ़ने की पुस्तक मिले। तीसरा सिद्धांत यह है कि प्रत्येक पुस्तक को उसका पाठक मिले अर्थात कोई भी पुस्तक अनुपयोगी नहीं होनी चाहिए। चौथा सिद्धांत पाठक का समय बचाओ अर्थात उसको पढ़ने के लिए तुरंत पुस्तक मिलनी चाहिए। पांचवा सिद्धांत पुस्तकों की संख्या बढ़ती ही रहनी चाहिए अर्थात पुस्तके कम नहीं होनी चाहिए।

अपने विचार।
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पुस्तक ऐसा साथी है,
जीवन भर साथ निभाए।
कुछ कम कुछ ज्यादा,
जब जब मन को भाए।

विद्याधर तेतरवाल,
मोतीसर।

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