झुंझुनू के 2 यो’द्धा करणी राम और रामदेव सिंह की शहादत की कहानी जिन्होंने ल’ड़ी किसानों के लिए ल’ड़ाई

भारत ने आजादी तो पा ली थी लेकिन राजे रजवाड़ों का दुख जाने का नाम नहीं ले रहा था।उन्हें बात की छटपटाहट थी की हमारा सब कुछ छीन गया है और इसके प्रतिरोध में वे आमजन को परेशान करना करना कम नहीं किए।ऐसे समय में क्रां’तिकारि’यों का पैदा होना एक जाहिर सी बात है क्रां’ति ही है। आह हम आज दो ऐसे व्यक्तियों की बात कर रहे हैं करणी राम और रामदेव सिंह।

जिन्होंने जमीदारी और सामंती प्रथा के खिलाफ अपनी आवाज उठाई और श’हीद हो गए।हम बात कर रहे हैं शेखावटी के दो योद्धाओं की, जो लड़े थे सामंती परंपरा के खिलाफ।जमीं’दारी के खिलाफ और जु’ल्म के खिलाफ।हम बात कर रहे हैं अमर शही’द करणी राम और राम’देव सिंह की।बात को आगे बढ़ाएं उससे पहले एक दोहे को उद्धृत करते जाएं जो कि शेखावटी के लोक में प्रसिद्ध है-

जगती सूरां जात, पीरां पगल्या पूजती । सूरज-चंदा साथ, रहसीं करणी-रामदेव ।।

यह समय ऐसा था जहां किसान मजदूर आदि लगान और सामंती जीवन जी रहे थे ऐसे में कुछ लोग आगे आए और उन्होंने राष्ट्रीय आं’दोलन की मुहिम छेड़ी।यह राष्ट्रीय आं’दोलन की मुहिम शेखावटी भी पहुंची और शेखावटी में जो लोग आगे आये उनमें करणी राम व रामदेव अगली सफ़ में थे।

करणी राम का जन्म झुंझुनू के भोजासर गांव में हुआ था किंतु छोटी उम्र में ही माता जी का निधन होने के कारण उनका पालन पोषण उनकी ननिहाल में हुआ उनका ननिहाल ढूंढ लो ठिकाने में श्री मोहन राम आजादी के घर था।करणी राम ने प्रारम्भिक शिक्षा बुगाला की चटशाला में प्राप्त की।मिडिल स्कूल की परीक्षा अलसीसर की जे.के. स्कूल से पास की और सन 1934 में करणी राम चिड़ावा की हाई स्कूल में हो गए जहां के प्रधानाध्यापक प्यारेलाल गुप्ता थे जो शेखावाटी जनजागरण अभियान के अग्रणी रहे।1936 में चिड़ावा स्कूल से करणी राम ने दसवीं पास की। 1938 में बिड़ला इंटर कालेज से इंटर परीक्षा पास की।महाराजा कालेज से 1940 में बी.ए. पास किया और फिर वे इलाहाबाद से विधि स्नातक होकर झुंन्झूनूं में वकालात करने लगे।

इलाके में शिक्षा नाम भर थी।माने कि इतनी नहीं कि जागीर’दारों के ज़ु’ल्मों का द’मन कर सके।लगान बटाई में लिया जाता था। लगान के अलावा अनेक प्रकार की लाग-बाग ली जाती थी। किसानों की हालत दयनीय होती जा रही थी।पूरे इलाके में पक्का मकान देखने को नहीं था किसी सेठ के यहां भले मिल जाए।लेकिन इक्का दुक्का।समय ऐसा था कि लोग अपमानजनक स्थिति में जी रहे थे। जागीर’दारी माई बाप था।वह जो कहता है वही होता।

रामदेव और श्री करणी राम की जोड़ी अद्भुत थी लेकिन दोनों के व्यवहार बिल्कुल प्रतिकूल थे और इस प्रतिकूलता में उन दोनों ने क्या करनी दिखाया कि बहुत सोचने लायक है।शिवनाथ सिंह गिल ने उनके बारे में लिखा है कि – “राम देव सिंह जी ज’लती आ’ग का ध’धकता गो’ला’ थे। बड़े ही क्रियाशील व्यक्तित्व के धनी थे— जागीरी जुल्मों को आंख से देखा था और भुगता था— जागीरी अत्या’चारों के खिलाफ खुले विद्रो’ही की साक्षात मूर्ति थे। बड़े अच्छे संगठनकर्ता थे, जिस भी गांव में जाते मिनटों में एक अच्छी खासी कार्यकर्ताओं की फौ’ज खड़ी कर देते थे। लोग कहा करते थे कि कितनी शक्ति है इस व्यक्ति में कि जहां से निकल जाता है वहीं आ’ग सी लग जाती है।

बालकपन से ही उग्र स्वभाव के थे, अन्या’य से समझौता करना उनकी कृति में नहीं था। डटकर हर अत्या’चार का मुकाबला करते थे। भय नाम की चीज उनके लिए थी ही नहीं। जंहा भी देखते अन्या’य हो रहा है छाती खोलकर मुकाबले को खड़े मिलते थे।श्री रामदेव सिंह जी उम्र में तीन साल बड़े थे लेकिन पढ़ना लिखना हम दोनों ने करीब-करीब एक साथ ही शुरू किया था। बचपन में उनकी नटखटता के कारण मुझे कई बार परेशानियों का शिकार होना पड़ता था। स्कूल में जाते आते बहुधा तंग किया करते थे लेकिन दूसरे बच्चों द्धारा मुझे कभी परेशान नहीं करने दिया—-एक ढाल समान मेरी रखवाली करते थे, हम दोनों साथ-साथ हिंदी वर्नाक्युलर फाइनल परीक्षा साथ-साथ पास की। उन्होंने राजपूताना शिक्षा मंडल स्कूल में”।

दोनों ने सामं’ती व्यव्स्था के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी।इन दोनों नेताओं ने घर-घर जाकर लोगों की स्थिति देखी।लोगों को अपने अधिकारों के प्रति अवेयर होने की जागृती पैदा की।और इस तरह किसान वर्ग करणी राम जी वह रामदेव सिंह जी को अपने उद्धारक के रूप में देखने लगा।करणी राम गरीबों के दास नाम से विख्यात हुए।उनका घर जैसे गरीबों की शरणगाह बन गया हो, जरूरतमंद लोगों का आना जाना बना रहता था।चूँकि वे वकील थे, इसलिए कई बार केस के लिए अपनी और से पैसा लगा देते थे।गांधीवादी थे।हाथ से कती हुई रूई के कपड़े पहनते थे।साधारण जीवन जीते थे, उन्हें शेखावाटी के गांधी भी कहा जाता था।

रामेश्वर सिंह अपनी पुस्तक “शेखावाटी के गांधी अमर शहीद करणी राम” में लिखते हैं कि – “1952 के आम चुनाव आये, श्री करणीराम जी ने उदयपुरवाटी से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप चुनाव लड़ने का निर्णय लिया। बड़ी विकट स्थिति उदयपुरवाटी के उस समय थी। सम्पूर्ण क्षेत्र जागी’रदारों के बुरी तरह से प्रभाव में था। मनुष्य को मनुष्य नहीं समझा जाता था। किसानों से मनचाहा लगान लिया जाता था—-लगान की कोई दर निश्चित नहीं थी — जो भी जागी’रदार की मर्जी में आया, तय कर लिया और ले गये। अनेक प्रकार की लागबाग चालू थी। किसान की सम्पूर्ण पैदावार जागीरदार के लगान–बोहरे की तुलाई–धुँआबाज खूंटा बंधी आदि में चली जाती थी। बेगार ऊपर से लेनी पड़ती थी।खलिहान से किसान के घर अनाज का एक दाना भी नहीं पहुंच पाता था। इस पर भी जमीन की सुरक्षा नहीं थी–मनचाहे जब बेदखल किया जा सकता था–सम्पन्न सम्मान पूर्वक जिंदगी बसर करने की बात तो सोचना ही असम्भव था।जागी’रदारों का इतना आं’तक था कि कोई जबान भी खोल नहीं पाता था।

ऐसे वातावरण में चुनाव लड़ना कोई आसान बात नहीं थी। कार्यकर्ताओं को लोगों के पास पहुंचने नहीं दिया जाता था। श्री करणीराम जी तथा श्री रामदेव सिंह जी अपने साथी कार्यकर्ताओं को साथ लेकर रात दिन गाँवों में घूमने लगे। लोगों में कुछ साहस आया। वातावरण में कुछ बदलाव आने लगा। जागीरदारों व कांग्रेस कार्य-कर्ताओं में आपस में विवाद खड़े होने लगे। वह समय ऐसा ही था। सम्पूर्ण राजस्थान की जागीरी क्षेत्रों में यही हाल था। श्री जयनारायण व्यास सरकार में सन 1952 के चुनाव लड़ रहे थे। उनको भी जागीरदारों ने अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में घुसने तक नहीं दिया और ऐसा लोकप्रिय नेता जो दो स्थानों से चुनाव लड़ रहा था, दोनों ही स्थानों से चुनाव हार गया।”।

करणीराम और रामदेवसिंह की श’हादत
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दोनों नेताओं की जोड़ी ने उदयपुरवाटी इलाके में एक सभा बुलाई।इस सभा में हज़ारों आदमी एकत्र हुए।पूरा उदयपुरवाटी जु’ल्म का दमन करने के लिए आमादा था।किसान तैयार हो चुके थे और भौमिया भी अपना करडा़पन छोड़ने को तैयार नहीं थे।लगान को लेकर जो आं’दोलन लडा़ जा रहा था वह अब बहुत आगे पहुंच चुका था।ऐसे में स्थिति की गंभीरता को देखते हुए राजस्थान सरकार ने केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल मंगवाकर उदयपुरवाटी भेजा जिसका कैम्प चंवरा गाँव में लगा था।

12 मई 1952 की रात को करणीराम ने सुना कि चंवरा गाँव में सारे जागीरदार इकट्ठे होई गए है और जबरन फसल उठाने की योजना है।पडूतर में वहां भारी संख्या में किसान इकट्ठे हो गए हैं। करणीराम ने किसानों से शांति बनाये रखने की अपील की, कारण कि वे गांधीवादी थे।रामदेव सिंह व करणीराम दोनों सेडू गूजर की ढाणी में आकर रुके और लेट गए।करीब 3 बजे दोपहर भौमियों के भेजे हुए रामेश्वर दरोगा व गोवर्धनसिंह ने करणीराम व रामदेव सिंह को मारकर फरार हो गए।हालांकि उन्हें कुछ लोगों से कहा ज़रूर कि आज हम’ले का अंदेशा है, पर वे नहीं माने और फिर वे हंसते-हंसते श’हीद हो गए।समाचार सुनकर कुछ ही देर में लोगों का हुजूम उमड़ पडा़।जयपुर से डीजी और कुछ नेतागण भी आये।लोग दोनों शही’दों की लाश लेकर विद्यार्थी भवन झुंझुनू पहुँच गए और 14 मई 1952 को वहीं उनका अंतिम संस्कार किया।हर वर्ष इन शही’दों के निर्वाण दिवस पर गाँवों में मेले लगते हैं।

ऐसे जाबांज क्रां’तिका’ री नेताओं को तनी मुट्ठी क्रांतिकारी सलाम कि वे अन्याय और ज़ु’ल्म के खिलाफ अपनी आवाज उठायी और अपनों के लिए लड़ते-लड़ते जीवन शही’द कर दिए।

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